राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : ऑनलाइन में वेटिंग, ट्रेन में कन्फर्म
14-Apr-2023 4:15 PM
राजपथ-जनपथ : ऑनलाइन में वेटिंग, ट्रेन में कन्फर्म

ऑनलाइन में वेटिंग, ट्रेन में कन्फर्म

रेलवे की ज्यादातर सेवाएं ऑनलाइन हो चुकी है। अब मोबाइल ऐप पर लोग देखते हैं कि स्टेशन पर उनकी ट्रेन कब पहुंचने वाली है, फिर घर से निकलते हैं। पर यह कई बार धोखा हो  जाता है। ऑनलाइन चेक करने पर दिखता है कि ट्रेन 10 मिनट बाद पहुंचने वाली है, लेकिन स्टेशन पहुंचने के एक घंटे बाद भी पहुंच सकती है।

यहां तक तो ठीक है, पर चार्ट प्रिपेयर्ड होने के बाद भी सही जानकारी नहीं मिले तो? कोरबा से 11 छात्र-छात्राओं का एक दल डोंगरगढ़ घूमने गया। वापसी टिकट ऑनलाइन बुक कराई। रिजर्वेशन चार्ट तैयार हो जाने के बाद भी उनका नाम प्रतीक्षा सूची में ही दिख रहा था। फिर भी लौटना तो था ही। यह सोचकर वे स्टेशन पहुंच गए कि चलो जनरल में बैठ लेंगे। कुछ फाइन कटेगा तो देखा जाएगा। फाइन इसलिए कि वेटिंग की ऑनलाइन टिकट में यदि बर्थ नहीं मिली तो आपको बिना टिकट यात्री माना जाता है। वे गोंडवाना एक्सप्रेस के आने पर जनरल डिब्बे की ओर बढ़े, फिर ख्याल आया कि चलो एक बार टीटीई से कोई जुगाड़ देखते हैं। स्लीपर में जगह मिल जाए तो थोड़ा आराम रहेगा। टीटीई ईमानदार निकला-उसने बताया, आपकी टिकट तो कंफर्म हो चुकी है। ये-ये आपका बर्थ नंबर है, बैठ जाइये। छात्र-छात्रा खुशी से उछले फिर अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। बैठकर फिर उन्होंने अपनी टिकट का स्टेटस चेक किया। आईआरसीटीसी का ऐप अब भी वेटिंग ही बता रहा था। कोरबा में उतरते तक उनके टिकट का स्टेटस यही रहा। गनीमत थी कि ये बर्थ खुद टीटीई ने एलॉट किए थे। पर ऐसे अनेक, खासकर परिवार के साथ जाने वाले यात्री होंगे जो ऑनलाइन इंफर्मेशन को सही मानकर अपनी यात्रा रद्द कर देते होंगे।

फैसला क्या हसदेव के लिए उम्मीद है?

सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा में यूनिवर्सिटी के लिए आवंटित 6000 एकड़ जमीन को रद्द कर दिया है। पहले हाईकोर्ट ने आवंटन रद्द किया था, उसके बाद वेदांता सुप्रीम कोर्ट गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वेदांता ने फ्राड प्रक्रिया अपनाई थी। जिस जमीन के पार करते ही अभयारण्य शुरू हो जाता हो और दो-दो नदियां गुजरती हों, उसे किसी उपक्रम को कैसे दिया जा सकता है। अब यह भूमि असली आदिवासी ग्रामीणों को वापस की जाएगी। फैसले के विस्तृत अध्ययन से तथ्य और स्पष्ट होंगे, लेकिन यह साफ है कि नदियों और अभयारण्य के साथ छेड़छाड़ को तथा आवंटन प्रक्रिया में धोखाधड़ी को सुप्रीम कोर्ट ने गलत माना है। हसदेव में कोयला खदानों के विरोध के भी इसी तरह के बिंदु हैं। आंदोलन कर रहे आदिवासियों को अपनी बेदखली के अलावा उन्हें और पर्यावरण पर काम करने वालों की चिंता है कि यहां कोयला खदानों का विस्तार होने से प्रकृति, आजीविका और वन्यजीवों को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई किसी तरह नहीं की जा सकेगी। हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक के आवंटन को लेकर अलग-अलग याचिकाएं शीर्ष अदालतों और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दायर हैं। अभी इन पर सुनवाई पूरी नहीं हुई हैं। वेदांता पर आए अदालती आदेश में हसदेव के लिए लड़ रहे लोगों को भरोसे की एक उम्मीद दिखाई दे रही है।

