राजपथ - जनपथ

पीएससी की कथाएं अनंत
पीएससी में गड़बडिय़ों की फेहरिस्त लंबी हो रही है। न सिर्फ राज्य सेवा बल्कि अन्य परीक्षाओं में गड़बडिय़ों की शिकायतें आई है। कई प्रकरण तो अदालत की चौखट तक पहुंच गए हैं। पीएससी से जुड़े कई किस्से लोग चटकारे लेकर सुना रहे हैं।
बताते हैं कि दुर्ग की एक पूर्व विधायक की बेटी ने चिकित्सा परीक्षा में शीर्ष स्थान अर्जित किया था। कुछ लोग इसको संदिग्ध बता रहे हैं। यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे पहले वो चयन परीक्षा में सफल नहीं रही थी, और लंबे समय तक संविदा पर थी। ऐसे ही ताकतवर लोगों के बेटे-बेटियां, और पत्नी तक भर्ती परीक्षा में सिलेक्ट होने की चर्चा सुनी जा रही है। अगर योग्य हैं, तो कोई बात नहीं है। मगर ऐसे कई संयोग लोगों को चौंका रहे हैं।
संस्कृति विभाग में तो दैनिक वेतनभोगी संविदा कर्मचारी सीधे द्वितीय श्रेणी के पद पर चयनित हो गए, और इसको लेकर हाईकोर्ट में आधा दर्जन याचिकाएं लग चुकी हैं। विभागीय सचिव को इन गड़बडिय़ों के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। वजह यह है कि उन्हें गड़बड़ी की जानकारी पूर्व में दी जा चुकी थी। मगर उन्होंने जांच-पड़ताल के बजाए प्रक्रिया को जारी रखा। राजभवन ने भर्ती में गड़बडिय़ों को संज्ञान में लिया है। इस तरह की गड़बडिय़ां अन्य प्रतिभागियों को परेशान कर रहे हैं।
हाईकोर्ट ने राज्यसेवा भर्ती परीक्षा में गड़बडिय़ों को संज्ञान में लिया है। मगर जानकार लोग मानते हैं कि अदालत से राहत मिलना आसान नहीं है। वर्ष-2005 की राज्य सेवा भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी के खिलाफ हाईकोर्ट ने ऑर्डर पास किए थे। मगर चयनित लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए। इनमें से कई को आईएएस अवॉर्ड भी हो चुका है। पीएससी में दागदार अफसरों की पोस्टिंग से गड़बड़ी के आरोपों को हवा मिलता रहा है। दिक्कत यह है कि सरकार की इस तरह के गड़बडिय़ों को ठीक करने की दिशा में अब तक कोई रूचि नहीं दिख रही है।
प्रतिभावान बेरोजगारों की व्यथा
कभी छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक जज ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि हम सब देखते हैं, अखबारों को पढ़ते हैं। मगर हर मामले में स्वयं संज्ञान नहीं ले सकते। आप लोगों को आना चाहिए आगे। हमारे सामने कई मामले आने चाहिए जिन पर हम सुनवाई करें, लेकिन हिम्मत कोई-कोई ही जुटा पाता है। मामला जैसे ही सामने आता है, हम अपनी जिम्मेदारी उठाते हैं।
इन दिनों छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के कुछ बेंच की कार्यवाईयों की लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है। लोगों ने देखा कि जैसे ही सीजीपीएससी में भ्रष्टाचार की याचिका भाजपा नेता ननकी राम कंवर की ओर से आई, ऐसा लग रहा था कि कोर्ट को इस याचिका की प्रतीक्षा थी। बहुत सारी बातें चीफ जस्टिस के ऑर्डर में नहीं आई लेकिन वक्तव्य से उनकी भावनाएं जाहिर हो गई। उन्होंने कहा कि एक दो अफसर नेताओं के बेटे-बेटी प्रतिभावान हो सकते हैं मगर टॉप पर 18-18 दिख रहे हैं। यह तो बहुत गलत बात है।
