संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लादे गए फैशन-पैमानों के खिलाफ कई देशों में शुरू महिला आंदोलन..
12-Oct-2023 4:38 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लादे गए फैशन-पैमानों के खिलाफ कई देशों में शुरू महिला आंदोलन..

फोटो : सोशल मीडिया

चीन, जापान, और दक्षिण कोरिया की अलग-अलग खबरें हैं कि वहां महिलाओं ने कामकाज की जगह पर सिर्फ महिलाओं के लिए बनाए गए कई किस्म के कपड़ों, जूतों, या मेकअप के पैमानों का विरोध करना शुरू किया है। बहुत से दफ्तरों में महिलाओं को आकर्षक और खूबसूरत दिखाने के लिए उनकी कद-काठी के नाप से लेकर बालों और मेकअप तक, उनके जूते-सैंडलों की एड़ी तक बहुत सी चीजों को लादा जाता है। जापान में अभी महिलाएं जो आंदोलन कर रही हैं उसमें नामी-गिरामी अभिनेत्री और लेखिका ने भी दस्तखत किए हैं, और इसे ऊंची एड़ी के विरोध का आंदोलन कहा जा रहा है। महिलाएं सोशल मीडिया पर लगातार ऐसी शर्तों के खिलाफ लिख रही हैं। जापान में यह आम बात है कि वहां ग्राहकों से बात करने वाली दुकानों की लड़कियों और महिलाओं को चश्मा पहनने से मना किया जाता है, और कांटैक्ट लैंस लगाने कहा जाता है क्योंकि चश्में को खूबसूरती के खिलाफ मान लिया गया है। दूसरी तरफ मर्दों के चश्मा पहनने पर कोई रोक नहीं है, और उनके जूतों पर भी किसी तरह के प्रतिबंध नहीं है। महिलाओं ने वहां नारा दिया है कि वे क्या पहनें, इसे कोई और तय न करें। 

अब दूसरे देशों में शुरू हुए ऐसे आंदोलनों को छोड़ें, और हिन्दुस्तान की देखें, तो यहां भी सैकड़ों बरस से महिलाओं की पोशाक पर ही रोक-टोक चली आ रही है। सम्मान से लेकर सौंदर्य तक के सारे पैमाने उन्हीं पर लादे जाते हैं। एक वक्त महिलाओं को चेहरा घूंघट से ढांककर रखना पड़ता था, और अब भी वह राजस्थान के कई इलाकों में प्रचलित है, हो सकता है कुछ और प्रदेशों में भी यह चल रहा हो। महिलाओं के कपड़े, उनके गहने, उनके शादीशुदा होने, कुंवारी होने, या पति खो चुकी विधवा होने के हिसाब से अलग-अलग किस्म से तय होते हैं। महिलाओं के साथ पोशाक को लेकर शायद सबसे हिंसक और भयानक बात केरल के त्रावणकोर राज में थी, जहां पर 1859 तक दलित महिलाओं के सीना ढांकने पर टैक्स लगाया गया था, ताकि दलित महिलाएं सार्वजनिक जगहों पर भी सीना न ढांक सकें। इस इतिहास का एक भयानक तथ्य यह है कि इसके खिलाफ विरोध करते हुए एक दलित महिला ने टैक्स वसूलने आए आदमी को अपने वक्ष काटकर पत्ते पर रखकर दे दिए थे। इसके खिलाफ महिलाओं को आंदोलन करना पड़ा था। मर्दों की चलाई गई सत्ता का महिलाओं के लिए ऐसा रूख था। यह आंदोलन इसी महिला नांगेली के नाम से जाना जाता है। उसने टैक्स के लिए चावल देने की बजाय हंसिए से अपना सीना काटा, और पत्ते पर रखकर सरकारी कर्मचारी को दे दिया। इसमें इतना खून बहा कि वह मर गई, लेकिन उसने एक आंदोलन को जन्म दिया। 

