राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चार्जशीट पर टिकी खबरें, अब क्या?
22-Jan-2023 4:18 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चार्जशीट पर टिकी खबरें, अब क्या?

चार्जशीट पर टिकी खबरें, अब क्या?

छत्तीसगढ़ से जुड़े हुए कई मामले जिला स्तर की ईडी अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बहस का सामान बने हुए हैं, और अदालतों में पेश चार्जशीट के हिस्से खबरें बने हुए हैं। अब दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट का एक ऐसा फैसला आया है, जो कि पहली नजर में ऐसी तमाम रिपोर्टिंग की संभावना खत्म कर देने वाला दिखता है। जाने-माने जनहित वकील प्रशांत भूषण की एक पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है कि पुलिस या दूसरी जांच एजेंसियों द्वारा अदालत में पेश चार्जशीट को सार्वजनिक दस्तावेज नहीं माना जा सकता। अदालत का यह मानना है कि चार्जशीट का उजागर होना अभियुक्तों, शिकायकर्ता के हकों के खिलाफ जा सकता है, और जांच एजेंसी के लिए दिक्कत खड़ी कर सकता है। चार्जशीट की कॉपी अभियुक्तों को तो दी जाती है, लेकिन किसी और को इसे देने की बाध्यता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि चार्जशीट और उसके साथ अदालत में दाखिल दूसरे दस्तावेज जनता के लिए खोल दिए जाएंगे, या सरकारी वेबसाइट पर डाल दिए जाएंगे तो यह दंड प्रक्रिया संहिता के खिलाफ होगा, और इससे अभियुक्त, शिकायतकर्ता, और जांच एजेंसी के अधिकार प्रभावित होंगे।

आज छत्तीसगढ़ से जुड़े मामलों में अधिकतर रिपोर्टिंग अलग-अलग अदालतों में पेश चार्जशीट पर आधारित है, सुप्रीम कोर्ट का यह ताजा फैसला अगर यह मतलब रखता है कि चार्जशीट का खबर बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, तब फैसला हो जाने तक अदालत में दाखिल दस्तावेजों पर कोई खबर ही नहीं बन सकेगी। इससे अदालती कटघरे में खड़े लोगों के खिलाफ आज चल रही मीडिया-सुनवाई थम सकती है।

लेकिन छत्तीसगढ़ के दो बड़े वकीलों से आज सुबह इस बारे में बात करने पर उनकी यह राय थी कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मीडिया को किसी रिपोर्टिंग से नहीं रोकता, जो कि उसका बुनियादी अधिकार है। इस फैसले से फर्क सिर्फ यह पड़ेगा कि अदालतों से चार्जशीट और उसके साथ के दस्तावेज आरटीआई जैसे किसी अधिकार के तहत नहीं पाए जा सकेंगे, लेकिन मामले से जुड़े हुए वकीलों को तो उन्हें पाने का हक रहेगा ही, और उनसे लेकर मीडिया अपना काम जारी रख सकता है।

पहली नजर मेें सुप्रीम कोर्ट का यह मामला इन दस्तावेजों को सीधे हासिल करने पर रोक तो लगा रहा है, लेकिन वकीलों के पाए हुए ऐसे दस्तावेज को लेकर वह मौन है कि मीडिया उसका इस्तेमाल कर सकता है या नहीं, ऐसे में अभियुक्त यह उम्मीद कर सकते हैं कि मीडिया ऐसी खबरें छापना बंद कर देगा, और मीडिया यह उम्मीद कर सकता है कि इन खबरों को छापने पर अदालत ने किसी रोक का जिक्र नहीं किया है।

यह पिटीशन एक आरटीआई एक्टिविस्ट और खोजी पत्रकार सौरभ दास की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने लगाई थी, जिसमें मांग की गई थी कि जिस तरह पुलिस को एफआईआर 24 घंटे के भीतर वेबसाइट पर डालने का अदालती फैसला है, उसी तरह चार्जशीट को भी वेबसाइट पर डालने कहा जाए। अदालत ने इस अपील से असहमति जताई, और कहा कि चार्जशीट की तुलना एफआईआर से नहीं की जा सकती।

यह क्रिकेट अपमान कर गया...

