संपादकीय
दिल्ली के करीब नोएडा में 2006 में बच्चों से सिलसिलेवार बलात्कार और उनके कत्ल का एक ऐसा मामला सामने आया था जिसने सबको हिलाकर रख दिया था। निठारी कांड नाम से कुख्यात इस मामले में दर्जन भर अलग-अलग कत्ल के लिए एक मकान के मालिक और नौकर को फांसी की सजा हुई थी, और अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इन फैसलों को पूरी तरह खारिज कर दिया है। मकान मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर को तो हाईकोर्ट ने फांसी की दर्जन भर सजाओं से बरी करते हुए कहा है कि सीबीआई सुबूतों के आधार पर संदेह से परे यह साबित नहीं कर पाई कि ये दो लोग मुजरिम थे। 2006 में एक नाले से 8 बच्चों के कंकाल मिले थे, और इन दो आरोपियों से एक के तथाकथित बयान पर पुलिस ने पूरा केस खड़ा किया था कि किस तरह बच्चों से बलात्कार के बाद मालिक और नौकर उनके टुकड़े करते थे, उन्हें नाले में बहा देते थे, और उस वक्त शायद ऐसा भी बयान सामने आया था कि कुछ बच्चों के टुकड़े पकाकर खा भी लेते थे। अब हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच ने कहा है कि जांच एजेंसी ने परले दर्जे की लापरवाही से सुबूत जुटाए, ढंग से बयान भी दर्ज नहीं किया, कोई कानूनी औपचारिकताएं नहीं निभाईं, और गरीब नौकर को दैत्य बनाकर उसे इस मामले में फंसा दिया। अदालत ने यह भी माना है कि जांच की गंभीर खामियों के कारण निचली अदालत से सजा के बाद भी ये अपीलकर्ता चतुराई से निष्पक्ष सुनवाई से बच गए हैं। 2017 में इन्हें मिली सजा को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।
पंढेर नाम के मालिक और कोली नाम के नौकर पर 2006 में कत्ल, रेप, मानव तस्करी, और सुबूत मिटाने के आरोप थे। जब पंढेर के बंगले के पीछे से बच्चों के कंकाल मिलने शुरू हुए, तो उन खबरों से देश हिल गया था। बहुत से गरीब मां-बाप ने अपने बच्चे इस मामले में खोए थे, और वे इस मामले की सुनवाई में अपनी जमीन बेचकर भी इंसाफ की तलाश में लगे हुए थे। यह मामला खबरों में इतना अधिक आया था कि इसे सीबीआई को दे दिया गया था, और यूपी पुलिस की प्रारंभिक जांच के बाद आगे का काम सीबीआई ने किया था। अब हाईकोर्ट ने पूरी की पूरी जांच को घटिया, और खामियों भरी बताते हुए उसकी वजह से दोनों अभियुक्तों को बरी किया है। हम न तो निचली अदालत के फैसले पर कोई टिप्पणी करना चाहते, और न ही अब हाईकोर्ट से इन दो लोगों की रिहाई पर। लेकिन यह सवाल जरूर उठाना चाहते हैं कि पहली नजर में जो मामला इतना आसान लग रहा था, उस मामले की जांच अगर इतनी कमजोर की गई कि हाईकोर्ट के पास इन्हें छोडऩे के अलावा कोई विकल्प नहीं था, तो यह शर्मिंदगी की बात है, खासकर जांच एजेंसी के लिए, या उसके पहले सुबूत जब्त करने वाली यूपी पुलिस के लिए। बहुत से मामलों में सीबीआई के दाखिले के पहले राज्य पुलिस ही सुबूत जब्त करती है, और अगर उसमें कानून बारीकियों का ख्याल नहीं रखा जाता, तो फिर पूरा मामला ही कमजोर हो जाने का खतरा रहता है। अभियुक्तों के वकील, बचाव पक्ष के पास कानूनी नुक्तों के आधार पर सुबूतों को खारिज करवाने का हक रहता है, और एक ही सुबूत खामियों सहित जब्त करने के बाद उन्हें दुबारा