राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : तीन दशक पहले के नक्सली हमले
27-Apr-2023 4:14 PM
राजपथ-जनपथ : तीन दशक पहले के नक्सली हमले

तीन दशक पहले के नक्सली हमले

दंतेवाड़ा के अरनपुर में आईईडी ब्लास्ट कर माओवादियों ने सरकार और सुरक्षा बलों के कुछ समय पहले तक किए जा रहे इस दावे को गलत ठहराने की कोशिश की है कि अब वे कमजोर हो रहे हैं और बड़ा नुकसान करने की स्थिति में नहीं हैं। पिछले माह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बस्तर दौरे पर यह बात दोहराई थी कि लोकसभा चुनाव से पहले बस्तर से नक्सल समस्या का अंत कर दिया जाएगा। पर, यह घटना बताती है कि नक्सलियों ने भी अभी हार नहीं मानी है और सुरक्षा में लगे जवानों और आम लोगों को, बस्तर में शांति के लिए अभी और कीमत चुकानी पड़ेगी, साथ ही धैर्य रखना पड़ेगा। हर बार सुरक्षा बल और सरकार नए सिरे से नक्सली हिंसा को समाप्त करने का संकल्प लेती है पर यह  समस्या तीन दशक से ज्यादा पुरानी हो चुकी है।

बस्तर में 32 साल पहले 20 मई 1991 को सबसे पहला ब्लास्ट किया गया था। लोकसभा चुनाव के दौरान फरसगांव और बंगोली गांव के बीच नक्सलियों ने मतदान दल को विस्फोट से उड़ाया। बंगोली से मतपेटी लेकर वापस लौट रही टाटा 407 गाड़ी को गांव से 500 मीटर की दूरी पर विस्फोट से उड़ाया गया। इस हमले में 12 लोग शहीद हुए जिनमें मतदान कराने गई टीम के अलावा जवान भी शामिल थे। वाहन में सवार चिंगनार प्राथमिक स्कूल के शिक्षक गिरजा शंकर यादव भी थे, जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं। उनके अलावा एक जवान और एक कोटवार जिंदा बचे। जोरदार विस्फोट के साथ सभी कई फीट दूर जाकर गिरे। जिंदा बचे जवान ने तुंरत कोटवार और शिक्षक को मेड़ की ओट में छिप जाने कहा। जवान ने हौसला नहीं खोया और वह खुद मेड़ की पीछे से विस्फोट करने के बाद फायरिंग कर रहे नक्सलियों से मुकाबला किया। दो तीन किलोमीटर वे पैदल चलकर एक दूसरे गांव पहुंचे, जहां उन्हें मदद मिली।

इसके बाद साल दर साल बारूदी सुरंग नक्सली बिछाते रहे और सुरक्षा में लगे जवान हताहत हो रहे। सोशल मीडिया पर डॉ. धीरेंद्र साव ने परसदा के अधिवक्ता मोहन ठाकुर के हवाले से बताया है कि सर्चिंग के लिए निकले सुरक्षा बलों पर पहली बार बारूद का विस्फोट कर हमला 4 जून 1992 को मड़ईगुड़ा में किया गया था। इसमें 18 पुलिस जवान शहीद हुए थे। शहीद होने वालों में खल्लारी के दो बेटे घनश्याम ठाकुर व शकुर सिंह ठाकुर शामिल थे। हमला तब हुआ था जब सर्चिंग करके टीम दंतेवाड़ा के गोलापल्ली की ओर से लौट रही थी। शहीद हुए घनश्याम ठाकुर वाहन चला रहे थे। उनके पुत्र इस समय मुख्यमंत्री की सुरक्षा टीम में तैनात हैं।

पूर्व प्रचारक का पूर्व सीएम के खिलाफ वीडियो

आरएसएस के एक पूर्व प्रचारक के स्टिंग ऑपरेशन की खूब चर्चा है। यह स्टिंग ऑपरेशन संघ से जुड़े एक कार्यकर्ता ने किया, जो न्यूज पोर्टल से भी जुड़े हैं। बाद में पोर्टल से वीडियो को हटा दिया गया। तब तक काफी लोगों तक पहुंच गया था, और लोगों ने वीडियो देख लिया। 

बताते हैं कि वीडियो में आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी, पूर्व सीएम को खूब भला-बुरा कह रहे थे। यही नहीं, भाजपा शासनकाल में नक्सल हिंसा में बढ़ोत्तरी के लिए तत्कालीन सीएम को दोषी मान रहे हैं। वो यह कहने से नहीं चूके कि प्रदेश में भाजपा को बहुमत मिलने पर हिन्दुत्व विचारधारा के नेता को सीएम बनाया जाएगा। 

पार्टी के अंदरखाने में न्यूज-वीडियो की खूब चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि आरएसएस के पूर्व प्रचारक की पूर्व सीएम से खुन्नस काफी पुरानी है। बताते हैं कि कुछ साल पहले क्षेत्रीय संगठन मंत्री के साथ मिलकर पूर्व सीएम ने उन्हें प्रचारक पद से हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी। जबकि प्रचारक की राम मंदिर बनवाने में अहम भूमिका रही है। अब पूर्व हो चुके प्रचारक रह रहकर पूर्व सीएम, और अब राज्य छोड़ चुके तत्कालीन क्षेत्रीय संगठन मंत्री को खूब कोस रहे हैं। 

