राजपथ - जनपथ
सुन्दरराज बाहर जाएँगे ?
भानुप्रतापपुर चुनाव निपटने के बाद बस्तर आईजी पी सुंदरराज केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। चर्चा है कि उनकी पोस्टिंग हैदराबाद स्थित नेशनल पुलिस अकादमी में हो सकती है। सुंदरराज से पहले छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस राजीव माथुर अकादमी में रहे हैं, और वहां वो डायरेक्टर पद से रिटायर हुए।
आईपीएस के 2003 बैच के अफसर सुंदरराज लंबे समय से बस्तर में हैं। उन्हें काबिल अफसर माना जाता है, और उनके कार्यकाल में नक्सल हिंसा में भारी कमी आई है। कहा जा रहा है कि यदि सुंदरराज प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं, तो रतनलाल डांगी उनकी जगह ले सकते हैं। डांगी फिलहाल चंदखुरी पुलिस अकादमी में पदस्थ हैं।
छत्तीसगढ़ कैडर के करीब आधा दर्जन से अधिक अफसर केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इनमें रवि सिन्हा रॉ में स्पेशल डायरेक्टर हैं। इसके अलावा अमित कुमार सीबीआई, जयदीप सिंह आईबी, अमरेश मिश्रा एनआईए, अभिषेक पाठक, ध्रुव गुप्ता, और नेहा चंपावत व नीथू कमल अलग-अलग संस्थानों में कार्यरत हैं।
एक जिम्मेदार के खिलाफ शिकायतें
प्रदेश संगठन में बदलाव के बाद से कई चीजें सुधर नहीं पा रही है। कामकाज पहले से ज्यादा अव्यवस्थित दिख रहा है। नई जिम्मेदारी संभालने वाले कुछ पदाधिकारियों के कामकाज पर उंगलियां उठ रही हैं। इन्हीं में से एक नरेश गुप्ता भी हैं, जिन्हें प्रदेश कार्यालय मंत्री का दायित्व सौंपा गया है। गुप्ता से पहले सुभाष राव कार्यालय संभालते थे। दो दशक तक कार्यालय मंत्री रहने के बाद भी कभी उनके काम को लेकर शिकवा शिकायतें नहीं हुई, लेकिन उनके बाद थोड़े दिनों में ही नरेश गुप्ता के खिलाफ अलग-अलग स्तरों पर शिकायतें हो चुकी है। इनमें कुछ शिकायतें तो काफी हल्की है, जो कि पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
नरेश गुप्ता मुंगेली के रहने वाले हैं, और अरुण साव से पुराना परिचय रहा है। अरुण साव की पसंद पर नरेश गुप्ता को कार्यालय का प्रभारी बनाया गया है। कुशाभाऊ ठाकरे परिसर किसी फाइव स्टार होटल से बड़ा है। यहां रोजमर्रा का कामकाज आसान नहीं है। बताते हैं कि नरेश गुप्ता की अनुभवहीनता कहीं न कहीं कार्यालय के बेहतर संचालन में आड़े आ रही है। एक शिकायत यह हुई है कि केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के रायपुर प्रवास की जानकारी जिले के प्रमुख पदाधिकारियों तक को नहीं दी, और वो प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव के साथ तोमर के स्वागत के लिए पहुंच गए। सांसद सुनील सोनी रायपुर में ही थे, लेकिन उन्हें भी किसी ने सूचना नहीं दी। जबकि सूचना देने की जिम्मेदारी प्रदेश कार्यालय की होती है।
नरेश के खिलाफ एक और शिकायत की चर्चा खूब हो रही है। हुआ यूं कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के भोजन के समय खुद ही खाना परोसने में लगे रहे. जबकि वहां और कार्यकर्ता भी थे। पूरे समय माथुर के आगे-पीछे होते रहे। जबकि भानुप्रतापपुर चुनाव के चलते स्थानीय कार्यकर्ता कार्यालय से मार्गदर्शन का इंतजार करते रहे। इन सबके बावजूद नरेश गुप्ता को काफी जुझारू माना जाता है। हर चुनाव में वो आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों को लेकर काफी मुखर रहे हैं, और उनकी कई शिकायतों पर आयोग ने कार्रवाई भी की है। इन सबको देखते हुए नरेश के योगदान को देखते हुए शिकायतों पर ज्यादा गौर नहीं किया जा रहा है। फिर भी अब चुनाव नजदीक है। ऐसे में पार्टी नेताओं को छोटी-छोटी शिकायतों को दूर कर कामकाज को बेहतर करने की अपेक्षा भी है। देखना है नरेश गुप्ता कितना कुछ सुधार पाते हैं।
