संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मनुवाद और मर्दानगी की मिलीजुली हिंसा, खुदकुशी से लेकर ऑनरकिलिंग तक
30-Jul-2023 3:53 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मनुवाद और मर्दानगी की  मिलीजुली हिंसा, खुदकुशी से लेकर ऑनरकिलिंग तक

राजस्थान में कल दिल दहलाने वाला एक हादसा हुआ। पाली नाम की जगह में एक दिन में पूरा परिवार तबाह हो गया। जवान बेटी कॉलेज के नाम पर निकली और अंतरजातीय विवाह करके एसपी के दफ्तर पहुंची कि उसने मर्जी से दूसरी जाति के लडक़े से शादी कर ली है, और उसे मां-बाप से जान का खतरा है। वहां बुलाए गए मां-बाप हक्का-बक्का रह गए, और वे रोते हुए बेटी के सामने गिड़गिड़ाने लगे जिसने उन्हें पहचानने से ही इंकार कर दिया। परिवार का बेटा घर छोडक़र चले गया, और मां-बाप ने ट्रेन के सामने कूदकर जान दे दी। अगर बेटा जिंदा लौटकर नहीं आता है, तो एक दिन में परिवार खत्म हो गया। अब तोहमत उस लडक़ी पर आ रही है कि उसने जन्म देने वाले मां-बाप को एक दूसरी जाति के लडक़े के लिए इस तरह खारिज कर दिया। परिवार ने शायद जाति की वजह से होने वाले इतने अपमान को बर्दाश्त नहीं किया। अब लडक़ी पर एक तोहमत यह भी आ रही है कि वह उसी शहर में रहते हुए मां-बाप के चेहरा भी आखिरी बार देखने नहीं आई। 

यह मामला आत्मघाती हद तक पहुंच गया इसलिए खबरों में इस हद तक आया, वरना हिन्दुस्तान में यह बहुत अटपटी बात नहीं है कि बच्चों, खासकर बेटी के दूसरे धर्म, दूसरी जाति, या महज प्रेम विवाह कर लेने से परिवार मरने-मारने पर उतारू हो जाए। फिर ऐसा मारने में पिता, चाचा, भाई सब एक हो जाते हैं, और जेल में जिंदगी गुजारने की कीमत पर भी ऑनरकिलिंग के नाम पर बेटी को या उसके प्रेमी या मर्जी के पति को मार डालते हैं। अधिक मामलों में ऐसा होता है बजाय मां-बाप के खुद जान दे देने के। इस हादसे की खबरों में कहा गया है कि लडक़ी ने मां-बाप को पहचानने से भी इंकार कर दिया। उसके इंकार को भी समझा जा सकता है कि अगर वह मां-बाप को पहचान भी लेती, तो उसका भावनात्मक शोषण करके उसे शादी के इरादे से दूर करने की कोशिश की जाती, या अगर वह शादी कर चुकी होती, तो उसका तलाक करवाने की कोशिश होती। फिर चाहे तलाकशुदा लडक़ी की दुबारा शादी की संभावनाएं सीमित ही क्यों न हो जातीं। 

हिन्दुस्तानी समाज धार्मिक नफरत, और जातिवाद के ढांचे में इतनी मजबूती से कैद है कि लोग इससे आजाद होने के बजाय इसकी इज्जत करते हुए जान दे देना या ले लेना बेहतर समझते हैं। जाति व्यवस्था का हिंसक मिजाज लोगों को अपनी खुद की हिंसा को जायज ठहराने का हौसला देता है, और खूनी राह भी दिखाता है। जिन परिवारों में अपनी खुद की पीढ़ी के किसी काम से फख्र करने की कोई बात न हो, जिनके पुरखों ने भी फख्र करने का कोई काम न किया हो, वैसे तमाम लोग भी अपनी जाति के अहंकार में पल भर में कातिल बन जाते हैं, और उनकी जिंदगी में उनकी जाति गर्व का सामान बन जाती है, अपने से नीची या अलग जात के लडक़े से शादी करने वाली लडक़ी को जोड़े में मार डालना उन्हें जायज लगता है। यहां पर यह बात भी समझने की जरूरत है कि जाति और परिवार के गर्व का यह उन्माद सिर्फ लडक़ी के मामले में जागता है, घर का लडक़ा अगर किसी दूसरी जाति की लडक़ी को ब्याह लाए, तो उसके खिलाफ कोई हिंसा सिर नहीं उठाती। भारतीय समाज की यह पितृसत्तात्मक मर्दानगी लड़कियों पर ही कहर बनकर टूटती है। समाज में जितने तरह के आंदोलन किसी प्रेम-संबंध या शादी के खिलाफ दिखते हैं, उनमें से तकरीबन तमाम लडक़ी वालों की तरफ से होते हैं, और लडक़े वालों को तो एक लडक़ी का नफा हो जाना बताया जाता है, ठीक उसी तरह जिस तरह कि पाकिस्तान से हिन्दुस्तान आई चार बच्चों की मां सीमा हैदर का एक गरीब हिन्दुस्तानी कुंवारे नौजवान की जिंदगी में आना इस नौजवान का हासिल बताया जा रहा है। और हिन्दुस्तान छोडक़र पाकिस्तान जाने वाली अंजू नाम की एक शादीशुदा बच्चों वाली महिला का वहां जाकर  एक मुस्लिम से निकाह करना इस्लाम का हासिल बताया जा रहा है, और वहां का कोई कारोबारी उसे एक फ्लैट गिफ्ट कर रहा है, तोहफे में कोई चेक दे रहा है। जिस समाज की लडक़ी या महिला छोडक़र जाती है, उस समाज की इज्जत मिट्टी में मिलती है, यही सामाजिक चलन है। दूसरी तरफ जाति का ढांचा है जो कि लोगों को अपने से जरा नीची समझी जाने वाली जाति में भी प्रेम को बर्दाश्त करने से रोकता है। जरूरी नहीं है कि हर प्रेम-संबंध ब्राम्हण और दलित के बीच ही होता हो, अधिकतर मामलों में ओबीसी के भीतर की एक जाति की लडक़ी अगर अपने से जरा नीची समझी जाने वाली दूसरी ओबीसी जाति के लडक़े से शादी करती है तो वह भी कत्ल की वजह मुहैया करा देती है। 