हिन्दुस्तान की संस्कृति में महिलाओं के लिए कपड़ों और गहनों के सारे पैमाने मर्दों के लादे हुए हैं, बहुत समय तक उसके गहनों की आवाज उसके चलने-फिरने से आती रहती थी, ताकि सबको उसकी हलचल का पता लगता रहे। और हिन्दुस्तान से परे भी पूरी दुनिया में अगर खूबसूरती के पैमानों को देखा जाए तो उनको महिलाओं पर ही लादा गया है जिसे निभाने के लिए उन्हें खासा वक्त लगाना पड़ता है, खर्च करना पड़ता है, और इसमें कमी रह जाने पर वे हीनभावना में डूब जाती हैं। समाज में महिलाओं का सम्मान उनके रूप-रंग के रख-रखाव, उनके हुलिए, गहनों-कपड़ों और उनके मेकअप जैसी चीजों से तय होता है। जो मर्द चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ रखकर ऐंठते हैं, वे महिला के हाथ-पैर पर रोएं भी देखना नहीं चाहते। इस काम में मर्दों का अपना स्वार्थ था कि वे महिलाओं को बेहतर दिखने वाली बनाए रखना चाहते थे, दूसरी तरफ इसमें बाजार व्यवस्था का स्वार्थ भी था जो कि तरह-तरह की चीजें महिलाओं को बेचती थीं, और महिलाएं फैशन के सैलाब में अधिक से अधिक चीजों की तरफ दौड़ती रहती थीं, आज पहले के मुकाबले और अधिक दौड़ती हैं। 

बाजार और कामकाज की जगहों पर रूप-रंग को, कद-काठी, और पहरावे की समझ को इतना महत्वपूर्ण मान लिया गया है कि कामकाज के हुनर को भी अधिक महत्व नहीं मिलता। और तो और टीवी समाचारों की दुनिया में आज लड़कियों और महिलाओं को इन्हीं पैमानों की वजह से सबसे पहले छांटा जाता है। 

चीन, जापान, या दक्षिण कोरिया में जो महिला आंदोलन शुरू हुए हैं इस पर बाकी दुनिया को भी सोचना चाहिए। वे मर्द जो कि मातहत, या साथ में काम करने वाली महिलाओं को नयनसुख, या आईकैंडी मानते हैं, वे तो कभी नहीं चाहेंगे कि महिलाओं के रूप-रंग के पैमानों को नर्म किया जाए। वे अपने आसपास कामकाजी महिलाओं को भी तितलियों की तरह देखना चाहेंगे। लेकिन महिलाओं को इसके खिलाफ अदालत तक भी जाना चाहिए, और रूप-रंग, मेकअप, और पोशाक के नियमों को औरत-मर्द के लिए बराबरी का बनाने की मांग करनी चाहिए। अगर मर्द की दाढ़ी-मूंछ से उनका कामकाज प्रभावित नहीं होता है, तो महिला के हाथों पर रोएं आ जाने से यह काम कैसे प्रभावित हो जाएगा? जहां तक ऊंची एड़ी के सैंडलों का सवाल है, तो मेडिकल साईंस इस बात का गवाह है कि इनसे महिलाओं की रीढ़ की हड्डी पर एक नाजायज जोर पड़ता है, और उन्हें हमेशा के लिए नुकसान हो सकता है, आमतौर पर नुकसान होता ही है। इसी तरह लड़कियों के खेलने के लिए बनाई गई आधुनिक गुडिय़ा, बार्वी के छरहरे बदन को देखकर लड़कियां उसे ही जिंदगी का असल पैमाना बना लेती हैं, और वैसी ही छरहरी बनने के लिए, बनी रहने के लिए भूखों मरने लगती हैं। आज दुनिया में दसियों लाख लड़कियां और महिलाएं बार्वी जैसा बदन पाने के संघर्ष में लगी हुई हैं, और वैसा न होने पर वे हीनभावना की शिकार हो जाती हैं, मानसिक अवसाद से घिर जाती हैं। प्रकृति ने अलग-अलग लोगों की कद-काठी अलग-अलग किस्म की बनाई है, और उनके सामने फैशन की दुनिया, ग्लैमर की दुनिया, मर्दों की उम्मीदों की फेहरिस्त ऐसे पैमाने पेश कर देती हैं कि महिलाएं उसी जाल में फंसी रह जाती हैं। अपने आसपास महिलाओं पर लादे गए खूबसूरती और फैशन के पैमानों के बारे में सभी को सोचना चाहिए, और उन्हें मर्दों पर लादे गए पैमानों के बराबर लाना चाहिए, ताकि लैंगिक असमानता खत्म हो सके। तमाम लोगों को इन बातों पर चर्चा करनी चाहिए क्योंकि कोई भी संघर्ष चर्चा से उपजी जागरूकता के बाद ही शुरू हो सकता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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