राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : वक्त कम बाकी है
29-Sep-2023 4:35 PM
राजपथ-जनपथ : वक्त कम बाकी है

वक्त कम बाकी है 

आचार संहिता लगने में कुछ दिन बाकी रह गए हैं। लेकिन कुछ मंत्रियों की शिकायत कम होने का नाम नहीं ले रही है। एक मंत्री ने तो मल्लिकार्जुन खरगे के स्वागत के लिए माना एयरपोर्ट पर जुटे सीनियर नेताओं के बीच यह कहते सुने गए कि उनकी सिफारिशों का कोई महत्व नहीं रह गया है। उनके कहे तबादले नहीं हो रहे हैं। चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी सैलजा ने उनकी शिकायतों को दूर करने का भरोसा दिलाया है लेकिन समय कम रह गया है । देखना है कि शिकायतें दूर होती है या नहीं।

बदले-बदले से मेरे खरगे नजर आए 

मल्लिकार्जुन खरगे बलौदाबाजार की सभा को लेकर खुश नजर आए। पिछली तीन सभाओं में लोग उनके भाषण के बीच उठकर जाने लगे थे, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। लोगों ने खरगे के भाषण को पूरा सुना। 

खरगे भी अपनी पूरी लय में थे। वो भूपेश सरकार की उपलब्धियां गिना रहे थे, इस दौरान सीएम और प्रदेश अध्यक्ष आपस में चर्चा कर रहे थे। खरगे ने मंच से ही दोनों को डपट दिया, और कहा कि बातचीत बाद में करना, पहले मेरी बातों की तरफ ध्यान दें। 

खरगे ने हरित क्रांति के जनक डॉ.एम.एस. स्वामीनाथन के निधन पर शोक जताया और उनके कहने पर सभा में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि भी दी गई। खरगे ने डॉ.स्वामीनाथन को याद करते हुए बताया कि वो (खरगे) 26 साल के थे उस समय डॉ.स्वामीनाथन ने उन्हें कृषि विश्वविद्यालय की समिति का सदस्य बनाया था। कुल मिलाकर खरगे का अंदाज इस बार बदला हुआ था।

इन सांसदों का यहाँ से लेना-देना नहीं 

प्रदेश से कांग्रेस के दो राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और के.टी.एस.तुलसी का तो यहां के विकास कार्यों से कोई लेना-देना नहीं है। कम से कम सांसद निधि के खर्चों देखकर को तो यही कहा जा सकता है। राजीव शुक्ला ने तो अब तक निधि से एक रुपए भी जारी नहीं किए हैं। 

कुछ ऐसा ही हाल के.टी.एस. तुलसी का है। अलबत्ता, सरकार ने उन्हें रायपुर में एक बंगला आबंटित किया है। हालांकि इसका उपयोग पूर्व राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा करती हैं। इससे परे कांग्रेस की दो महिला राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम और रंजीत रंजन जरूर सांसद निधि के मद से होने वाले कामों को लेकर रुचि ले रही हैं।

सरकार सब समेट रही 

मंत्रालय में सरकारी काम समेटने की कवायद शुरू हो गई है। आचार संहिता लगने से पहले इस कार्यकाल के सभी पेंडिंग फाइल, घोषणाओं पर आदेश जारी होने लगे हैं। और इन अंतिम दिनों में ही कई खबरें बाहर भी आएंगी। इस बार आचार संहिता 7 अक्टूबर के बाद किसी भी दिन लग सकती है । ऐसे में मंत्रिमंडल की एक और बैठक होने के संकेत हैं । चुनावों को देखते हुए सभी मंत्रियों ने अपने सचिवों से कह दिया है कि लंबित फाइलें पुशअप करें। 

साथ ही चर्चा के लिए रोके गए प्रस्ताव, आदेश, डीई पर अंतिम अनुशंसा ले लें। इसे देखते हुए जांच से जूझ रहे अधिकारी, मंत्री, सचिव के इर्द गिर्द कदमताल करने लगे हैं। इस बार मंत्री, 2018 में भाजपा के मंत्रियों की तरह फाइल क्लीयरेंस में चुनावी नतीजों का इंतजार नहीं करना चाहते। पिछली सरकार में तो चुनाव निपटने के बाद एक मंत्री के बंगले से कई फाइलें जली हुई मिली थीं। इसको लेकर काफी बवाल भी हुआ था। बहरहाल मंत्रालय के कई विभागों में नोटशीट चल गई है कि आचार संहिता लगने तक किसी भी कर्मचारी, अधिकारी को छुट्टी नहीं मिलेगी। और शासकीय छुट्टी के दिन राजधानी न छोड़ें।

दो-ढाई करोड़ का तोहफा! 