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भारत और न्यूजीलैंड के बीच कल हुआ वनडे क्रिकेट बहुत से लोगों का अपमान कर गया। मीडिया, राजनीति, सरकार, और दूसरे तबकों के जिन लोगों को मैच का न्यौता मिलने की उम्मीद थी, उनमें से अधिकतर को निराशा हुई, और कुछ लोगों को तो मैच शुरू होने के कुछ मिनट पहले बिना किसी न्यौते के टिकट या पास भेज दिए गए। यह जाहिर था कि लोग इंतजार में तैयार बैठे तो नहीं रह सकते थे, और कई लोगों के ऐसे पास फेल हो गए, पड़े रह गए।
लेकिन दूसरी गड़बड़ी यह मानी जा रही है कि राज्यपाल को किसी ने आमंत्रित नहीं किया। कहने के लिए यह आयोजन बीसीसीआई का था, लेकिन सारा इंतजाम तो राज्य सरकार का था, सारी पुलिस राज्य की लगी हुई थी, स्टेडियम राज्य का था, और मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों सहित मैच में मौजूद थे। उनके अलावा बीसीसीआई के राजीव शुक्ला भी मौजूद थे जो कि छत्तीसगढ़ से ही राज्यसभा के सदस्य हैं। न राज्यपाल को न्यौता मिला, न विधानसभा अध्यक्ष को। दोनों जगहों पर अधिकारियों के लिए कुछ टिकटें मुफ्त में भेज दी गईं, या अधिकारियों ने खुद फोन करके इंतजाम किया।

ऐसा पता लगा है कि सामान्य शिष्टाचार भी नहीं निभाए जाने से राज्यपाल अनुसुईया उइके बहुत अपमानित महसूस कर रही हैं, और शायद राजभवन इस बारे में राज्य सरकार को कोई पत्र भी लिखे। राज्यपाल की चि_ी के बिना भी लोगों का यह मानना है कि यह सरकार और राजभवन के बीच चल रही तनातनी के बीच शिष्टाचार की एक गंभीर कमी का मामला है। राज्यपाल प्रदेश की संवैधानिक मुखिया होती हैं, और इतना बड़ा आयोजन जिसमें सररकार की बहुत बड़ी भागीदारी थी, उसे राज्यपाल के बिना निपटा देना कुछ गड़बड़ बात है।

लोगों को गड़बड़ यह भी लगा कि मुख्यमंत्री स्टेडियम में बैठे रहे, और पुरस्कार समारोह में राजीव शुक्ला ने उन्हें मैदान तक बुलाया भी नहीं। अभी कुछ महीने पहले छत्तीसगढ़ के कांग्रेस विधायकों के वोट से ही राजीव शुक्ला राज्यसभा सदस्य बने हैं, लेकिन वे कांग्रेस पार्टी के भीतर शायद इतने ताकतवर हैं कि उन्हें इस राज्य से कोई शिष्टाचार निभाना जरूरी नहीं लग रहा है। जो पार्टी लीडरशिप की तरफ से किसी राज्य में इस तरह पैराड्राप किए जाते हैं, वे राज्य की जमीन को पैरों तले रौंदने के अलावा और कुछ नहीं करते।

गए कुछ देखने, मिला...

भारत-न्यूजीलैंड वनडे क्रिकेट देखने जाने वालों को धोखा सरीखा हो गया। जो लोग जरा सी देर से पहुंचे, उन्हें न्यूजीलैंड के पांच विकेट गिरे हुए मिले। और सौ ओवर का यह मैच कुल 54 ओवर में खतम हो गया। न्यूजीलैंड की बहुत ही कमजोर पारी के बाद खेल में कोई रोमांच भी नहीं रह गया था, और दर्शक यह अधिक देख रहे थे कि क्या प्रसारण-कैमरा उनकी तरफ भी घूमता है? एक निराश दर्शक का मानना था कि वनडे की टिकट खरीदी, कई गुना अधिक दाम देकर ब्लैक मार्केट से मुश्किल में पाई, और मैच मानो टी-20 का देखने मिला।

विपक्ष में भी ठाठ-बाट

अंबिकापुर के एक बड़े होटल में प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति की दो दिनी बैठक शनिवार को निपटी। कार्यसमिति की व्यवस्था का पूरा जिम्मा केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह को दिया गया था, लिहाजा उन्होंने अपनी तरफ से खातिरदारी में कोई कसर बाकी नहीं  रखी। फिर भी कुछ बड़े नेता बेहतर व्यवस्था की उम्मीद पाले हुए थे। अमर अग्रवाल ने तो होटल पहुंचते ही व्यवस्थापकों से अपने लिए सुईट की मांग कर दी। इस पर व्यवस्थापकों ने हाथ खड़े कर दिए।

