राजपथ - जनपथ

स्पीकर और बृजमोहन
छत्तीसगढ़ विधानसभा को नए उपाध्यक्ष मिले हैं जिन्हें काम करने का अधिक मौका भी अब तक नहीं मिल पाया है। यह इस सरकार के कार्यकाल का आखिरी बरस चल रहा है, और सदन के दिन वैसे भी गिने-चुने होते चले जा रहे हैं, इसलिए विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने यह तय किया कि उपाध्यक्ष को आसंदी सम्हालने का, और सदन चलाने का अधिक मौका दिया जाए ताकि उन्हें इसका तजुर्बा भी हो जाए। अब इस बात सदन के बाहर मीडिया के कैमरों से मुखातिब भाजपा के एक सबसे वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने बिल्कुल अलग तरीके से रखा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने डॉ. चरणदास महंत से कुछ ऐसी बातें कह दी हैं कि वे दो दिन से विधानसभा नहीं आ रहे हैं। जब बृजमोहन के इस बयान की चर्चा किसी ने महंत से की, तो उन्होंने कहा कि यह शरारत की बात है, वरना उन्होंने तो उपाध्यक्ष को अधिक मौका देने के हिसाब से आसंदी उन्हें अधिक समय के लिए दी। उनका कहना था कि वे तो मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम में भी मौजूद थे, इसलिए नाराजगी में किसी बहिष्कार का तो सवाल ही नहीं उठता।
तोहमत लगाने का खेल
ईडी ने राज्य सरकार के जिन चार ऑफिसों में जाकर फाईलें जब्त की हैं, या जानकारियां मांगी हैं, उनसे एक तस्वीर उभरकर सामने आ रही है। इन विभागों या दफ्तरों ने अगर उद्योगों या खनिज कंपनियों को कोई नोटिस देने के पहले नोटशीट नहीं लिखी है, फाईल तैयार नहीं की है, तो ईडी इसे दुर्भावना और लापरवाही से की गई कार्रवाई मान रही है। अब पता लगा है कि इस पूछताछ में कुछ अफसर दूसरे अफसरों पर यह तोहमत लगा रहे हैं कि उनके कहे हुए उन्होंने जांच के आदेश दिए थे, या नोटिस जारी किया था। लेकिन ऐसे जवाबों से बात बन नहीं रही है, और हो सकता है कि इन अफसरों को आमने-सामने बिठाकर उनसे एक साथ पूछताछ की जाए।
चुनाव तक सरगर्मियां तेज
पिछले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह, और उनकी पत्नी राज्य के एसीबी-ईओडब्ल्यू में दर्ज एफआईआर को खत्म करवाने में नाकामयाब रहे। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से अमन सिंह के पक्ष में हुए फैसले के खिलाफ जितना लंबा आदेश लिखा है उसके बाद उन्हें कोई अदालती हिफाजत मिलना बचा नहीं दिखता है। ऐसे में तीन हफ्ते के अदालती-संरक्षण के बाद राज्य सरकार की एजेंसियां आगे कार्रवाई करने के लिए आजाद रहेगी। अनुपातहीन संपत्ति के मामलों पर पिछले इतने महीनों में भी अदालती रोक के बावजूद जानकारियां तो जांच एजेंसी तक पहुंच ही रही थीं, और अब एसीबी-ईओडब्ल्यू बहुत तेजी से कार्रवाई कर सकती हैं। आज इन एजेंसियों के मुखिया डी.एम.अवस्थी जल्द ही रिटायर होने वाले हैं, और पुलिस-प्रशासनिक महकमों में यह सुगबुगाहट है कि इन गिने-चुने हफ्तों में वे कितना करिश्मा कर दिखाएंगे, या दिखाना चाहेंगे? अभी मंत्रिमंडल ने आईजी-एडीजी रैंक के एक संविदा पद को मंजूरी दी है, और लोग यह भी अटकल लगा रहे हैं कि क्या इसका अवस्थी के रिटायर होने के बाद से कुछ लेना-देना है? जो भी हो, राजधानी रायपुर के तेलीबांधा में मौजूद एसीबी-ईओडब्ल्यू दफ्तर में तीन हफ्ते बाद से चुनाव तक सरगर्मियां तेज रहना तय है।
ईडी के ठिकाने
छत्तीसगढ़ में ईडी के अफसरों ने शहर के चारों तरफ अपना ठिकाना बना लिया है। चर्चा है कि राजधानी के होटल के पूरे एक फ्लोर के साथ अलग-अलग इलाकों में फ्लैट, फार्म हाउस किराए पर लेकर काम-काज संचालित किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि अमलेश्वर के एक कालोनी में चार-पांच फ्लैट किराए पर लिए गए हैं। इसी तरह शहर के आउटर में एक फार्म हाउस को भी उन्होंने किराए पर ले रखा है। कहा जा रहा है कि लंबी पूछताछ के लिए फार्म हाउस का उपयोग किया जाता है। कुल मिलाकर ईडी ने छत्तीसगढ़ को स्थायी निवास बना लिया है। इतना ही नही, ईडी के कुछ अधिकारियों ने अपनी फैमिली को शिफ्ट कर लिया है और कहते हैं कि बच्चों का दाखिला भी राजधानी के स्कूलों में करा दिया है, ताकि बार-बार आने-जाने का झंझट न रहे। हालांकि मुख्यमंत्री भी कई बार कह चुके हैं कि ईडी चुनाव तक यही रहने वाली है। उनकी तैयारियों को देखकर तो मुख्यमंत्री की बात सही दिखाई पड़ रही है।
