संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ईरान की नर्गिस को नोबल शांति पुरस्कार की बड़ी अहमियत..
07-Oct-2023 12:07 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  ईरान की नर्गिस को  नोबल शांति पुरस्कार की बड़ी अहमियत..

फोटो : सोशल मीडिया

नोबल शांति पुरस्कार के लिए ईरान की एक महिला आंदोलनकारी नर्गिस मोहम्मदी का नाम घोषित किया गया है। वे वहां पर बरसों से जेल में बंद हैं क्योंकि सरकार उनके मुद्दे पसंद नहीं करती है। महिलाओं पर जुल्म के खिलाफ वे लड़ते रहती हैं, और अभी जो खबर आई है उसके मुताबिक ईरान की सरकार उन्हें 13 बार गिरफ्तार कर चुकी है, 5 बार उन्हें सजा सुनाई गई है, और 31 बरस की कैद से वे गुजर रही हैं। उनके दो बच्चे अपने पिता के साथ फ्रांस में रह रहे हैं, और मां 8 बरस से उनसे दूर जेल में बंद है, और वे बेटे-बेटियों से मिली भी नहीं हैं। ईरान में महिलाओं के हक की लड़ाई आसान नहीं है, क्योंकि वहां अपने आपको क्रांतिकारी कहने वाली इस्लामिक सरकार इस्लाम के एक कट्टर तौर-तरीकों से चलती है जिनमें महिलाओं के लिए हिजाब बांधकर रखना अनिवार्य है, और ऐसा न करने पर उनकी गिरफ्तारी हो सकती है, उन्हें जेल होती है, और ऐसी ही एक युवती की पिछले बरस कैद में संदिग्ध मौत हो गई थी, और उसके बाद से ईरान में आंदोलन भडक़ उठे थे। अभी भी ईरान की महिलाएं हिजाब के नियमों को तोड़ते हुए सार्वजनिक प्रदर्शन कर रही हैं, और सरकार पर यह तोहमत लग रही है कि उसने लड़कियों के बीच दहशत फैलाने के लिए लड़कियों के स्कूलों में रहस्यमय तरीके से गैस छोड़ी थी जिससे बहुत सी लड़कियां बीमार भी हुई थीं। ऐसी घटनाएं दर्जनों स्कूलों में अलग-अलग शहरों में हुई थीं, और यह माना जा रहा है कि सरकार के अलावा इसे और कोई नहीं करवा सकता था। 

आज नर्गिस मोहम्मदी को नोबल शांति पुरस्कार मिलना ईरान की तमाम आंदोलनकारी महिलाओं का सम्मान है। इतनी विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए भी नर्गिस ने जेल में और कैदियों से बातचीत को दर्ज किया है, और उनकी लिखी एक किताब भी सामने आई है। वे ईरान में एक मानवाधिकार संगठन में काम कर रही थीं, और जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों की मदद करने के आरोप में उन्हें एक से अधिक बार सजा हुई है। फिलहाल वे 12 बरस की कैद काट रही हैं, और दूसरी कई सजाएं भी उन्हें सुनाई जा चुकी हैं। नर्गिस को मिला यह पुरस्कार दुनिया में महिलाओं की आजादी और उनके हक की लड़ाई का एक प्रतीकात्मक सम्मान है। ईरान और उसके समर्थक देश नोबल शांति पुरस्कार को पश्चिमी देशों के प्रभाव वाला पुरस्कार कह सकते हैं, लेकिन उससे इस सच्चाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि नोबल पुरस्कार कई बार दुनिया के कुछ बड़े शांतिपूर्ण संघर्षों और सामाजिक न्याय की लड़ाईयों की तरफ सबका ध्यान खींचते रहता है। 

यह भी कुछ अजीब सी बात है कि एक तरफ तो गांधी का नाम नोबल शांति पुरस्कार के लिए बार-बार लिस्ट में आया, लेकिन उन्हें कभी दिया नहीं गया। जब गांधी की हत्या हुई तो उसके बाद का नोबल शांति पुरस्कार किसी को भी नहीं दिया गया, क्योंकि बार-बार गांधी का नाम खारिज करने वाली नोबल शांति पुरस्कार कमेटी गांधी की हत्या से हिली हुई थी। दूसरी तरफ अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को बिना किसी चर्चा के, बिना किसी न्यायसंगत आधार के नोबल शांति पुरस्कार दे दिया गया था, जिससे वे खुद भी चौंक गए थे। और यह तथ्य तो इतिहास में अच्छी तरह दर्ज है जिस वक्त उन्हें 2009 का नोबल शांति पुरस्कार मिला, उस वक्त उन्हीं के आदेशों से सात अलग-अलग देशों पर बम बरसाए गए थे। इनमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, लीबिया, यमन, सोमालिया, इराक, और सीरिया थे। एक सबसे अधिक बमबारी करने वाले अमरीकी राष्ट्रपति को भी शांति के लिए किसी योगदान के बिना नोबल शांति पुरस्कार दिया गया था। इससे परे भी कुछ और मौके रहे जब नोबल शांति पुरस्कार विवादों से घिरा रहा, लेकिन आज ईरान की महिला आंदोलनकारी को इसे देने की घोषणा दुनिया में संघर्षरत महिलाओं का सम्मान है, और उनके हक पर इस सम्मान से एक बार फिर चर्चा हो सकेगी, होगी। 

ईरान में महिलाओं की लड़ाई सिर्फ उस देश में महिलाओं के हक का मुद्दा नहीं है, बल्कि इस्लाम के नाम पर महिलाओं पर एक गैरबराबरी लादने वाले बहुत से देशों में महिलाओं पर चल रहे जुल्म की तरफ भी इससे ध्यान जाएगा। ऐसे देश अपने आपको कहीं लोकतांत्रिक कहते हैं, तो कहीं वे तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान की तरह के हैं, जहां लड़कियों से स्कूल जाने का हक भी छीन लिया गया है, और महिलाओं को काम करने की इजाजत भी नहीं है। आज अफगानिस्तान दुनिया के अधिकतर देशों के लिए इसी महिला-नीति की वजह से अछूत बना हुआ है, लेकिन अड़ा हुआ है। आज दुनिया के अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संगठन चाहकर भी अफगानिस्तान के जरूरतमंद लोगों की मदद नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि अफगानिस्तान महिलाओं को कोई अधिकार देना नहीं चाह रहा है, और इसके बिना दुनिया के देश उसे किसी तरह की मान्यता नहीं दे रहे, और अंतरराष्ट्रीय संगठन वहां काम नहीं कर पा रहे। 

ईरान की महिला आंदोलनकारी को कल घोषित नोबल शांति पुरस्कार दुनिया भर की महिलाओं के मुद्दों को उठाने वाला साबित होगा। दुनिया के इतिहास में ऐसी कुछ और महिलाएं भी रही हैं, और उनसे दुनिया भर की महिलाओं को हौसला मिला है। आज मोटेतौर पर महिलाओं के संघर्ष का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम महिलाओं तक सीमित है, और दुनिया को इस पर गौर करना चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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