भाजपा के स्थानीय नेता, प्रदेश के बड़े नेताओं के नखरों से खफा थे और वो आपसी चर्चा में मोहन भागवत से सीख लेने की बात कह रहे थे जो कुछ दिन पहले अंबिकापुर आए थे और सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल के एक साधारण से कक्ष में ठहरे थे। यही नहीं, भागवत ने आम कार्यकर्ताओं के साथ लाइन में  लग कर खाना खाया। इससे परे पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर होटल पहुंचे तो वहां ढोल बज रहा था, उन्होंने गुस्से तत्काल ढोल-बाजा बंद करने के लिए कह दिया। होटल के कर्मचारी दौड़ते वहां पहुंचे, और  अजय को समझाया कि वो आपके लिए नहीं, बल्कि होटल में शादी का कार्यक्रम भी चल रहा है, उनके लिए बज रहा है। तब जाकर अजय शांत हुए।

कार्यसमिति के सदस्यों के ठहरने के तीन होटलों में कमरे बुक कराए गए थे। तामझाम देखकर राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश नाराज भी हुए। उनका कहना था कि राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के लिए एक कमरे में दो-तीन लोग ठहरते हैं। ऐसे यहां सबके लिए अलग इंतजाम करने की क्या जरूरत थी? मगर उन्हें अमर जैसों के ठाट का अंदाजा नहीं रहा।

बेक़ाबू डांस  
कार्यसमिति की बैठक के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया था। इसमें एक पूर्व महिला विधायक का डांस चल रहा था। यह देखकर एक पूर्व मंत्री बेक़ाबू हो गए, और मंच पर चढकऱ वो भी साथ में डांस करने लगे। तभी एक महिला नेत्री ने पूर्व मंत्री को फटकारा, और कहा कि किसी ने वीडियो बना लिया तो मुश्किल हो जाएगी। तब पूर्व मंत्री हड़बड़ाकर मंच से नीचे उतरे।  

इस्तीफ़ा दें, या नहीं?
नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल कार्यसमिति की बैठक में नहीं आए। वो अपने बेटे के खिलाफ रेप का केस दर्ज होने से परेशान हैं। चर्चा है कि उन्हें एक बड़े नेता ने फोन कर बैठक में न आने की सलाह दी थी।
कुछ लोग उन्हें इस्तीफा देने की सलाह दे रहे हैं, तो कई शुभचिंतक केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी का उदाहरण देकर समझा रहे हैं कि मिश्राजी ने भी बेटे के जेल जाने के बाद पद नहीं छोड़ा है। चंदेल उलझन में हैं।

पैसा वसूल नहीं हो पाया

इंडिया-न्यूजीलैंड के बीच अंतरराष्ट्रीय वनडे मैच सम्पन्न होने के साथ ही छत्तीसगढ़ के खेल इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। हजारों दर्शकों ने इसका भरपूर आनंद तो उठाया लेकिन खेल में रोमांच और उत्तेजना होती तो मजा अलग ही होता। न्यूजीलैंड की टीम 108 रन पर सिमट गई तभी पता चल चुका था कि अब मुकाबला एकतरफा है। न्यूजीलैंड टीम भी अगर मैदान में डटी रहती तो खेल करीब 9 बजे रात तक चलता। बहुत से लोगों ने कार्पोरेट बॉक्स, सिल्वर और गोल्ड श्रेणी की टिकट ली थी, जिसकी कीमत 10 हजार रुपये तक थी। दोपहर और शाम का लजीज भोजन भी टिकट में शामिल था। मैच जल्दी खत्म हो जाने के कारण जब स्टेडियम खाली होने लगा तो महंगी टिकट लेने वालों को भी यह अच्छा नहीं लग रहा था कि शाम के खाने का इंतजार किया जाए। हालांकि भोजन लगभग तैयार था, पर ज्यादातर लोगों को जल्दी खाना खा कर पैसा वसूल करने का तरीका ठीक नहीं लगा और वे बाहर निकल आये। उन्हें अपने फैसले पर तब अफसोस हुआ जब बाहर निकलने के बाद गाडिय़ां जाम में फंसने लगी। नया रायपुर से शहर आने का कोई भी रास्ता खाली नहीं दिखाई दे रहा था और दूरी तय करने में 2 से 3 घंटे लग गए। कई लोगों को तो अपने घर में ही मान-मनुहार करके देर रात खाना बनवाना पड़ा। उलाहना सुननी पड़ी,  जाम में फंस गए, इससे अच्छा वहीं रुक जाते। खाना खाकर निकलते तो रास्ता भी कुछ हद तक खाली मिल जाता।

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