चुनावी टिकट का मौसम कई किस्म की रिश्वत और भ्रष्टाचार का भी होता है। अब दो दिनों से एक चर्चा बहुत तेज है कि एक महत्वाकांक्षी नौजवान नेता ने पार्टी में एक लीडर को दो-ढाई करोड़ की कार का तोहफा दिया है। अब इसके बाद टिकट की उम्मीद करना तो उसका हक बनता है। लेकिन अगर टिकट पाने का ऐसा रेट चल रहा है, तो फिर वोट पाने का कैसा रेट होगा? और अगर ऐसे अरबपति उम्मीदवारों से जनता नोट भी ले ले, और वोट अपनी मर्जी से दे, तो क्या उसे भी वोट बेचना कहेंगे? वोट बेचना तो तब होगा जब भुगतान के बाद उसके एवज में वोट दिया जाए। अगर कुछ दिया न जाए, और भ्रष्टाचार की कमाई में से जनता अपना हिस्सा ले ले, तो फिर उसमें जनता का भ्रष्टाचार कैसा? चुनाव आयोग के नियम कुछ अलग बात कह सकते हैं, लेकिन भ्रष्ट लोगों को नोचकर उनसे कुछ खरोंच लेना, और फिर अपनी मर्जी से वोट देना एक सामाजिक न्याय की बात हो सकती है। 

ईडी संपत्ति ऐसे भी जब्त करती है...

ऐसे उम्मीदवार खारिज करें...

पांच राज्यों के चुनावों के बीच राजस्थान से खबर है कि वहां कई जनसंगठनों और राजनीतिक दलों ने मिलकर एक दलित घोषणापत्र जारी किया है। इसमें कहा गया है कि ऐसे किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं दिया जाएगा जिसके खिलाफ दलित प्रताडऩा का कोई आरोप हो। यह तरीका ठीक है, ऐसे अलग-अलग घोषणापत्र बनने चाहिए, महिलाओं को भी दलीय निष्ठा से परे ऐसा घोषणापत्र लाना चाहिए कि जिसके खिलाफ महिला प्रताडऩा, महिला शोषण के आरोप लगे हुए हों, उसका बहिष्कार किया जाएगा। वरना उसके बिना हालत यह है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक छोटे से कांग्रेस नेता के गुजर जाने के बाद उसके नाम पर एक सडक़ का नाम रखा गया है, और उसकी अपनी बहू ने उस पर प्रताडऩा की रिपोर्ट लिखाई हुई थी। लोगों को उम्मीदवारों और उनकी पार्टियों के बहिष्कार के ऐसे कड़े फैसले लेने चाहिए। 

समाज के कुछ जागरूक लोगों को यह तय करना चाहिए कि राजनीति में आने के बाद भ्रष्टाचार के लिए बदनाम लोगों को वे वोट नहीं देंगे, इसी तरह यह भी तय करना चाहिए कि वे कुनबापरस्ती को वोट नहीं देंगे, देश-प्रदेश में सारी कुनबापरस्ती को तो वे नहीं रोक सकते, लेकिन अपने विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में अगर वे एक ही परिवार के अगले उम्मीदवार को वोट न देना तय कर लें, इसके लिए जागरूकता अभियान चलाएं, तो हो सकता है कि पार्टियां ही उन्हें टिकट देने में बिदक जाएं। एक परिवार के दो लोगों को टिकट देने के खिलाफ साफ-साफ अभियान चलना चाहिए। 

नागरिकों के अलग-अलग जागरूकता समूह अपना एजेंडा खुद तय कर सकते हैं, और आज के वॉट्सऐप-जमाने में वे बिना अधिक खर्च के भी अपनी बात फैला सकते हैं। हम किसी को वोट नहीं देने के लिए सुझाव नहीं दे रहे, बल्कि यह कह रहे हैं कि ऐसी खामियों से परे के कोई भी उम्मीदवार न हों, तो लोगों को नोटा को वोट देना चाहिए। इससे भी यह बात जाहिर होगी कि हर उम्मीदवार में कोई न कोई खामी थी, और वोटर ने इन सबको खारिज कर दिया। 

छींका टूटेगा या नहीं? 

पंजाब में कांग्रेस के एक विधायक को आम आदमी पार्टी की सरकार ने नशे के एक पुराने मामले में गिरफ्तार किया, तो दोनों पार्टियां सींग टकराकर लड़ रही हैं। और इस लड़ाई को देखकर छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीद की एक लहर दौड़ रही है कि इंडिया-गठबंधन के ये दो दल अगर टकराएंगे, और छत्तीसगढ़ में भी आमने-सामने खड़े हो जाएंगे, तो यह कांग्रेस के लिए नुकसान का रहेगा, और भाजपा के लिए फायदे का रहेगा। अब दिल्ली की हसरत से छींका टूटता है या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन छत्तीसगढ़ में बिखरे हुए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता यह चाह नहीं रहे हैं कि सत्तारूढ़ कांग्रेस से कोई समझौता हो। वे तकरीबन पांच बरस से कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते आए हैं, और राज्य सरकार पर हमले से परे तो उनके हाथ कोई बड़े मुद्दे बचेंगे नहीं। एक जानकार का यह भी कहना है कि कांग्रेस से आप के किसी भी चुनावी तालमेल से आप टूट जाएगी। देखें आगे क्या होता है। 

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