संपादकीय
उत्तरप्रदेश के झांसी की एक खबर है कि एक नौजवान लडक़े ने अपने सोते हुए मां-बाप को लोहे के तवे से पीट-पीटकर मार डाला। मां-बाप का गुनाह इतना ही था कि शिक्षक पिता ने बेटे को रात-दिन मोबाइल पर पबजी नाम का खेल खेलने से मना किया था, और उससे फोन लेकर छुपा लिया था। बुजुर्ग मां-बाप से इस बात को लेकर खफा नौजवान बेटे ने उसी रात सोए हुए पिता को लोहे के तवे से पीट-पीटकर मार डाला, और इसी दौरान जाग गई और रोक रही मां को भी लगे हाथों खत्म कर दिया। आखिरी सांसों में इस मां ने पड़ोसियों को बताया कि बेटे ने किस तरह उन्हें मारा है। लोगों को याद होगा कि यह वही खेल है जिसे खेलते हुए पाकिस्तान की एक शादीशुदा महिला को एक हिन्दुस्तानी गरीब नौजवान से मोहब्बत हो गई, और वह तमाम पैसे जुटाकर चार बच्चों को लेकर, पति का घर छोडक़र गैरकानूनी तरीके से हिन्दुस्तान आ गई।
ऐसे कम्प्यूटर खेल के कई और किस्म के भी हादसे सामने आए हैं। अभी कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ के भिलाई में एक कोरियन डॉंस ऐप के सहारे डॉंस करने वाली 13 बरस की एक लडक़ी इस ऐप की ऐसी आदी हो गई कि वह घर से 50 हजार रूपए लेकर कोरिया जाने के लिए निकल पड़ी, और रास्ते में पुलिस ने किसी तरह उसे कमउम्र में अकेले सफर करते पाकर पकड़ा, तो पता चला कि वह घर से रकम लेकर कोरिया के लिए निकली थी, और उसे पासपोर्ट-वीजा जैसी औपचारिकताओं का भी पता नहीं था। गलत हाथों में पड़े बिना वह किसी तरह वापस लाई गई, लेकिन हर कोई हिफाजत से ऐसे नहीं लौट पाते हैं। पबजी नाम के खेल को दुनिया में 40 करोड़ से अधिक लोग खेलते हैं जिसमें बड़े भी हैं, और बच्चे भी। बड़ी संख्या में लोग इसे हर दिन ऑनलाईन खेलते हैं, इसके टूर्नामेंट होते हैं, और लोग बिना दूसरे को जाने भी दुनिया भर के अनजाने लोगों के साथ मुकाबला करते हैं। इसे दुनिया में सबसे अधिक नशे वाले खेल की तरह माना जा रहा है, और खेलने वालों को कई तरह की मानसिक परेशानियां और बीमारियां भी हो रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि पहला नुकसान तो इस खेल को खेलने की लत है, जिसके चलते किशोरों से लेकर नौजवान तक इससे बंधे रह जाते हैं, और इसके मुकाबलों में मिलने वाली कामयाबी से खिलाडिय़ों के दिमाग में संतुष्टि की लहर दौड़ती है, और लोग इसके जाल में और अधिक फंसते जाते हैं, इसमें और गहरे डूबते जाते हैं। ऐसी लत के डॉक्टरी लक्षण बताते हैं कि खेलने वाले असल दुनिया के मुकाबले पबजी गेम की दुनिया में अधिक महफूज महसूस करते हैं, और कोई भी दूसरा काम करने के बजाय जागते हुए अधिकतर वक्त को इस खेल पर ही लगाते हैं। एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि जिस वक्त वे इसे खेलते नहीं रहते, उस वक्त भी वे इसी के बारे में सोचते रहते हैं, नतीजा यह होता है कि वे दुनिया की तमाम असली चीजों के बारे में सोचना छोड़ देते हैं, वे सामाजिक रूप से अलग-थलग हो जाते हैं, और अकेले जीने लगते हैं, उनके लिए बस उनका मोबाइल फोन, इंटरनेट कनेक्शन, और ऑनलाईन मुकाबले में दूसरे खिलाडिय़ों की मौजूदगी बहुत रहती है।