आज जब दुनिया के सभ्य देश धर्म, जाति, और राष्ट्रीयता से ऊपर उठ चुके हैं, बहुत से देशों में यह भी मुद्दा नहीं रह गया है कि बच्चों को जन्म देने वाली मां शादीशुदा है या नहीं, बहुत से देशों में सेम सेक्स मैरिज कानूनी हो चुकी है, किशोरावस्था में ही मां बनने वाली लड़कियों की भी समाज में कोई बेइज्जती नहीं है, वैसे में हिन्दुस्तान आज जाति व्यवस्था के थोपे गए पूर्वाग्रहों को भी ढो रहा है, और मर्दवादी मानसिकता का शिकार तो वह हमेशा से रहा ही है। आज जवान लडक़े-लड़कियों को मर्जी से शादी का हक देने के बजाय तकरीबन तमाम परिवार उनकी भावनाओं और हसरतों को कुचलकर, उन पर मां-बाप की मर्जी की जिंदगी थोपने पर आमादा रहते हैं। फिर चाहे थोपे गए ऐसे रिश्ते उनकी पूरी जिंदगी के रूख को ही बदलकर क्यों न रख दें, उनकी सारी महत्वाकांक्षाओं को ही खत्म क्यों न कर दें। फिर अक्सर यह भी देखने में आता है कि लडक़ी को किसी एक रिश्ते से निकालकर उसे किसी स्वजातीय रिश्ते में उलझा देने की हड़बड़ी में मां-बाप कम काबिल लडक़े पर भी समझौता कर लेते हैं। जो देश अपनी नौजवान पीढ़ी की हसरतों को इस तरह कुचलकर उनकी जिंदगी को चटनी सरीखा बनाकर रख देता है, वह देश कभी भी अपनी नई पीढ़ी की पूरी संभावनाओं को नहीं पा सकता। 

हिन्दुस्तान में मां-बाप ऑनरकिलिंग से लेकर इस किस्म की खुदकुशी तक, जितने किस्म की हिंसा पर आमादा होते हैं, उससे यही पता लगता है कि मनुवादी जाति व्यवस्था, और हिन्दुस्तान की पुरूष प्रधान, पितृसत्तात्मक व्यवस्था दो किस्म के जहर का मिला हुआ प्याला बन जाती हैं, जिसमें किसी न किसी की मौत तय रहती है, वह इंसानों की रहे, हसरतों की रहे, या सबकी रहे। यह देश बिना किसी असली गौरव के जब तक फर्जी जाति-गौरव, मर्दानगी के गौरव में डूबा रहेगा, तब तब उसकी हिंसा को कम करने का कोई और जरिया नहीं रहेगा। दुनिया के दूसरे देशों में पैदा होने वाले भारतवंशी मां-बाप की औलाद तक पर जिस हिन्दुस्तानी को गर्व होता है, उसे अपने बच्चों की मर्जी से शादी पर गर्व नहीं होता, उस पर वे डूबकर मर जाने को बेहतर समझते हैं। ऐसे देश को दुनिया के विकसित देशों के मुकाबले का सपना भी नहीं देखना चाहिए क्योंकि जो पीढ़ी अपनी हसरत जी नहीं सकती, वह बहुत कुछ कर भी नहीं सकती। 

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