राजपथ - जनपथ

तब से प्री-वेडिंग-शूट तक
आज संपन्न तबकों में शादियों के पहले प्री-वेडिंग-शूट का चलन खूब बढ़ गया है। महंगे फोटोग्राफर तरह-तरह की महंगी पोशाकों में, कई किस्म की महंगी लोकेशन पर होने वाले दूल्हा-दुल्हन के कई किस्म के फोटो खींचते हैं, और वीडियो बनाते हैं। फिर इन्हें शादी के कार्ड की तरह या सोशल मीडिया पर हफ्तों पोस्ट किया जाता है। शादी के पहले से हनीमून जैसा नजारा परिवार को भी देखने मिलता है, और सोशल मीडिया पर जुड़े हुए तमाम लोगों को भी।
अब ऐसे माहौल में इस अखबार के संपादक सुनील कुमार को अपने माता-पिता की शादी का एक ऐसा पर्चा मिला है जो कि सडक़ किनारे बंटने वाले गुलाबी कागज के पम्पलेट सरीखा छपा हुआ है। 28 जनवरी 1947 की शादी का यह पर्चा दूल्हे के परिवार के दर्जन भर लोगों का नाम बताता है, दूल्हे का नाम बताता है, शादी की तारीख, जगह बताता है। चलते-चलते आखिरी में वह दुल्हन के परिवार के बुजुर्गों के नाम भी बताता है, लेकिन इतने बड़े पर्चे में दुल्हन के नाम की कोई जगह नहीं है, कहीं उसका कोई जिक्र नहीं है, बस यही लिखा हुआ है कि फलां परिवार में बारात जाएगी। यह आजादी के कुछ महीने पहले का, पौन सदी पहले का कार्ड है जिसमें लडक़ी के किसी जिक्र की भी जरूरत नहीं थी। और आज प्री-वेडिंग-शूट तक समाज बड़ा लंबा सफर तय कर चुका है।
जब तक जेब पर लात नहीं
रेलवे स्टेशनों पर, और कई प्रदेशों के पुलिस के सोशल मीडिया पोस्ट में हिन्दी फिल्मों के मशहूर डायलॉग, और किरदारों का तरह-तरह से इस्तेमाल देखने मिलता है। लेकिन हिन्दुस्तान है कि यहां लोगों को सिखाई गई सफाई रास नहीं आती है। रविशंकर विश्वविद्यालय के बहुत साफ-सुथरे और हरे-भरे परिसर में दर्जनों सफाईकर्मी महिलाएं एक सरीखी लाल साडिय़ों में लगातार सफाई करते दिखती हैं, और सडक़ किनारे की जंगली घास और झाडिय़ों के बीच से भी गुटखे-तम्बाकू के एक-एक खाली पाउच बीनते हुए उनकी कमर दोहरी होती चलती है। लेकिन लोग हैं कि इस कैम्पस में गाड़ी रोककर दारू पीते रहते हैं, और खाने-पीने के खाली पैकेट के साथ-साथ प्लास्टिक की खाली गिलासें भी फेंक जाते हैं। हर रात यह होता है, और हर सुबह सफाई कर्मचारी महिलाएं यह गंदगी साफ करती हैं। आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुनियादी रूप से बहुत ही कमीना है, और वह हर सार्वजनिक जगह को बर्बाद करने को अपना हक मानता है। ऐसे लोगों को जुर्माना और सजा सुनाने के बजाय सरकारी खर्च से बड़े पैमाने पर ऐसी बारीक सफाई करवाना बहुत समझदारी की बात नहीं है। गंदगी फैलाने वाले लोगों पर जुर्माना सख्ती से लगाना चाहिए, क्योंकि जब तक जेब पर लात नहीं पड़ेगी, हिन्दुस्तानियों को सफाई और जिम्मेदारी नहीं सूझेगी।
आरक्षण पर अपने-अपने दांव