पीएससी अध्यक्ष ने चाहे जितना पैसा कमाया हो, और सरकार चाहे जितनी तरफदारी करे, चीफ जस्टिस की यह एक टिप्पणी ऐसी है कि उसे अपने आप को आईने पर अपना चेहरा झांकना चाहिए। सोचना होगा कि कितने प्रतिभावानों के अवसरों को रौंदकर उन्होंने अपने बेटी बेटे-बहू और दामाद के लिए रास्ता बनाया।
दलदल से निकलने का रास्ता
हाई कोर्ट के पीएससी मामले में के बाद सोशल मीडिया पर भी भारी बवाल मचा हुआ है। एक प्रतिभागी के सुझाव पर गौर करिए, जो पीएससी की नियुक्तियों पर पारदर्शिता के तरीके बता रहे हैं। इन सुझावों पर गौर करें-
सबसे पहले वर्तमान में कार्यरत सभी अधिकारी-कर्मचारियों हटा दें। दूसरा उनका प्रमोशन भी रोक दें और किसी भी ऐसे काम में ना लगाएं जिसमें लोगों का भला करने का मौका हो। इन सभी कर्मचारी-अधिकारियों की संपत्ति की जांच हो। बीते तीन सालों में जो भी सदस्य और अध्यक्ष रहे हैं उनकी भी संपत्ति जांची जाए। टोमन सिंह सोनवानी, जो पीएससी के चेयरमैन थे उनके खिलाफ जिन-जिन जिलों में रहते शिकायतें हुई उसकी जांच की जाए। इस दौरान वह किस-किस रेस्ट हाउस या होटल में रुके और उनसे मिलने कौन-कौन पहुंचे, इसका भी पता किया जाए। टॉप सूची में शामिल सभी प्रतिभागियों के परिवारों की संपत्ति की जांच की जाए। अफसोस, यह सब पता नहीं चलेगा। फरियाद किसी मासूम की है।
खेड़ा को जानने हजारों किमी यात्रा
प्रभुदत्त खेड़ा के बारे में अगर आप नहीं जानते हैं, तो जानना चाहिए। दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे खेड़ा बरसों पहले लोरमी जिले के अचानकमार अभ्यारण में घूमने के लिए आए। प्रकृति का सौंदर्य देखकर वे जितना मंत्र मुग्ध हुए उतनी ही उनको तकलीफ हुई यहां के आदिवासियों की दशा को देखकर। वे यहीं रुक गए। नौकरी छोड़ दी। अपनी पेंशन से आदिवासी बच्चों के लिए खिलौने और टाफियां बांटते रहे। थैला लटकाकर आदिवासी परिवारों को दवाइयां घूम-घूम कर देते रहे। एक मिट्टी की छोटी सी झोपड़ी में रहने लगे। एक स्कूल उन्होंने खोला और पढ़ाई की व्यवस्था की। अपने बेहद करीबी लोगों के लिए भी वे अजूबा थे। अपने परिवार के बारे में कभी बात नहीं करते थे। मगर सम्मोहन ऐसा था कि उनसे मिलने के लिए जिले का हर कलेक्टर जंगल पहुंचता था। सामाजिक कार्य करने वाले युवाओं से उनका लगाव था। वे कुछ साल पहले गुजर चुके हैं। उनकी एक भतीजी 30 साल पहले अमेरिका में सेटल हो चुकी अनीता खेड़ा बरसों से अपने चाचा की तलाश कर रही थी। उसने चाचा को गूगल पर फिर छत्तीसगढ़ के पत्रकारों से जाना। उनके एक करीबी संदीप चोपड़े से संपर्क साध सकी। वे अमेरिका से अचानकमार पहुंची। यहां पर 3 दिन बिताया। उनका आश्रम देखा। खेड़ा के काम से आए बदलाव को महसूस किया।
हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रभु दत्त खेड़ा के शुरू किए गए स्कूल को अंगीकार कर लिया है। यहां काम कर रहे आठ शिक्षकों और पढ़ रहे बच्चों का भविष्य सुधर रहा है।