भूपेश की चेतावनी, एक नए टकराव का आसार
छत्तीसगढ़ केन्द्र और राज्य के बीच टकराव का एक बड़ा मैदान बन गया है। गैरभाजपा सरकारों वाले बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्य पिछले बरसों में लगातार ऐसा टकराव देख चुके हैं जब केन्द्रीय जांच एजेंसियां राज्य-सत्ता के इर्द-गिर्द के लोगों को घेरते दिखती हैं। ममता बैनर्जी से लेकर उद्धव ठाकरे तक अपने-अपने वक्त केन्द्र के खिलाफ बहुत खुलकर बोल चुके हैं, और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ रह चुकी शिवसेना के एक बड़े नेता संजय राउत को ईडी जिस तरह गिरफ्तार किया, और सौ से अधिक दिन जेल में रखा, उससे देश के सभी गैरभाजपाई राज्य हक्का-बक्का हैं। अदालत ने संजय राउत को जमानत देते हुए यह कहा कि ईडी ने जिस तरह से संजय राउत को गिरफ्तार किया, वह पहली नजर में गैरकानूनी कार्रवाई थी।
अब छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल पहली बार इतने साफ शब्दों में ईडी की चल रही कार्रवाई के खिलाफ कहा है। उन्होंने आधा दर्जन ट्वीट करके जिस तरह चेतावनी दी है, उससे यह साफ है कि राज्य सरकार के पास कुछ लोगों की ठोस शिकायतें पहुंची हैं, और ऐसा लगता है कि राज्य की पुलिस उन पर कोई कार्रवाई करे, इसके पहले मुख्यमंत्री केन्द्रीय एजेंसियों को चेतावनी देने की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने जिस तरह ईडी की पूछताछ के दौरान रॉड से पीटना, किसी का पैर टूटना, किसी को सुनाई देना बंद होना लिखा है, उससे लगता है कि सरकार के पास पुख्ता शिकायत है, जिस पर किसी भी पल कार्रवाई हो सकती है। यह राज्य और केन्द्र के बीच, उनकी एजेंसियों के बीच एक नया टकराव हो सकता है।
बड़ा कारोबार, प्यादे गिरफ्तार
मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के जिले दुर्ग में जिस तरह महादेव ऐप नाम का ऑनलाईन सट्टेबाजी का कारोबार चल रहा था, वह चलते हुए भी हक्का-बक्का करता था, और अब जब पुलिस इस कारोबार के छोटे-छोटे प्यादो को पकड़ रही है, तो इतने छोटे लोगों की धरपकड़ भी हक्का-बक्का करती है कि क्या इनसे बड़े कोई मुजरिम पुलिस को हासिल नहीं हैं? यह कारोबार इतने बड़े-बड़े नामों की चर्चा वाला है कि इसमें महज प्यादों की गिरफ्तारी जांच और कार्रवाई के नाम पर दिखावा दिख रही है। खबरों में जो जानकारी आ रही है, वह बहुत फिल्मी है, और संगठित सट्टे के कारोबार फिल्मी अंदाज के रहते भी हैं। महादेव ऐप से पूरे देश और दुनिया से दांव लगाए जा रहे थे, और चर्चा यही है कि केन्द्र सरकार की कुछ एजेंसियां इस मामले की जांच में भी लगी हुई हैं।
झपकी लेते ही गाड़ी बंद
सडक़ दुर्घटनाओं की एक वजह ड्राइवर को गाड़ी चलाते हुए झपकी आ जाना भी है। बस्तर के सुदूर डोडरेपाल स्कूल के एक छात्र भुवनेश्वर बैद्य ने ऐसी दुर्घटनाओं का हल निकालने की कोशिश की है। यहां चल रही विज्ञान प्रदर्शनी में वह एक चश्मा दिखाया गया है। दावा है कि इस चश्मे को पहनने पर ड्राइवर को झपकी लगते ही गाड़ी रुक जाएगी और इंजन भी बंद हो जाएगा। यह चश्मा गाड़ी के इंजन और एक्सीलेटर से कनेक्ट रहेगा। आंख बंद होने पर दोनों को कमांड मिलेगा और गाड़ी रुक जाएगी। तीन जिलों के 288 मॉडलों में इसे प्रथम पुरस्कार मिल गया है। अब राज्य स्तर के मेले में इसे प्रदर्शित किया जाएग। पर यह देखा गया है कि स्कूलों के विज्ञान मेले में प्रदर्शित किए जाने वाले अविष्कार आम लोगों के बीच इस्तेमाल के लिए आ नहीं पाते। इसके लिए कई चरणों की परीक्षण प्रक्रिया और निवेश की जरूरत पड़ती है। फिर भी एक दूरस्थ इलाके के स्कूली छात्र की इस कोशिश की तारीफ बनती है।
शराबबंदी लागू कराना किसका काम?
