संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : झूठ अनदेखा करने लायक नहीं होता, गला पकडक़र सवाल पूछने लायक होता है
02-Aug-2023 5:50 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :   झूठ अनदेखा करने लायक नहीं होता, गला पकडक़र सवाल पूछने लायक होता है

कल इस अखबार के पहले पन्ने से शुरू विशेष संपादकीय ने कई लोगों को छुआ, और कई लोगों को रगड़ा। नफरत के खिलाफ जब भी कुछ लिखा जाए, बहुत से लोगों को वह उन पर, उनके जैसे और लोगों पर, उनके नेता और उनकी सोच पर हमला लगता है। और इसके जवाब में वे अपने मोबाइल फोन पर इकट्ठा झूठ को भेजने लगते हैं, और चुनौती देने लगते हैं कि हिम्मत है तो इस पर लिखकर दिखाओ। इस अखबार को मिले ऐसे कई वीडियो परखने की कोशिश की गई, और जब उन जगहों, प्रदेशों, और तारीखों पर वैसी किसी घटना के समाचार कहीं भी नहीं मिले, तो ऐसी वीडियो-चुनौतियां भेजने वालों से पूछा गया कि इस वीडियो और उसके साथ लिखी गई बातों का सुबूत क्या है, वह कहां से मिला? सुबह खासा वक्त लगाकर इस अखबार ने ऐसे बहुत से लोगों को जवाब दिए, कुछ को फोन किया, कुछ लोगों को याद दिलाया कि उन्होंने अपनी प्रोफाइल फोटो में साथ में जिस नेता की फोटो लगाकर रखी है, देश के जिस तिरंगे झंडे की फोटो लगाकर रखी है, भेजा गया हिंसक और भडक़ाऊ झूठ उनकी भी बेइज्जती है, और देश के कानून के हिसाब से एक बड़ा जुर्म भी है। यह अखबार अगर ऐसे वीडियो भेजने वालों के नाम सहित पुलिस को दे दे, तो हो सकता है कि किसी पार्टी की सरकार के तहत काम करने वाली पुलिस जुर्म दर्ज भी कर ले। लेकिन हम एक अखबार की हैसियत से अपने को मिली जानकारी का स्वागत करते हैं, फिर चाहे वह झूठी अफवाह ही क्यों न हो, और उसके बाद इसे अपनी जिम्मेदारी मानते हैं कि उसकी सच्चाई को परखें। ऐसे एक व्यक्ति को सुबह उसकी गलती बताई गई, तो उसके पास अपने बचाव में बड़ा मजबूत तर्क था कि उसके मोबाइल पर ऐसे सौ वीडियो और भी हैं। उसके भेजे वीडियो में एक धर्मस्थल के पीछे कहीं उठता धुआं दिख रहा था, और कैमरे के पीछे से सिर्फ आवाज आ रही थी कि एक समुदाय के लोगों ने दूसरे एक समुदाय के तीन लोगों को जिंदा जला दिया है। इस व्यक्ति का भेजा दूसरा वीडियो भी उसी पार्टी की सरकार के एक दूसरे प्रदेश का था कि वहां प्रदेश की सबसे बड़ी धर्मनगरी में एक समुदाय की भीड़ ने दूसरे समुदाय के नौजवान को पीट-पीटकर मार डाला। वीडियो में इसका सुबूत इतना ही था कि एक समुदाय के दिखते कुछ लोग अपने ही सरीखे रंग के कपड़े पहने हुए एक किसी को पीट रहे हैं, बस इससे अधिक कुछ नहीं। इस अखबार के संपादक ने समय निकालकर ऐसे कुछ लोगों को फोन किया, और कहा कि आपने इन पर लिखने की चुनौती दी है, तो कृपया इनकी सच्चाई के सुबूत, या घटना की कोई जानकारी ही भेज दें, ताकि आपकी फरमाईश पूरी का जा सके। उनके पास इनके जवाब में सौ-पचास और वीडियो होने के तर्क थे, उनकी अपनी ही पार्टी के राज वाले प्रदेशों में कानून व्यवस्था इतनी बर्बाद होने की बदनामी की परवाह भी नहीं थी। इस अखबार ने उन्हें याद दिलाया कि वे अपनी ही पार्टी के प्रदेशों में, अपने ही धर्म के लोगों के ऐसे मारे जाने के झूठ फैलाकर अपने ही लोगों की बदनामी कर रहे हैं, और सजा के लायक जुर्म तो कर ही रहे हैं। 