कलेक्टरों के फेरबदल पर नजर  

छत्तीसगढ़ में बड़े प्रशासनिक फेरबदल की खूब चर्चा है। कहा जा रहा है कि आजकल में आईएएस अफसरों के ट्रांसफर की बड़ी सूची निकलने वाली है। कई जिलों के कलेक्टर भी बदले जाएंगे। राज्य में इस साल विधानसभा चुनाव हैं और 6-7 माह का समय बचा है। इसके बाद कलेक्टरों की बदली की संभावना कम ही बचेगी। ऐसे में चुनाव कराने के हिसाब से तबादले होंगे। प्रमोटी आईएएस अफसरों को ज्यादा मौका मिलने की संभावना जताई जा रही है। वैसे भी राज्य प्रमोटी अधिकारियों को कलेक्टरी करने का खूब मौका मिल रहा है। चर्चा है कि कुछ कलेक्टरों की अदला-बदली की जाएगी, तो कुछ को परफार्मेंस के आधार पर मंत्रालय में बिठाया जा सकता है। इस फेरबदल में बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर संभाग ज्यादा प्रभावित होगा। रायपुर और दुर्ग संभाग के वो जिले जहां मुख्यमंत्री का भेंट मुलाकात होना, वहां के कलेक्टर बच सकते हैं। तबादलों की चर्चाओं के बीच कलेक्टरी मिलने का इंतजार कर रहे अफसरों की बेचैनी बढ़ गई है।

आईपीएस भी कतार में

आईएएस के साथ आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर के चर्चा है। बेमेतरा में हिंसा के बाद कानून व्यवस्था को लेकर भी विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिल गया है। चुनावी साल में विपक्ष को मुद्दा देना नुकसानदायक हो सकता है, लिहाजा बड़ी संख्या में आईपीएस अफसर इधर-उधर हो सकते हैं। खासतौर पर पुलिस अधीक्षक के ट्रांसफर किए जाएंगे। इनमें उन एसपी को हटाया जा सकता है, जो लंबे समय से कप्तानी कर रहे हैं,क्योंकि इन पर चुनाव आयोग की भी नजर रहती है। राजधानी के एसएसपी का भी जाना तय माना जा रहा है, उनकी जगह दुर्ग एसपी को रायपुर की कमान दी जा सकती है। कांकेर एसपी को दुर्ग की कप्तानी मिलने की चर्चा है।  बेमेतरा सहित अन्य जिलों के पुलिस अधीक्षकों को बदलने की भी चर्चा हो रही है। रतन लाल डांगी की एक बार फिर फ़ील्ड में वापसी संभव है, उन्हें बस्तर आईजी बनाया जा सकता है। वे रोज़ अपनी असंभव योग-मुद्राएँ ट्विटर पर पोस्ट करके सीएम को याद दिला रहे हैं कि उनके पास सिफऱ् योग-मुद्रा का काम है।

बंगलों के किस्से

संवैधानिक और अन्य जगहों पर बैठे लोग जाने अनजाने में ऐसी तुच्छ हरकत कर बैठते हैं, जो कि हंसी मजाक का विषय बन जाता है। ऐसे ही प्रदेश के सरकारी विवि के एक कुलपति ने तो अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद सरकारी बंगला खाली करने के पहले वहां के आम, गंगा इमली, अन्य फलों के अलावा फूलों तक को तुड़वाकर ले गए। बताते हैं कि बोरी में भरते वक्त कुछ आम जमीन पर गिर गए थे इस पर कुलपति पत्नी ने कर्मचारियों को जमकर उलाहना दी। अब हाल यह है कि नए कुलपति को बंगले का आम या गंगा इमली चखना होगा, तो उन्हें अगले मौसम का इंतजार करना होगा।

