राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अदालतों में घिरी सरकार
02-Oct-2022 2:46 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अदालतों में घिरी सरकार

अदालतों में घिरी सरकार

कल फिर सुप्रीम कोर्ट में एक निजी मुकदमे में छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तात्कालिक रूप से ही सही, घिरती हुई नजर आई है। कानून के जानकार कई लोग हैरान हैं कि क्या किसी राज्य के अफसर सचमुच ही इतनी लापरवाही से काम कर सकते हैं, और सरकार के खिलाफ ही सुबूत चारों तरफ छोड़ सकते हैं कि मुकदमों में माहिर लोग सरकार को कटघरे में ले जाएं? अदालती कामकाज के जानकार कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ सरकार का चौकन्नापन नहीं दिख रहा है, और किसी न किसी स्तर पर वकीलों और अफसरों में लापरवाही दिख रही है। मुकदमेबाजी से जुड़े तबकों की साख इतनी कमजोर हो गई है कि मामूली लोग भी घर बैठे बात करने लगते हैं कि किस तरफ का वकील किससे मिला हुआ है, और किस तरह अफसर ऐसे कमजोर मामले बना रहे हैं कि जिनसे अदालतों में जाकर दूसरे पक्ष को फायदा मिल सके। इन सब बातों से ऊपर अलग-अलग समय पर अलग-अलग जजों के पूर्वाग्रहों की भी चर्चा हो जाती है। मतलब यह कि अदालत से कोई हुक्म या कोई फैसला आए, उसके पहले ही लोग अपनी राय बना चुके रहते हैं। फिलहाल ताजा आम राय यही दिख रही है कि अदालत में सरकार कमजोर पड़ रही है, और इसके पीछे की वजहें अलग-अलग लोग अपनी-अपनी पसंद-नापसंद के हिसाब से अलग-अलग गिना देते हैं। सरकार और अदालत में कामकाज के जानकार कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सरकार को ऐसे वकील नहीं रखना चाहिए जो कि बिना बात के पांव पड़ते रहें, बल्कि ऐसे वकील रखना चाहिए जो कि कोई मामूली गलत बात होने पर भी सरकार के हाथ पकडक़र उसे रोक सकें।

छोटे माफिया पर डोजर...

पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुए कई किस्म के गलत काम आज सरकारी निशाने पर हैं, या अदालतों तक ले जाए गए हैं। लेकिन दूसरी तरफ आज जिन पर सरकार मेहरबान है, वे लोग उसी दर्जे के गलत काम कर रहे हैं, और अगली किसी सरकार के वक्त वे भी निशाना बन सकते हैं। लेकिन सरकारी मेहरबानी से होने वाले गलत कामों का मुनाफा इतना बड़ा होता है कि लोग अपना लालच रोक नहीं पाते। ऐसे में राजनीति में कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जो कि एक ही परिवार के दो लोगों को दो अलग-अलग पार्टियों में भेज देते हैं, और अधिक हद तक हिफाजत पा लेते हैं। कुछ लोग ऐसे भी रहते हैं जो विरोधी पार्टी के किसी नेता को रिश्तेदार बना लेते हैं, और उसका फायदा मिलते रहता है, और विपक्षी सरकार आने पर भी खतरा नहीं रहता। ऐसे मामले में जमीनों के इतने बड़े-बड़े कारोबार आज चर्चा में हैं कि लोगों का यह मानना है कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर ही यह भूमाफिया टूट पाएगा। फिलहाल तो ऐसे बड़े भूमाफिया के मुकाबले जो छोटे-छोटे भूमाफिया सिर उठाते हैं, सरकारी बुलडोजर उन्हीं छोटे सिरों को तोड़ता है, बड़े-बड़े सिर तो सरकार चलाते हैं।

रियायती वैक्सीन का दौर खत्म?