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आज सोशल मीडिया और मैसेंजर सर्विसों की मेहरबानी से अगर आपके पास हर लहर झूठ का ऐसा जहरीला कचरा लाकर किनारे पटक रही है, तो इसका एक छोटा सा जवाब जरूर भेजें, और पूछें कि ऐसी फोटो, जानकारी, खबर, या ऐसे वीडियो का सोर्स बताएं। अगर उनके पास सोर्स नहीं हैं, तो उन्हें एक शुभचिंतक की तरह याद दिलाएं कि वे एक बड़ा जुर्म कर रहे हैं, और अगर उनके भेजे ऐसे हिंसक और नफरती झूठ कहीं पुलिस तक पहुंच जाएंगे, तो इसके साइबर-सुबूत जुटाना पुलिस के लिए पल भर का काम होगा, और फिर जब उनके मोबाइल या कम्प्यूटर जब्त होंगे, तो फिर बहुत से नग्न और अश्लील राज भी सामने आ जाने का खतरा रहेगा। इसलिए आपको झूठ भेजने वाले लोगों को, आपको अपनी नफरत में लपेटकर हिंसा के लिए उकसाने वाले लोगों को सही राह पर लाईए। सिर्फ उनका भेजा देखकर उसे मिटा देना काफी नहीं है, उनसे सवाल करना भी आपकी जिम्मेदारी है, और ऐसी गंभीर हिंसक बातों का सच जानना आपका लोकतांत्रिक अधिकार है। अगर आप अपने आसपास के, नफरत के शौकीन लोगों को सही राह नहीं दिखाएंगे, तो हो सकता है कि एक दिन उनकी जमानत लेने के लिए आप कोर्ट में खड़े हों, और वह आपके लिए भी महंगा पड़ेगा। हो सकता है कि उनके घरवालों की देखरेख की जिम्मेदारी भी आप पर आ जाए, और यह भी हो सकता है कि पुलिस जांच में आपके और उनके बीच की कुछ वयस्क चीजों का लेन-देन भी पुलिस के हाथ लग जाए। इसलिए संपर्क के अपने दायरे को साफ-सुथरा रखना आपकी लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है, और इसके लिए भारत को स्वच्छ रखने जैसे किसी पांचसाला जलसे की जरूरत भी नहीं है, अपने आसपास के लोगों की सोच को साफ करते चलें, क्योंकि आपके दायरे के लोगों के परिवार भी आपके परिवार के संपर्क के हो सकते हैं, और हो सकता है कि उनका परिवार उनकी नफरत से रंगा हुआ हो, और उनसे नफरत का कुछ हिस्सा आपके परिवार तक भी पहुंच जाए। इसलिए झूठ, नफरत, और हिंसा को जड़ से ही खत्म करने में समझदारी होती है। 

एक छोटा सा सवाल किसी झूठ को असीमित आगे बढऩे से रोक सकता है, और वह सवाल है कि इसका सोर्स क्या है, इसकी सच्चाई का सुबूत क्या है? और हमको पूरा भरोसा है कि अगर आपके पास हमारे लिखे को पढऩे का वक्त है, तो कोई प्रधानमंत्री आपके दोस्त नहीं होंगे, और आपके पूछे सवाल का उन्हें बुरा भी नहीं लगेगा। इसलिए सवाल जरूर पूछिए। सवाल पूछना सिर्फ अखबारनवीसों का हक नहीं है, हर ऐसे किसी का हक है जिसका दूसरों से संपर्क है। अगर आप समाज का हिस्सा हैं, तो आपको मिलने वाली जानकारी की बुनियाद मालूम करने का आपको हक है। थोड़ी-थोड़ी सी कोशिश झूठ को आगे बढऩे से रोक सकती है, और झूठ को आगे बढ़ाने वाले को भी रोक सकती है। महज यह काफी नहीं है कि आप झूठ आगे न बढ़ाएं, यह भी जरूरी है कि आप अपने तक आने वाले झूठ भेजने वालों को आईना दिखाएं। ऐसा करके देखिए, आप अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए एक सुरक्षित और बेहतर दुनिया छोडक़र जाएंगे, वरना आपके आसपास के अतिसक्रिय, अतिउत्साही, नफरतजीवी लोग हिंसा का ऐसा सैलाब फैलाकर रखेेंगे कि जिसमें आपकी बेकसूर और मासूम अगली पीढ़ी का लहू भी जाने किस दिन बिखर जाएगा, और आपकी विरासत और वसीयत उनको बचा नहीं सकेगी। इसलिए न सिर्फ एक मजबूत मकान छोडक़र जाना जरूरी है, बल्कि उस मकान के आसपास आगजनी न होती रहे, इसकी गारंटी करके जाना भी जरूरी है। वरना ट्रेनों के बेकसूर मुसाफिर, विस्फोट की भीड़ में फंसे लोग, आगजनी में घिरी दुकानें, और पड़ोस के मकानों संग जलते घर, इनमें से अधिकतर बेकसूर रहते हैं। इसलिए आपका बेकसूर होना काफी नहीं है, आसपास के दायरे को कुसूर से बचाना भी आपकी जिम्मेदारी है। अगला वीडियो आए, तो इन पैमानों पर उसे तौलें। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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