राजपथ - जनपथ

इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
छत्तीसगढ़ में भाजपा की चुप्पी रहस्यमय है। राज्य में इतना कुछ हो रहा है, लेकिन भाजपा के बड़े-बड़े नेता मुंह में दही जमाए बैठे हैं। ऐसा लगता है कि हर कुछ हफ्तों में जब पार्टी के नेताओं पर ऊपर से कोई दबाव पड़ता है, तो उनके मुंह से बचते-कतराते कोई बयान निकल जाता है, बाकी वे अपनी हिफाजत की फिक्र करते बैठे रहते हैं।
भाजपा के नौजवान नेता ने अपनी पार्टी के बड़े नेताओं का हाल बताया कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के कुछ मामलों के खिलाफ हाईकोर्ट में पिटीशन लगाने की सलाह उन्होंने दी तो बड़े-बड़े नेताओं को मानो सांप सूंघ गया। उनमें से कोई खुद तो तैयार हुए ही नहीं, किसी के मुंह से यह भी नहीं निकला कि चलो तुम ही पिटीशन लगा दो। कांग्रेस सरकार के लिए यह बड़ी सहूलियत की नौबत है कि विपक्ष मानो कोमा में पड़ा है। छत्तीसगढ़ का अगला विधानसभा चुनाव शायद मोदी-शाह के भरोसे लड़ा जाएगा, और उसी उम्मीद में राज्य के भाजपाई शांत बैठे हैं।
जुए के पैसे से मेला
छत्तीसगढ़ में फसल आने के बाद जगह-जगह मेले मड़ई का आयोजन होता है। मनोरंजन, खरीदारी और मेल मिलाप का यह एक अच्छा अवसर होता है। पहले यह आयोजन 2-4 गांवों के लोग आपस में सामूहिक चंदा करके करते थे। बाद में जब पंचायतों के पास फंड आने लगे तो वहां से भी अनुदान मिलने लगा। पर, इन दिनों एक नया तरीका इजाद कर लिया गया है। अब मेले में फड़ बांटे जाते हैं। यानी जुआ खेलने के लिए जगह दी जाती है। एक फड़ की बोली एक लाख रुपए या उससे अधिक हो सकती है। युवा और बुजुर्ग मेले में सरेआम होने वाली इस जुआ खोरी में शामिल तो होते ही हैं, बच्चे भी सीखने लग जाते हैं। महासमुंद, धमतरी, सरसीवा, मगरलोड, अर्जुनी आदि थाना क्षेत्रों से हाल ही में फड़ लगाने वाले कई लोगों की गिरफ्तारी भी पुलिस ने की है। पर ज्यादातर मामलों में इसे नजरअंदाज ही किया जाता है। जुआ खेलने वालों का कहना है कि सबसे पहले तो हम थाने में ही सेटिंग करते हैं। कई बार दिखावे के लिए पुलिस को कार्रवाई जरूर करनी पड़ती है लेकिन उनकी सहायता से ही यह संभव हो पाता है।
बच्चों का निवाला
छत्तीसगढ़ में कुपोषण के खिलाफ लड़ाई किस तरह लड़ी जा रही है, उसका एक उदाहरण है यह। बस्तर ब्लॉक में एक जगह विश्रामपुरी है, जहां प्राथमिक शाला की बच्चियों के लिए आश्रम बनाया गया है। कल शाम को कुछ लोग यहां से गुजरे तो बच्चों की थाली पर उनकी नजर गई। खाने में थोड़ा चावल और पतली दाल के अलावा कुछ नहीं था। सब्जी भी गायब। बच्चों बताया कि रोज ही ऐसा खाना मिलता है। यह बच्चे उम्र में छोटे प्राथमिक शाला में पढऩे वाले हैं और प्राय: गरीब आदिवासी परिवारों से हैं। शासन की ओर से तो इन्हें अच्छा खाना देने के लिए पूरा फंड मिलता होगा, लेकिन सरकारी कर्मचारी इन बच्चियों का निवाला छीन रहे हैं। उन्हें लगता होगा जिंदा रखने के लिए इनको इतना ही देना काफी है। शासन का निर्देश है कि अधीक्षिका को 24 घंटे हॉस्टल में ही रहना है। पर यहां उनकी सुरक्षा से जुड़ा सवाल भी है। वह 3 दिन से हॉस्टल से गायब हैं।
ध्वनि प्रदूषण कम करने की पहल
