राजपथ - जनपथ
सीएम के सामने भी झूठी शिकायतें !
सीएम भूपेश बघेल के भेंट-मुलाकात का कार्यक्रम अंतिम चरण में है। सीएम करीब 70 से अधिक विधानसभाओं में लोगों से मिल चुके हैं। उनकी समस्याओं का निराकरण कर चुके हैं। कई बार राजनीतिक कारणों से शिकवा-शिकायतेें भी होती रही हैं, लेकिन सीएम इतने अलर्ट रहते हैं कि तुरंत शिकायतों की पड़ताल करवा देते हैं। झूठी शिकायत पर शिकायतकर्ता को लज्जित भी होना पड़ा है।
रायपुर पश्चिम में भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में एक महिला ने राशन कार्ड नहीं बनने की शिकायत कर दी। सीएम ने स्थानीय विधायक विकास उपाध्याय की तरफ देखा, और फिर तुरंत फूड अफसरों से जांच करने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद सच्चाई सामने भी आ गई। महिला का न सिर्फ राशन कार्ड बना था, बल्कि राशन भी ले रही थी।
कुछ इसी तरह की शिकायत बेमेतरा में भी हुई थी। तब एक व्यक्ति ने कह दिया था कि उनके यहां 10 हजार से अधिक बिजली बिल आए हैं। शिकायतकर्ता को तुरंत जांच होने की उम्मीद नहीं थी। सीएम ने तुरंत बिजली अफसरों को शिकायतकर्ता के घर दौड़ाया, और पुराने बिजली बिल भी मंगवाए। यह साफ हुआ कि दो साल से शिकायतकर्ता ने बिजली बिल ही नहीं पटाए थे।
रायपुर पश्चिम के भेंट-मुलाकात कार्यक्रम से पहले सीएम उस वक्त चकित रह गए, जब एक-एक कर 61 समाज के प्रतिनिधि मंडलों ने उनसे मुलाकात की। वो यह जानकर खुश भी हुए कि एक ही विधानसभा में इतनी बड़ी संख्या में अलग-अलग समाज के लोग रहते हैं। विशेषकर रायपुर पश्चिम कुछ हद तक भिलाई की तरह है जिसे मिनी भारत कहा जाता है। खैर, सीएम ने उदारतापूर्वक सभी को सामाजिक भवन बनाने के लिए 25 लाख तक आर्थिक मदद भी दी।
आबकारी में हडक़ंप
आबकारी कारोबार में कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग की ईडी पड़ताल कर रही है। कारोबारियों, और अफसरों के यहां छापे डाले गए, लेकिन किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। बताते हैं कि रोजमर्रा की पूछताछ से आबकारी अफसर-कर्मी इतने हलाकान हो चुके हैं कि विभाग के सहायक आयुक्त से लेकर निरीक्षक तक के करीब 25 फीसदी लोग छुट्टी पर चले गए।
चर्चा तो यह भी है कि ईडी ने आबकारी विभाग से जुड़ी प्लेसमेंट एजेंसी, कारोबारियों पर शिकंजा कसा, तो काफी कुछ बाहर निकल गया। हल्ला तो यह भी है कि ईडी आने वाले दिनों में कई और बड़े लोगों को निशाने पर ले सकती है। जितनी मुंह, उतनी बातें। देखना है आगे क्या होता है।
कवच सुरक्षा का दावा हवा में
बिलासपुर रेल जोन के सिंहपुर और शहडोल स्टेशनों के बीच रेड सिग्नल को एक मालगाड़ी ओवरशूट कर गई और सामने खड़ी दूसरी मालगाड़ी से टकरा गई। इंजन में आग लग गई। पायलट को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और दोनों ट्रेनों में सवार गार्ड और सहायक पांच चालक बुरी तरह जख्मी हो गए। टक्कर दो मालगाडिय़ों के बीच हुई। सामने यात्री ट्रेन होती तो हादसा कितना बड़ा हो सकता था, अनुमान लगाया जा सकता है।