बिना खामियों के जब्त करने की कोई गुंजाइश तो रहती नहीं है, नतीजा यह होता है कि पुलिस, या सीबीआई की जांच की लापरवाही बचाव पक्ष का हथियार बन जाती है, और फिर मुजरिमों के छूट जाने की बड़ी गुंजाइश खड़ी हो जाती है। इस मामले में इतने सारे कत्ल के बाद भी, निचली अदालत से इतनी-इतनी फांसियों की सजा पाने के बाद भी अगर हाईकोर्ट में लोग पूरी तरह छूट जा रहे हैं, तो यह देश की जांच और न्याय व्यवस्था के लिए शर्मिंदगी और फिक्र दोनों की बात है।
और यह बात तो आज हम इसलिए कर रहे हैं कि निठारी कांड देश का अपने किस्म का सबसे कुख्यात मामला था, और उसने देश को हिलाकर रख दिया था। ऐसा माना जा रहा था कि इंसानों की शक्ल में ये दो लोग हैवान थे, जो छोटे बच्चों से बलात्कार के बाद उन्हें काटकर, पकाकर खाते भी थे, और नाले में फेंक देते थे। अब ऐसा मामला भी अदालत में बिना कलफ, बिना नाड़े के पैजामे की तरह गिर पड़ा। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, सीबीआई की जांच के बाद अगर यह नतीजा निकला है, और अदालत की ऐसी टिप्पणी एजेंसी के खिलाफ आई है, तो इस बारे में जांच की बारीकियों पर सीबीआई और राज्य पुलिस दोनों को काम करना चाहिए।
हम इस मामले को जोडक़र तो यह बात नहीं बोल रहे, लेकिन देश भर में राज्य की पुलिस के तैयार किए गए बहुत से मामले अदालतों में रेत के महलों की तरह ढह जाते हैं क्योंकि जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों का न तो प्रशिक्षण ठीक होता है, न उन्हें लापरवाही से बचने की फिक्र रहती है। छत्तीसगढ़ में बेमेतरा की जिला अदालत से अभी एक फैसला हुआ जिसमें बिरनपुर गांव में एक झोपड़े में लगाई गई आग के मामले में जिम्मेदार बताए गए 8 लोगों को अदालत ने बरी कर दिया कि इन्हें बिना किसी भी सुबूत के गलत तरीके से पकड़ा गया था, पुलिस के पास कोई सुबूत नहीं थे, और जिले के तत्कालीन एसपी और एडिशनल एसपी ने अपनी निगरानी में एक छोटे पुलिस अफसर से जांच करवाई थी। बेमेतरा जिला अदालत के एक जज पंकज कुमार सिन्हा ने जिले के एसपी और एडिशनल एसपी के खिलाफ जांच करने के निर्देश पुलिस महानिदेशक और दुर्ग आईजी को दिए हैं। पुलिस ने एक झोपड़ेनुमा मकान में लगाई गई आग के वक्त आसपास खड़े 8 लोगों को गिरफ्तार करके उन पर मुकदमा चलाया था। यह घटना 10 अप्रैल की थी, और 6 महीने के भीतर ये सारे लोग छूट गए क्योंकि पुलिस कोई सुबूत पेश नहीं कर सकी।
जब राज्य की पुलिस अपने निकम्मेपन, समझ की कमी, या भ्रष्टाचार की वजह से जांच सही नहीं करती है, गवाही और सुबूत दर्ज करने में ही कानूनी खामियां छोड़ती है, तो मुजरिमों के बच निकलने की गुंजाइश बहुत रहती है क्योंकि अदालत किसी पर भी आरोप संदेह से परे साबित करने की उम्मीद रखती है। निठारी कांड पर यूपी पुलिस और सीबीआई की इस ताजा नाकामयाबी का देश के सभी राज्यों के पुलिस को अध्ययन करना चाहिए, अपने प्रदेश के ऐसे दूसरे मामलों का भी अध्ययन करना चाहिए, और अपने जांच अधिकारियों का कानूनी प्रशिक्षण भी करवाना चाहिए ताकि जांच की कमजोरी या खामी से मुजरिम बच न निकलें। जो सच में ही मुजरिम रहते हैं, उनका रिहा होकर समाज में खुला घूमना समाज के लिए खतरा भी रहता है।