राजधानी रायपुर में एक बार फिर कानफोड़ू डीजे बंद कराने की मांग लेकर आए सामाजिक संगठनों को कलेक्टर एसपी ने आश्वस्त किया है। इसे लेकर पहले भी गाइडलाइन जारी कर थानेदारों को निर्देश दिया गया था। कुछ कार्रवाई भी हुई। 29 जनवरी को ही राखी, नवागांव मे एक साउंड सिस्टम जब्त कर कोलाहल अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कड़े निर्देश जारी किए हैं, सीधे कलेक्टर को जिम्मेदार बताया गया है, पर अधिकतर मामलों में पुलिस तब कार्रवाई करती है जब नागरिक इसकी शिकायत करते हैं। कई बार नियम तोडऩे वाले लोग इतने रसूखदार होते हैं कि पुलिस हाथ डालने से बचती है। बीते साल नवंबर में वेलकम फेस्टिवल के नाम पर एम्स परिसर में ही तीन दिन तक डीजे बजता रहा। इसकी शिकायत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से भी की गई थी। कल सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अफसरों से बातचीत के दौरान इस बात पर भी नाराजगी जताई कि थाने से शिकायत करने वालों का नाम उजागर कर दिया जाता है। शहर में जिस तरह से चाकूबाजी की घटनाएं हो रही हैं, उन्हें हमले का खतरा महसूस होता है। चिंतित, जागरूक नागरिकों के साथ बैठक कर उन्हें आश्वस्त करना तो ठीक है, पर प्रशासन को उन धार्मिक संगठनों और विभिन्न समुदायों के प्रमुखों को भी हिदायत देनी चाहिए जो शोभायात्रा, रैली या बरात बिना डीजे नहीं निकालते। इस बीच एक अच्छी खबर रायपुर के जैन समाज की ओर से आई। समाज ने तय किया है कि शादियों पर अब डीजे बजेगा, शादियां भी दिन में ही होगी। पहले यह रायपुर में लागू किया जाएगा, फिर प्रदेश के दूसरे शहरों में भी।
डीएफओ ऑफिस का सूचना पटल
कोंडागांव के ये डीएफओ आगाह कर रहे हैं, अपनी लाचारी बता रहे हैं या खुद के ईमानदार होने की डुगडुगी बजा रहे हैं, यह पता नहीं चल रहा है। यह पर्चा किसके लिए चिपकाया गया है यह भी साफ नहीं है। ठेकेदारों, सप्लायरों के लिए तो हो नहीं सकता। यदि यह पत्रकारों के लिए है तो उनकी ओर से भी इसका जवाब आना चाहिए।
सरगुजा, सिंहदेव और कांग्रेस
बैकुंठपुर विधायक अंबिका सिंहदेव के पति अमिताओ घोष की फेसबुक पोस्ट के पीछे की भावना यह हो सकती है कि वे परिवार और बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। पर इस बात को क्या सार्वजनिक रूप से उजागर करना जरूरी था? क्या दोनों के बीच आपस में इस विषय पर कोई बातचीत नहीं हुई और हुई तो सहमति नहीं बनी? राजनीति है ही उठापटक का फील्ड। फिर कोरिया में कांग्रेस की राजनीति में तो भारी उथल-पुथल है ही। जिले के विभाजन को लेकर सिंहदेव की असहमति थी। हाल में पूर्व मंत्री भैयालाल राजवाड़े के बयान से भी अप्रिय स्थिति पैदा हो गई थी। वे संसदीय सचिव जरूर हैं, पर अकेले नहीं, दूसरे विधायकों को भी अपना कद बढ़ाने के मौके मिले हुए हैं। स्व. रामचंद्र सिंहदेव की विरासत को संभालने के मकसद से उन्होंने जरूर चुनाव की राजनीति में उतरना ठीक समझा हो पर मौजूदा परिस्थिति तब की तरह नहीं हैं। पारिवारिक कारणों के अलावा शायद उनके जीवनसाथी ने इस विषय पर भी गौर किया हो।
यह संयोग ही है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने अगला चुनाव लडऩे को लेकर अपनी अनिच्छा जताई है। इधर बैकुंठपुर में भी आसार दिखाई दे रहा है कि सिंहदेव परिवार चुनाव मैदान से बाहर हो जाएगा। यदि सिंहदेव बिरादरी के ये दोनों सदस्य 2023 के विधानसभा चुनाव में सक्रिय नहीं रहे तो इसका कोरिया, सरगुजा में काफी असर दिखाई देगा। ([email protected])