उत्तरप्रदेश में सक्रिय भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद की छत्तीसगढ़ में मौजूदगी दो फरवरी को दिखेगी। उनका आरक्षण के मुद्दे पर सीएम हाउस घेराव का कार्यक्रम है। आजाद इसमें खुद शामिल होने वाले हैं। वे एससी आरक्षण पर सरकार के रुख से नाराज हैं। इधर आरक्षण पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का रुख भी सामने आ चुका है। एससी, एसटी के अलावा सामान्य वर्ग का आरक्षण बढ़ाकर देने की उनकी मांग है। आम आदमी पार्टी ने बस्तर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि वे कांग्रेस, बीजेपी दोनों के रुख से संतुष्ट नहीं हैं। कांग्रेस की ओर से विधानसभा में पारित विधेयक को राजभवन में रोका जाना बीजेपी का पैंतरा बताया जा रहा है। बीजेपी की रणनीति आरक्षण पर सेफ गेम खेलकर धर्मांतरण के मुद्दे को जोर-शोर से उठाने का है। लंबित विधेयक में ओबीसी के प्रस्तावित 27 प्रतिशत आरक्षण कांग्रेस की किलेबंदी है। कुछ एससी और एसटी संगठन विधेयक के प्रावधानों से संतुष्ट नहीं हैं। इन संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है। 32त्न आरक्षण की मांग लेकर सर्व आदिवासी समाज ने राजधानी तक 380 किलोमीटर की पदयात्रा कल से शुरू कर दी है। अभी विधानसभा चुनाव की घोषणा में करीब 8-9 महीने बचे हैं। भले ही मुकाबला पारंपरिक होना तय हो पर, कोई शक नहीं कि आने वाले दिनों में और कई और राजनीतिक दल छत्तीसगढ़ की दंगल में वोटों का बंटवारा करने उतरेंगे। सभी का मकसद आरक्षण के मुद्दे पर मतदाताओं का ध्यान खींचने का दिखाई दे रहा है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अचानक छत्तीसगढ़ में यह सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। वरना रद्द की गई व्यवस्था सन् 2012 से लागू थी। उसके बाद सन् 2013 और 2018 में 2 विधानसभा चुनाव हो चुके। इनमें यह मुद्दा पीछे था। अभी बड़ा सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान में आरक्षण की स्थिति शून्य बनी हुई है। भले ही इस डेडलॉक को बेरोजगार युवा इसे तत्काल समाप्त करना जरूरी मान रहे हों, पर कोई भी दल किसी एक वैध व्यवस्था को अस्थायी तौर पर भी लागू करने की आवाज नहीं उठा रहा है।
यह चर्चा कैसे निकल पड़ी?
लोकसभा का बजट सत्र आज 31 जनवरी से शुरू हो गया है। पहला चरण 13 फरवरी तक चलेगा, दूसरा 13 मार्च से 6 अप्रैल तक। प्रदेश के लगभग सभी सांसद सत्र में भाग लेने के लिए दिल्ली रवाना हो चुके हैं। मगर कल से चर्चा सिर्फ दुर्ग के सांसद विजय बघेल के रवाना होने की है। यह कहा गया कि वे बिलासपुर में पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के घर आयोजित विवाह समारोह में भाग लेने के लिए पहुंचे थे और अचानक उन्हें दिल्ली से बुलावा आ गया। उनको कार्यक्रम छोडक़र दिल्ली रवाना होना पड़ा क्योंकि मंत्रिमंडल का विस्तार होने वाला है। यह सही है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा हो रही है और कई पद रिक्त भी है। विधानसभा चुनाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व बढ़ाने की पर्याप्त संभावना भी दिखाई दे रही है। पर क्या यह विस्तार बजट सत्र चलने के दौरान किया जाएगा? नहीं के बराबर इसकी गुंजाइश है। यह जरूर हो सकता है कि 13 फरवरी को जब सत्र का पहला चरण समाप्त हो और मंत्रिमंडल का विस्तार हो। हमारी जानकारी के मुताबिक स्वयं सांसद के खेमे से ही उनके दिल्ली प्रवास को मंत्रिमंडल से जोडऩे की चर्चा निकाली गई जबकि अभी इस बारे में तत्काल कोई निर्णय नहीं हो रहा है कि उन्हें अचानक दिल्ली जाना पड़े।