एक अक्टूबर से देशभर में कोविड वैक्सीन के बूस्टर डोज पर रियायत खत्म कर दी गई है। आज से यह करीब 400 रुपये खर्च कर निजी अस्पतालों में लगवाना होगा। कोविड वैक्सीन के दोनों डोज 6 से 9 महीने पहले ले चुके लोगों के लिए इसे ऐहतियातन, जरूरी बताया गया था। शुरू में ही इसे कीमत चुकाकर लगाने की बात की गई थी और निजी अस्पतालों को जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन बाद में यह मुफ्त किया गया। इसकी दो वजह बताई जा रही थी, एक तो निजी अस्पतालों ने रुचि नहीं दिखाई, दूसरी तरफ खरीदे जा चुके वैक्सीन लाखों की संख्या में खराब होने लगे। इसके बाद आजादी के अमृत महोत्सव का तोहफा बताते हुए 75 दिनों तक इसे मुफ्त लगाने का ऐलान किया गया। मगर, कुछ शुरुआती उत्साह के बाद लोगों ने इसमें रुचि लेनी बंद कर दी। छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में अनेक टीकाकरण केंद्र खोले गए लेकिन संख्या लोगों के नहीं पहुंचने के कारण घटानी पड़ी। जिन लोगों ने मुफ्त टीका लगवाने में दिलचस्पी नहीं ली, वे इसकी कीमत चुकाकर डोज अब लेंगे, इसकी उम्मीद कम ही है। सरकारी निर्देश के चलते निजी अस्पताल बूस्टर डोज लगाने से मना नहीं कर पा रहे हैं, पर प्रबंधकों का कहना है कि वैक्सीन के रखरखाव पर खर्च और बहुत जल्दी एक्सपायर हो जाने के चलते वे शुल्क लेकर भी इस अभियान का हिस्सा बनने के इच्छुक नहीं हैं। राज्य में सिर्फ 31 प्रतिशत लोगों ने ये डोज ली। 69 प्रतिशत लोगों का बूस्टर डोज को लेकर निश्चिंत हो जाना बताता है कि वे मानने लगे हैं कि कोविड अब महामारी के रूप में नहीं आएगा, आए भी बर्दाश्त कर लेंगे। यह अलग बात है कि मौतें अब भी हो रही हैं, कुछ राज्यों में अचानक केस बढ़ भी रहे हैं, साथ ही विशेषज्ञ सतर्क रहने की चेतावनी पर भी कायम हैं।

आईपीएस अब मिशन की ओर

हाल ही में छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा से व्यक्तिगत कारणों से वीआरएस लेकर नौकरी से अलग हुए आईपीएस धमेन्द्र गर्ग सामाजिक सेवा की ओर जाने का मन बना रहे है। गर्ग ने पिछले दिनों डीआईजी रहते पुलिस सेवा से त्यागपत्र दिया  है।  उनके इस कदम से राज्य कैडर के पुलिस अफसर अचरज में पड़  गए। लेकिन गर्ग को समझने और जानने वालों अफसरों में इस्तीफे को तयशुदा माना जा रहा है। प्रशासनिक हल्के में चर्चा है कि गर्ग के दो बेटे आईआईटी पासआऊट होने के बाद बैंगलोर में नौकरी कर रहे हैं। वही पुलिस सेवा में आने से पहले उनका परिवार आर्थिक रूप से सक्षम रहा है। हालांकि पुलिस सेवा में रहते एसपी के तौर पर उन्हें अच्छी पोस्टिंग नहीं मिलने का हमेशा मलाल रहा है। उन्हें एकमात्र बेमेतरा जिले में ही एसपी बनाया गया। सुनते है कि वह जल्द ही किसी मिशन सेे जुडक़र शिक्षा की मुहिम शुरू कर सकते है। बताते है कि वह नारायणपुर के रामकृष्ण मिशन जैसे कुछ अन्य मिशन में अपना वक्त देने का इरादा बना चुके है। बेटो के हाथ अच्छी नौकरी और मोटी पेंशन होने से उनका मिशन से जुडऩे का हौसला बढ़ा है। समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए गर्ग मिशन के जरिए उत्थान में कितने कामयाब होंगे यह अलग मसला है लेकिन उनके नए रूप को देखने आईपीएस बिरादरी भी उत्साहित है।

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