राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : किस राज्य में कौन सा चुनाव चिन्ह?
10-Oct-2022 4:52 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : किस राज्य में कौन सा चुनाव चिन्ह?

किस राज्य में कौन सा चुनाव चिन्ह?

महाराष्ट्र में शिवसेना के दो धड़ों के बीच चल रही लड़ाई में चुनाव आयोग ने यह तय किया है कि मुंबई के एक विधानसभा उपचुनाव में दोनों ही पार्टियां शिवसेना के धनुष बाण के चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगी। आयोग ने ठाकरे और शिंदे दोनों से ही दूसरे चुनाव चिन्हों में से कुछ छांटने के लिए कहा है। अब उद्वव ठाकरे की ओर से चुनाव आयोग से जो चिन्ह मांगे गए हैं, उनमें से त्रिशूल भी एक है। अपनी हिंदूवादी पहचान के चलते शिवसेना को त्रिशूल निशान माकुल भी बैठता है, लेकिन चुनाव आयोग के मुक्त चुनाव चिन्हों की लिस्ट में त्रिशूल दिख नहीं रहा है। ऐसा लगता है कि एक धर्म से जुड़े हुए इस हथियार को चुनाव चिन्हों की लिस्ट से इसी वजह से हटाया गया होगा। लेकिन इस कॉलम में चुनाव चिन्हों की चर्चा करने का एक मकसद यह है कि शिवसेना के विवाद से परे यह लिस्ट बड़ी दिलचस्प है। इसमें सेब को भी चुनाव चिन्ह रखा गया है, लेकिन अरूणाचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, पुडुचेरी, तमिलनाडु, केरल, और कर्नाटक को छोडक़र बाकी राज्यों के लिए। अब पता नहीं इन राज्यों में सेब को निशान क्यों नहीं रखा गया है। हो सकता है कि कुछ जगहों पर किसी क्षेत्रीय पार्टी ने राज्य स्तर पर इसे अपना निशान बनाया हो। ऐसे ही अलग-अलग बहुत से निशान कुछ-कुछ प्रदेशों के लिए नहीं हैं। जैसे ऑटोरिक्शा को आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में नहीं मांगा जा सकता। फलों की टोकरी को तमिलनाडु में नहीं मांगा जा सकता। चारपाई को केरल में नहीं मांगा जा सकता है, दरवाजे के हैंडल को उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में नहीं मांगा जा सकता। कान की बालियों को तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, और कर्नाटक में नहीं मांगा जा सकता। फुटबॉल को किसी भी उत्तर-पूर्वी राज्य में नहीं मांगा जा सकता। ऐसे और भी कई प्रतिबंध अलग-अलग चिन्हों को लेकर अलग-अलग प्रदेशों में हैं। जिन्हें राजनीति में दिलचस्पी हो वे चुनाव आयोग की वेबसाईट पर निशानों की लिस्ट देख सकते हैं। पहली नजर में छत्तीसगढ़ की हालत बेहतर लगती है जहां किसी भी निशान को मांगने पर रोक नहीं दिख रही है।

नाराजगी का असर होगा?

पटवारियों के मुख्यालय से गायब रहने, और नामांतरण-बटांकन के प्रकरणों में लेन-देन की शिकायतों से सीएम खफा हैं। उन्होंने कलेक्टर कॉन्फ्रेंस में अपनी नाराजगी का इजहार भी किया, और आदेश दिया कि एक ही जगह पर तीन साल से जमे पटवारियों का तबादला किया जाए।

तबादलों पर यह जानकारी सामने आ रही है कि प्रदेश में तीन साल से एक ही जगह पर पदस्थ पटवारी एक भी नहीं हंै। कई पटवारी तो सालभर में एक से अधिक हल्के घूम चुके हैं। ये अलग बात है कि सीएम की नाराजगी को देखकर पटवारियों की एक-दो तबादला सूची जारी हो सकती है।

पटवारियों को लेकर शिकायतें पहले भी आती रही हैं। पिछले सरकार में अमर अग्रवाल, और बृजमोहन अग्रवाल व प्रेम प्रकाश पांडेय ने राजस्व मंत्री रहते पटवारी तबादलों को लेकर कड़े दिशा-निर्देश जारी किए थे। बाद में मंत्रियों के समर्थक ही पटवारियों के समर्थन में आ गए, और फिर वही ढर्रा शुरू हो गया। ऐसे में इतिहास देखकर लगता नहीं है कि सीएम की नाराजगी का ज्यादा कुछ असर पड़ेगा।

सीएम बिना बना था दौरा? रद्द

प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया के बस्तर दौरा रद्द होने की पार्टी हल्कों में  जमकर चर्चा है। सुनते हैं कि पुनिया के चार दिन के बस्तर दौरे को लेकर सीएम को विश्वास में नहीं लिया गया था, और उनकी जानकारी के बिना कार्यक्रम तय कर लिया गया था। सीएम का भेंट-मुलाकात का कार्यक्रम चल रहा है। ऐसे में पुनिया का कार्यक्रम तय होने से उलझन थी। यह जानकारी पार्टी हाईकमान तक पहुंची, और फिर पुनिया का आना टल गया।

मुखिया का रुख अलग-अलग

सालभर पहले पुरानी बस्ती थाने में कुछ लोगों ने हुड़दंग मचाया, और पुलिस बल की मौजूदगी में एक पादरी की पिटाई कर दी। डीजीपी ने इस घटना को काफी गंभीरता से लिया। पहले टीआई को सस्पेंड कर दिया गया, और फिर रातों-रात एसएसपी अजय यादव को हटा दिया गया। यह भी संयोग है कि इस तरह की घटना हफ्तेभर पहले उसी पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र में हुई। इस बार कुछ असामाजिक तत्वों ने टीआई को ही पीट दिया। थाने में हुड़दंग जैसी घटनाएं एक-दो और जगहों पर हुई है। मगर इस बार डीजीपी अशोक जुनेजा ने रायपुर में बेहतर पुलिसिंग के लिए तारीफों के पुल बांध दिए। एक ही तरह की घटनाओं को लेकर पुलिस के शीर्ष अफसर के अलग-अलग रूख की जमकर चर्चा हो रही है।

हुंकार घोषणा पत्र में दर्ज होगी?

शराबबंदी को लेकर कांग्रेस की वायदाखिलाफी के खिलाफ भाजपा की महिला मोर्चा ने हुंकार रैली निकालने का ऐलान किया है। यह एक ऐसा संवेदनशील विषय है जिस पर भाजपा को अपनी सरकार के रहते विपक्षी आलोचनाओं और महिला समूहों से हुए आंदोलनों का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया था। भाजपा कहती है कि कांग्रेस ने गंगाजल लेकर इसकी शपथ ली थी, कांग्रेस इससे इंकार करती है। पर यह तो मानती है कि शराबबंदी उनके चुनावी वादे में शामिल था। अब जिस तरह से मंत्री और इस पर सिफारिश देने वाली समितियों के सदस्य बयान दे रहे हैं, उससे साफ है कि इस वादे के पूरा होने पर बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं। पर, भाजपा खुद सरकार में आएगी तो क्या वह शराबबंदी करेगी? लोग तो पूछेंगे, इसलिए आंदोलन के दौरान इस बारे में भी अपना रुख बता देना चाहिए। ([email protected])

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