कुछ लोग याद करते हैं कि कई साल पहले राजभवन में नए वर्ष और तीज त्योहारों के मौके पर अफसर, और कारोबारी लोग मिठाई भेंट करते थे। बाद में प्रथम महिला के निर्देश पर राजभवन के कर्मचारी मिठाई बेचने में लग जाते थे, और पूरी राशि प्रथम महिला को दी जाती थी। यही नहीं, बंगला खाली करने के बाद एक ट्रक गिफ्ट व अन्य सामान अपने निजी बंगले में भेज दिए। इस तरह के बड़े लोगों के किस्से आज भी लोगों की जुबान पर है।

दीवारों को कब्जाने की होड़

देश में हुए पहले आम चुनावों से लेकर अब तक वाल पेंटिंग एक असरदार कैंपेन टूल रहा है। जो प्रत्याशी ज्यादा खर्च नहीं कर पाते वे भी ब्रश और रंग के साथ अपने समर्थकों को दीवार रंगने के लिए भेज देते थे। रेडियो, दूरदर्शन, न्यूज चैनल, विशालकाय कटआउट, फ्लैक्स, पोस्टर, होर्डिंग, बैनर-पोस्टर और अत्यंत विस्तृत सोशल मीडिया के दौर में भी इसका जलवा कम नहीं हुआ है। अब चुनावों में होने वाले भारी-भरकम खर्चों के बीच वाल पेंटिंग पर बहुत कम व्यय होता है। 90 के दशक में लोकसभा चुनाव कैंपेन के लिए इसका अधिक इस्तेमाल हुआ। सरकारी दीवारों को रंगा जाने लगा, निजी इमारतों को बिना अनुमति बदरंग किया जाने लगा। तब, चुनाव आयोग ने नियम बनाया कि सरकारी इमारतों, संपत्तियों में वाल पेंटिंग नहीं की जा सकेगी। यहां तक कि सरकारी योजनाओं का प्रचार किया गया हो तब भी उसे मिटाया जाएगा। निजी संपत्ति, दीवारों में यदि पेंटिंग की जाती है तो संपत्ति के स्वामी की लिखित मंजूरी जरूरी होगी। होड़ ऐसी बढ़ी कि लोग टिकट की  दावेदारी करने के लिए भी चुनाव के साल भर पहले से ही दीवारों पर कब्जा करने लगे हैं। अभी चुनाव आचार संहिता का मसला भी नहीं है। चुनावी रणनीति में माहिर भारतीय जनता पार्टी ने अब इसे ऑर्गेनाइज कैंपेन का रूप दे दिया है। पार्टी के स्थापना दिवस पर दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा ने इस अभियान की शुरूआत कर की। वहां 14 हजार दीवारों को चिन्हित किया गया, जहां पार्टी अभी से नारे लिख डालेगी। कहा गया है कि यह काम सन् 2024 के चुनाव तक जारी रहेगा।

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इसी अभियान में दो दिन के जगदलपुर प्रवास पर गए हैं। यह भी तय किया गया है कि जिन केंद्रीय योजनाओं को राज्य सरकार ने ठीक से लागू नहीं किया उस पर भी दीवारों में लिखा जाएगा। जैसे- मोर आवास, मोर अधिकार। वैसे कांग्रेस के नेता अपने स्तर पर यह अभियान अभी से शुरू कर चुके हैं। पर यह 2024 के लिए नहीं 2023 के लिए है। टिकट की उम्मीद रखने वाले इनमें ज्यादा हैं। कुछ टिकट दोबारा मिलने की उम्मीद से भी। जनवरी माह में डॉ. विनय जायसवाल की ओर से मनेंद्रगढ़ में राजमार्गों पर बने पुलिया में वाल पेंटिंग कराई। भाजपा कार्यकर्ता इसके विरोध में उतर गए। प्रशासन को काम रुकवाना पड़ेगा। देखना होगा कि चुनाव आते-आते कोई दीवार खाली बचेगी या नहीं।

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