शराबबंदी पर फैसला मंत्रिमंडल को लेना है और लागू करना है। विधायक सत्यनारायण शर्मा तो मंत्री ही नहीं हैं, पर शराबबंदी पर बनाई गई उस समिति के प्रमुख हैं जिसकी सिफारिश महीनों से नहीं आई है और कब आएगी इसका पता भी नहीं। सरकार समिति की सिफारिश मानेगी या नहीं, किसी को पक्का पता नहीं। पर शराबंदी समिति के प्रमुख होने के हिसाब से कोई बजाय छत्तीसगढ़ सरकार के सीधे सत्यनारायण शर्मा के खिलाफ बैनर लेकर उतरा हो तो हर्ज ही क्या है? खासकर तब जब प्रदर्शन उनके निर्वाचन क्षेत्र के बिरगांव में हो रहा हो। बस इतनी ही बात जमी नहीं कि बैनर में संगठन का नाम तो छत्तीसगढ़ महतारी अधिकार मंच लिखा है, पर तस्वीर में एक भी महतारी नहीं दिख रही है।
उलझन के बीच पीएससी परीक्षा
छत्तीसगढ़ में आरक्षण पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद मेडिकल, तकनीकी कॉलेजों में दाखिला, वन, पुलिस और अन्य कई विभागों में भर्ती की प्रक्रिया रुक गई है। सीजीपीएससी में नियुक्तियों की सूची निकलने के ठीक पहले रोक देनी पड़ी। विधानसभा सत्र में प्रस्ताव पारित होने के बाद भी आगे की संवैधानिक और कानूनी प्रकिया स्पष्ट नहीं है। ऐसे में संविधान दिवस पर पीएससी ने परीक्षा कार्यक्रम जारी करने की परंपरा को बनाए रखा। आयोग का यह तर्क है कि प्रारंभिक परीक्षा का आरक्षण से कोई संबंध नहीं है। पिछले साल प्रारंभिक परीक्षा में एक लाख से अधिक अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इस बार आयोग के इस फैसले से हजारों अभ्यर्थियों की तैयारी बेकार हो जाने से बच गई। पर एक और बड़ी संख्या रह जाएगी जो मुख्य परीक्षा के लिए उत्तीर्ण होंगे। पिछले साल 2548 अभ्यर्थी सफल हुए थे। इस बार भी इसी के आसपास संख्या हो सकती है। दोनों वर्षों के सफल उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र और ज्वाइनिंग कब मिलेगी, यह तब तक स्पष्ट नहीं होगा जब तक विधानसभा में आने वाले प्रस्ताव और उसके बाद स्थिति साफ नहीं हो जाती। वैसे जिस तरह से 26 नवंबर को विज्ञापन जारी करने की परंपरा है, उसी तरह से नतीजे और नियुक्तियों के लिए भी समय-सीमा तय कर दी जाती तो दाखिले और नियुक्तियों की फंसी हुई सूची छोटी दिखाई पड़ती। जैसे सब इंस्पेक्टर के चयन की प्रक्रिया तो चार से चल रही है। कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया में भी विलंब हुआ है।