राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : रहिमन निज मन की व्यथा...
05-Feb-2023 4:01 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : रहिमन निज मन की व्यथा...

रहिमन निज मन की व्यथा...

बैकुंठपुर विधायक अंबिका सिंहदेव की प्रतिक्रिया के बाद उनके पति अमिताव घोष रुके नहीं बल्कि फेसबुक पर उन्होंने कई आरोप और लगा दिए हैं, जो पहले से ज्यादा गंभीर हैं। उन्होंने इस बात को 100 फीसदी गलत बता दिया कि विधायक पत्नी के विरुद्ध कहे गए कथित अपशब्दों की वजह से उन्होंने उनको राजनीति छोडऩे की सलाह दी है। उन्होंने न केवल विधायक पर बल्कि उनके निजी सहायकों पर अपने को अपमानित करने का आरोप लगाया है। तीन बार अपने पीटे जाने का जिक्र किया है। स्व. रामचंद्र सिंहदेव के फैसले पर भी सवाल किया है कि ऐसी कौन सी विवशता थी कि वे अपने जीवन के अंतिम दो साल में अंबिका सिंहदेव को अपना उत्तराधिकारी बनाकर चले गए। बैंकुंठपुर के मतदाताओं और विधायक के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में पति की नई प्रतिक्रिया पर क्या असर होगा, यह सवाल तो बाद का है, अनेक लोगों ने यह कहा है कि उन्हें पति-पत्नी के बीच की असहमति या विवाद को इस तरह सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खुद को सही साबित करने में सब कुछ बिखर जाएगा। कुछ ने कहा है कि जब आप उनके राजनीति में आने पर सहमत नहीं थे तो उनके चुनाव प्रचार में क्यों पहुंचे थे। ज्यादातर लोगों ने कामना की है कि शांत मन से विचार विमर्श करें और परिवार एकजुटता और मधुरता से रहे। कुछ ने इसी विषय पर अलग से पोस्ट डाली हैं- स्त्री कभी हारती नहीं, उसे समाज क्या कहेगा, कहकर डराया जाता है। एक ने लिखा- मेरी व्यथा सुनकर शायद आपकी आंखों में आंसू आ जाए, पर पारिवारिक विषय मेरा अपना है, दुनिया का नहीं। फेसबुक पर कहने का उद्देश्य सहानुभूति अर्जित करना हो सकता है, उद्देश्य संबंधों को बचाए रखने का कतई नहीं। संभव है आर्थिक अपेक्षाएं पूरी नहीं हो रही हों, या पत्नी के प्रति हीन भावना घर कर रही हो...।

जब सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल ही दी गई और मंच सबके लिए खुला हो तो ऐसी प्रतिक्रियाओं का आना स्वाभाविक है। रहीम कह गए हैं- रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखी गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बांटि न लैहैं कोय। यानि, आपकी व्यथा मन में रखें लोग सुनकर हंसी उड़ाएंगे। दुख कोई बांटेगा नहीं।

कांग्रेस को अपने गोल में घेरती भाजपा

धर्मांतरण, धार्मिक पहचान, आदिवासी बनाम वनवासी ऐसे मुद्दे हैं जिन पर भाजपा वर्षों से राजनीति करती आई है। आरक्षण पर भी उसका नजरिया आरएसएस से मिलता-जुलता है जो इसकी समीक्षा करने की मांग उठाता है। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के दूसरे भागों में भी पिछले 9-10 साल से भाजपा का इन पर प्रयोग लोकसभा चुनावों में सफल हो रहा है, जबकि विधानसभा चुनावों में कारगर नहीं रहा। सन् 2018 के चुनाव में किसानों की नाराजगी, भ्रष्टाचार, आउटसोर्सिंग, बी टीम जैसे मुद्दों के अलावा एंटी इंकमबेसी के चलते बीजेपी की जबरदस्त हार हुई। 68 सीटों के साथ कांग्रेस के वोट शेयर में 2013 के मुकाबले सीधे 10 फीसदी की एकमुश्त वृद्धि हुई थी। उस वक्त भाजपा ने अब की बार 65 पार का नारा दिया था।

बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे के जोर पकडऩा भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है। बागेश्वर धाम बाबा के रायपुर प्रवास पर कांग्रेस ने उनके विवादित बयानों पर अधिकारिक रूप से प्रतिक्रिया देने से परहेज किया। अब इस समय तुलसीदास कृत रामचरित मानस चर्चा में है। कुछ दोहों को संशोधित करने की मांग यूपी के पिछड़े वर्ग के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने उठाई, बाद में बिहार से तेजस्वी यादव ने। देशभर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस पर लगातार बहस चला रखी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी पूछे गए सवाल का जवाब दिया और विनोबा भावे का जिक्र करते हुए मीडिया से कहा कि ग्रंथों में जो ग्रहण करने योग्य है उसे मानें, सब जस का तस मानना जरूरी नहीं है। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की प्रतिक्रिया आ गई। उन्होंने कहा कि सीएम बताएं कि चौपाई का कौन सा हिस्सा हटाना चाहिए? आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, उन्हें आदिवासी कहा जाए या वनवासी- इस पर भी कांग्रेस भाजपा का अलग-अलग नजरिया है। सीएम ने दो दिन पहले कहा कि आदिवासी जंगलों के मालिक हैं, उन्हें वनवासी कहना उनका अपमान है। इधर आबकारी मंत्री कवासी लखमा पहले ही कहते आए हैं आदिवासी जंगल के भगवान हैं, वनवासी नहीं। उनका कांकेर और रायपुर से बयान आया है कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं। हिंदू अलग तरह से पूजा करते हैं, हम अलग।

इन सब मुद्दों पर बहस का होना असल मुद्दों से मतदाताओं को भटकाने का अच्छा तरीका है। किसी राजनीतिक दल की सफलता इसमें निहित है कि वे चुनाव में अपनी पसंद पर विपक्ष को उलझा दे। भाजपा अगले विधानसभा चुनाव के लिए इस दिशा में तेजी से बढ़ते दिखाई दे रही है।

छत्तीसगढ़ से संयुक्त राष्ट्र तक

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पुराने वक्त से प्रचलित मोटा अनाज कही जाने वाली कोदो-कुटकी सरीखे कई किस्म की फसलों को बढ़ावा देने में लगे हैं, और अभी-अभी प्रधानमंत्री से भी इन फसलों, मिलेट के लिए वाहवाही पा चुके हैं। अब संयुक्त राष्ट्र संघ में काम करने वाले छत्तीसगढ़ से गए आनंद पांडेय ने आज वहां का एक पोस्टर भेजा है कि किस तरह वहां 14 से 17 फरवरी तक भारत सरकार की तरफ से एक मिलेट प्रदर्शनी लग रही है जिसके लिए दुनिया भर के लोगों को वहां आकर सुपर फूड, सुपर ग्रेंस, और वंडर ग्रेंस कहे जाने वाले मिलेट्स के व्यंजन चखने का न्यौता दिया गया है। अब छत्तीसगढ़ से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक मिलेट का बोलबाला इसलिए भी है कि 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष बनाया गया है। शहरी जिंदगी में उटपटांग खा-खाकर जो लोग मोटे हो गए हैं, उन्हें भी अपना वजन और शुगर लेवल कम करने के लिए मिलेट सुझाया जाता रहा है, और अब जाकर वह सरकारी बढ़ावा देख रहा है। भूपेश बघेल के भेजे मिलेट-तोहफे के जवाब में अमिताभ बच्चन ने भी शुभकामनाएं भेजी हैं, और इससे छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों के असंगठित किसानों की कमाई का एक नया जरिया भी शुरू हो सकता है।

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