प्रवक्ता के बदले प्रवक्ता 

चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस, और भाजपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। अब हाल यह है कि हेट स्पीच का आरोप लगाकर कांग्रेस ने भाजपा के चार प्रवक्ताओं शिवरतन शर्मा, केदार गुप्ता, संजय श्रीवास्तव, और गौरीशंकर श्रीवास का बहिष्कार कर दिया है। कांग्रेस के मीडिया विभाग ने यह तय किया है कि उनके प्रवक्ता भाजपा के चारों नेताओं के साथ किसी भी टीवी डिबेट में हिस्सा नहीं लेंगे। इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को अपशब्द कहने पर इसी तरह की प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई थी। तब भाजपा ने डेढ़ साल पहले प्रवक्ता विकास तिवारी का बहिष्कार कर दिया था। 

विकास तिवारी का बहिष्कार अभी भी जारी है। हालांकि कांग्रेस के मीडिया विभाग ने विकास तिवारी के बहिष्कार को ज्यादा तूल नहीं दिया। क्योंकि बहुत सारे प्रवक्ता हैं, जो टीवी डिबेट में बैठने के लिए लालायित रहते हैं। विकास के बहिष्कार से उन्हें टीवी डिबेट में जाने का मौका मिल रहा था। मगर अब प्रवक्ताओं के बहिष्कार के बाद भाजपा नेतृत्व ने जवाब में कुछ और तेज तर्रार कांग्रेस प्रवक्ताओं के बहिष्कार का मन बनाया है। कुल मिलाकर दोनों दलों के बीच हेट स्पीच पर जंग तेज हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।

ट्रेन दुर्घटना के पीछे ज्यादा कमाई की धुन?

मालगाडिय़ों को आगे बढ़ाने के लिए यात्री ट्रेनों को जगह-जगह रोकने वाली रेलवे, सिंहपुर में हुई दुर्घटना के कारणों की जांच कर रही है। एक मालगाड़ी ने दूसरी को पीछे से टक्कर मारी थी, जिसमें एक लोको पायलट की मौत हो गई थी और पांच अन्य घायल हो गए थे। पहली गलती तो सबके सामने है। इसमें यह आया है कि पीछे वाली मालगाड़ी सामने रेड सिग्नल होने के बाद भी नहीं रुकी और सामने खड़ी ट्रेन से टकरा गई। प्रत्यक्षदर्शियों का यही बयान भी दर्ज किया गया है। मगर रेलवे के अफसरों ने जिस तरह से अधिक राजस्व के लिए ड्राइवर और स्टाफ के अन्य लोगों की जान की परवाह नहीं की है वह बात शायद जांच में छिपा ली जाएगी। रेलवे बोर्ड का वर्षों पुराना 29 नवंबर 2016 का आदेश है, जिसमें सभी जोन महाप्रबंधकों से कहा गया था कि चालकों से 9 घंटे से अधिक ड्यूटी नहीं ली जाए। इतनी देर में वह मानसिक व शारीरिक रूप से थक जाता है। पर इस आदेश का कभी पालन नहीं हुआ। प्राय: मालगाडिय़ों को ज्यादा से ज्यादा दूरी तक पहुंचाने के लिए उन पर अधिक काम करने का दबाव होता है। सिंहपुर दुर्घटना को लेकर भी यह बात सामने आई है कि लोको पायलट लगातार 14 घंटे से ड्यूटी कर रहे थे। हद यह है कि स्टाफ को पहले से यह नहीं बताया जाता। ऐन मौके पर ड्यूटी खत्म होने के पहले कहा जाता है कि अभी और ट्रेन चलाइये। लोको पायलटों का कहना है कि सिंहपुर दुर्घटना के बाद दबाव कुछ कम हुआ है, पर कब तक ऐसा रहेगा, कह नहीं सकते। अधिकारियों को अपने-अपने जोन से ज्यादा कमाई देने का दबाव भी रेलवे बोर्ड की तरफ से होता है। ऐसे में रनिंग स्टाफ से ज्यादा ड्यूटी लेने वाले अफसरों पर शायद ही कोई कार्रवाई हो।  

हेंडपंप बुझा रहा मवेशियों की प्यास

शहरों में ही नहीं गांवों, जंगलों में भी पारंपरिक जलस्त्रोत पोखर, तालाब, नदी, नाले गायब होते जा रहे हैं। इन दिनों गर्मी के बीच छत्तीसगढ़ के अलग-अलग वनों से खबर आ रही है कि पानी की तलाश में जानवर मनुष्यों की आबादी में भटककर अपनी जान गवां रहे हैं। पालतू पशुओं के साथ सुविधा है कि तालाब, नदी सूख गए हों तो हेंडपंप के पास आकर खड़े हो जाएं, उन्हें पानी मिल सकता है। यह तस्वीर बोड़ला-चिल्फी नेशनल हाइवे के किनारे बसे एक गांव की है, जहां से कान्हा नेशनल पार्क का जंगल भी शुरू होता है। 

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