अब हमने इस बात की शुरूआत तो डिजिटल और ऑनलाईन खेलों की ऐसी हिंसक लत से की है, लेकिन लगे हाथों उन छोटे बच्चों पर भी चर्चा करने की जरूरत है जो कि टीवी या मोबाइल फोन की आदत के शिकार हो चुके हैं। लॉकडाउन के दौरान जो बच्चे एक-दो साल के हो चुके थे, उन्होंने अपने मां-बाप को पूरे ही वक्त घर पर कम्प्यूटर, मोबाइल, या टीवी के साथ देखा, और वे खुद भी इन्हीं की आदत में डूब गए। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जो बच्चे लॉकडाउन के लंबे दौर में, स्कूली पढ़ाई की वजह से, या केवल वीडियो गेम खेलने और कार्टून फिल्म देखने के लिए स्क्रीन-एडिक्ट हो चुके हैं, उनका बोलना भी देर से शुरू हुआ, क्योंकि उन्हें स्क्रीन के साथ बोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी। पूरी दुनिया में बाल मनोवैज्ञानिकों के लिए यह नौबत एक बहुत चुनौती की रही कि बच्चों की ऑनलाईन पढ़ाई, या उनके ऑनलाईन वक्त गुजारने के साथ-साथ उनका मानसिक विकास कैसे किया जाए? यह चुनौती आज भी बनी हुई है क्योंकि बच्चों के विकास की वह उम्र अगर उस विकास क्रम से गुजरे बिना निकल गई है, तो उस शून्य को भर पाना मुश्किल है। अब उनका आगे का विकास कुछ लडख़ड़ाहट के साथ हो सकता है, और इस नुकसान की भरपाई कैसे की जाए वह पूरी दुनिया के सामने एक चुनौती है। ऐसे ही स्क्रीन-एडिक्शन के साथ जब किसी ऑनलाईन खेल का एडिक्शन और जुड़ जाता है, तो यह नौबत मरने और मारने लायक खतरनाक हो जाती है।
झांसी की यह खबर छपने के करीब साथ-साथ तेलंगाना के करीमनगर की एक और खबर है कि 18 बरस के एक इंजीनियरिंग छात्र ने 2 अगस्त को खुदकुशी कर ली। पुलिस का कहना है कि वह पबजी के नशेड़ी हो गया था, और पिता ने उसे रात-दिन मोबाइल पर यह खेलने के लिए डांटा था। उसने कीटनाशक पीकर जान दे दी। आखिरी पलों में होश आने पर उसने पिता को बताया कि उसने सिर्फ उन्हें धमकाने के लिए कीटनाशक पिया था, और उसे पता नहीं था कि उससे जान भी जा सकती है। लोगों को याद होगा कि पिछले कुछ महीनों में कुछ और नाबालिग बच्चों ने जगह-जगह वीडियो गेम का नशा छुड़वाने के लिए मां-बाप के छीने गए फोन की प्रतिक्रिया में या तो छोटे भाई-बहन की जान ले ली, या जान दे दी। आज कुछ मां-बाप को ऐसा भी लगता है कि उनके बहुत छोटे बच्चे भी बड़ी खूबी के साथ कम्प्यूटर चला लेते हैं, लेकिन वे इस खतरे को नहीं समझ पाते कि उनके बच्चे किस हद तक नशे में पड़ रहे हैं।
यह स्क्रीन-एडिक्शन, और वीडियो गेम का नशा हर परिवार के अलग-अलग समझने लायक खतरा नहीं है, और इसके लिए सरकार और समाज को मिलकर कोई रास्ता निकालना पड़ेगा, वरना दुनिया हिंसक बच्चों और नौजवानों की भीड़ से भर जाएगी।