पूछताछ के अनुभव
राज्य में ईडी की कांग्रेस नेताओं पर छापेमारी के बाद उनसे पूछताछ का सिलसिला चल रहा है। कांग्रेसियों से रोजाना 8 से 10 घंटों तक पूछताछ की जा रही है। आपसी चर्चा में कांग्रेसी इस बात से राहत महसूस कर रहे हैं कि उनके दबाव के कारण अब पूछताछ में कड़ाई नहीं की जा रही है। ईडी पर लगातार ये आरोप लगते रहे हैं कि वे पूछताछ के नाम पर प्रताडि़त कर रहे हैं। थर्ड डिग्री के इस्तेमाल को लेकर पीएम, एचएम तक शिकायत की गई है। कांग्रेसियों को लगता है कि शिकायतों का असर हुआ है। पूछताछ के बाद एक कांग्रेसी ने अपने करीबियों को बताया कि ईडी का बयान लेने का तौर-तरीका बिलकुल अलग है। शुरूआत के एक-दो दिनों तक कोई पूछताछ नहीं होती। कई घंटों तक कमरे में बिठा दिया जाता है। एकाध बार कोई अधिकारी आते हैं और एक-दो सवाल करके फिर चले जाते हैं। ईडी दफ्तर में घंटों अकेले बैठना ही अपने आप में सजा से कम नहीं है।
होली पर भ्रम
होली जलने और खेलने को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। पंचांग के अनुसार होली 6 तारीख को जलेगी। आमतौर पर होलिका दहन के दूसरे होली खेलने की परंपरा है, लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि होलिका दहन के एक दिन बाद यानी 8 तारीख को होली खेली जाएगी। ऐसे में सोशल मीडिया पर होलिका दहन और खेलने के दिन को लेकर चर्चा हो रही है। लोगों को भ्रम से बचाने के लिए एक मैसेज काफी वायरल हो रहा है कि होली खेलने का दिन पता करने के लिए ठेके पर जाएं और यह पता कर लें कि ठेका किस बंद रहेगा ? इससे दो फायदे होंगे। एक तो होली खेलने का दिन भी पता चल जाएगा और आपकी होली की तैयारी भी हो जाएगी।
नए आईपीएस को जोहार...
केंद्र सरकार ने हाल ही में नियुक्ति पाने वाले कई आईपीएस अधिकारियों को कैडर अलॉट किया। इनमें से एक महिला पत्रकार ने इस केक की तस्वीर सोशल मीडिया पर डालकर पूछा कि बताएं मेरे मित्र को किस राज्य का कैडर मिला है। इसका एक जवाब नहीं हो सकता था। ज्यादातर लोगों कहा, छत्तीसगढ़ और झारखंड दोनों जगह अभिवादन के लिए जोहार कहा जाता है। कोई एक राज्य बताना हो तो आपके सवाल में कोई दूसरा हिंट भी होना चाहिए। जवाब मिला-झारखंड।
बाबाओं पर भरोसे का नतीजा
जो लोग बाबाओं और उनके चमत्कारों को देखकर अभिभूत हो जाते हैं, आंख मूंदकर उनके चरणों में लोट कर सारी समस्याओं के दूर होने भरोसा रखते हैं, उनके लिए सबक है महासमुंद जिले की घटना।
यहां के पतेरापाली के जय गुरुदेव मानस आश्रम का संचालक रमेश ठाकुर पुलिस गिरफ्त में है। आश्रम के तीन और बाबा पहले ही गिरफ्तार कर लिए गए थे। तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक और साधना के जरिए इलाज का दावा करने वाले इन बाबाओं ने एक बच्ची को एक पेड़ के पास ले जाकर 5 घंटे तक पीटा। मासूम के मुंह में जलती लकड़ी ठूंस दी। बच्ची का शरीर कई जगह से जल गया। आईसीयू में भर्ती मासूम जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है।
हाल ही में राजधानी में देखा गया कि ?दो अलग-अलग भव्य धार्मिक सम्मेलन हुए, जिनमें कोई कंठी ताबीज बांट रहा है तो कोई बिना बताए मन की बात जानने और दुख दूर करने का दावा कर रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इन्हें महिमा मंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे आयोजनों में जुटने वाली भीड़ को हमारे जनप्रतिनिधि और नेता भी वोटरों के रूप में देखते हैं। ये बाबा राजनीतिक दलों के एजेंडे को धर्म का आवरण पहनाकर प्रचारित करते हैं। बदले में हमारे लीडर अंधविश्वास और चमत्कार के भ्रामक दावों को प्रश्रय देते हैं। बागबाहरा के बाबा रमेश ठाकुर को इस बिजनेस में आए अभी कुल जमा एक साल ही हुआ है। वह शायद राजनीतिक हस्तियों से ऐसा संरक्षण नहीं पा सका, इसलिए जेल पहुंच गया।