पिछले साल 4 मार्च 2022 को रेल मंत्री अश्विनी उपाध्याय एक ट्रेन पर सवार हुए थे। सामने खड़ी दूसरी ट्रेन के जैसे ही नजदीक पहुंची वह बिना ब्रेक दबाये अपने-आप रुक गई। इसकी तस्वीरें और वीडियो रिलीज किया गया था। यह दुर्घटना रोकने की तकनीक ‘कवच’ का परीक्षण था। संसद में भी इसे मंत्री जी ने ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए वक्तव्य दिया था। यह घोषणा भी की गई थी कि सर्वाधिक व्यस्त मार्गों पर कवच प्रणाली शुरू करने पर तेजी से काम किया जाएगा। रेलवे की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिसंबर 2022 तक 1455 किलोमीटर ट्रैक पर कवच सुरक्षा प्रणाली शुरू की जा चुकी है। इनमें पूर्वोत्तर के राज्य और दिल्ली से मुंबई को जोडऩे वाले रूट शामिल हैं। कुछ दक्षिण के राज्य हैं। बिलासपुर रेलवे जोन सर्वाधिक कोयला डिस्पैच करता है। इसके चलते रेलवे की आमदनी में सबसे बड़ा योगदान भी इसी का होता है। इस खनिज संपदा का छत्तीसगढ़ के यात्री नुकसान भी उठाते हैं। जोन से गुजरने वाली ट्रेनों को जगह-जगह मालगाडिय़ों को रास्ता देने के लिए रोका जाता है। जाहिर यहां ट्रैक अधिक व्यस्त हैं, तो दुर्घटनाओं की आशंका भी ज्यादा है। इसके बावजूद जोन कवच सुरक्षा की घोषणा फिलहाल हवा में है, वरना बुधवार की सुबह हुई दुर्घटना टल जाती। कुछ दिन पहले यूपी के सुल्तानपुर में भी ऐसी ही दुर्घटना हुई थी।
सामूहिक आत्महत्या पर सवाल
जशपुर जिले के डूमराडूमर गांव में एक आदिवासी दंपती और उसके दो मासूम बच्चों को फांसी पर लटका देखकर सबसे मान लिया कि वह आत्महत्या ही है। भाजपा के दो अलग-अलग दल जांच पर गए। प्रदेश की कमेटी ने उस पर कर्ज से लदे होने व गरीबी से त्रस्त होने का आरोप लगाया। राज्यपाल को ज्ञापन भी दिया। जिले के भाजपा नेताओं ने अलग कमेटी बनाकर जांच की और पाया कि उसके पास आर्थिक संकट नहीं था। प्रशासन ने आनन-फानन रिपोर्ट बनाई ताकि उस पर कोई आंच न आए। कहा कि उसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा था। इन सब बयानबाजियों के बीच किसी ने तह तक जाने की कोशिश नहीं की कि आखिर आत्महत्या क्यों की गई, इसका जवाब क्यों नहीं मिल रहा है। घटना के बाद से ही राजनीतिक और प्रशासनिक घटनाक्रम इस तरह तेज हो गए कि पुलिस ने ज्यादा छानबीन करने की कोशिश नहीं की। अब इस बात पर सवाल किया जा रहा है कि क्या सचमुच यह आत्महत्या ही है। यह कहा जा रहा है कि जिस फंदे पर मृतक राजूराम लटका मिला, उसकी ऊंचाई से सिर्फ तीन इंच ऊपर था। फांसी पर लटकने के दौरान शरीर में खिंचाव चाहिए जो राजू और उसकी पत्नी दोनों के फंदे की कम ऊंचाई में मुमकिन नहीं है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दम घुटने से मौत की बात तो कही गई है पर फोरेंसिक रिपोर्ट अब भी नहीं आई है। दो दिन पहले गांव में किसी से उसका महुआ तोडऩे के नाम पर भारी विवाद हुआ था और मृतक ने ऐलान किया था कि वह अब महुआ के लिए जंगल नहीं जाएगा। राजू के पिता की 10 साल पहले हत्या हो गई थी। इसके लिए दोषी करार दिए गए लोग कुछ दिन पहले ही गांव लौटे थे। मृतक के भाई का कहना है फांसी वाले दिन वह मुझसे मिलने आया था, काफी देर तक सहज बातचीत होती रही। ऐसे में सवाल उठता है कि वह आत्महत्या क्यों करेगा। घटना के तुरंत बाद इसमें राजनीति होने लगी, जिससे पुलिस को जांच से बचने का मौका मिल गया। यदि सुसाइड भी है तो इस घटना से उपजे सवालों का जवाब पुलिस को ढूंढकर केस फाइल करने के बारे में सोचना चाहिए।
और यहां शिमला मिर्च ने बर्बाद किया
उत्पादन अधिक हो और मांग कम तो ऐसी नौबत देश के किसी भी राज्य में आ सकती है। पंजाब जिसे उन्नत खेती और प्रगतिशील किसानों के लिए जाना जाता है, ठीक उसी तरह शिमला मिर्च को सडक़ पर बिखेर रहे हैं, जैसा साल में दो चार बार अपने छत्तीसगढ़ में टमाटर बिखरा मिलता है। वहां शिमला मिर्च लोग एक रुपये किलो में भी खरीदने के लिए तैयार नहीं। वैसे रायपुर, बिलासपुर के बाजारों में शिमला मिर्च 30 से 40 रुपये किलो में बिक रहा है।