राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : लोग अछूत हो रहे हैं
24-May-2023 4:42 PM
राजपथ-जनपथ : लोग अछूत हो रहे हैं

लोग अछूत हो रहे हैं 
ईडी के घेरे में आए नेता, और कारोबारियों से अब करीबी लोग ही कन्नी काटने लगे हैं। एक बोर्ड चेयरमैन के यहां मुलाकातियों का तांता लगा रहता था। लेकिन अब सन्नाटा पसरा रहता है। एक और बोर्ड के चेयरमैन की नाराजगी इस बात को लेकर है कि करीबी लोग भी एक बार में मोबाइल कॉल रिसीव नहीं कर रहे हैं। जबकि उनका किसी स्कैम से कोई लेना-देना नहीं है। और वो प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर ईडी की कार्रवाई चुनौती भी दे चुके हैं। मगर करीबियों का भय निकल नहीं रहा है। 

कारोबारियों का भी हाल कुछ ऐसा ही है। ईडी की पूछताछ से फ्री होने के बाद दो दिन पहले एक कारोबारी फुर्सत के क्षण बिताने के लिए क्लब पहुंचे, तो उन्हें देखकर वहां मौजूद कई लोग इधर-उधर निकल गए। कारोबारी दो घंटे तक वहां बैठे रहे, लेकिन किसी ने उनसे कुशलक्षेम तक नहीं पूछा। इससे पहले तक तो कारोबारी के क्लब पहुंचते ही वहां के सदस्य उनके आगे-पीछे होते रहते थे, लेकिन अब उनसे नजर मिलाने से भी परहेज करने लगे हैं। 

भाजपा संगठन, और शुकराना 
भाजपा हाईकमान ने अरुण साव को फ्री हैंड दे दिया है, लेकिन वो अपनी टीम से काम नहीं ले पा रहे हैं। यही वजह है कि  कुछ पदाधिकारियों को बदलने की नौबत आ गई है। चुनाव में पांच महीने बाकी रह गए हैं, फिर भी उन्होंने जोखिम लेकर रायपुर ग्रामीण के जिलाध्यक्ष, और संगठन प्रभारी को बदल दिया। 

सुनते हैं कि कुछ और जिला अध्यक्षों का परफार्मेंस साव के मनमाफिक  नहीं है। जिन्हें बदलने पर विचार हो रहा है। यही नहीं, जिस मोर्चे से साव, और कार्यकर्ताओं को बड़ी उम्मीदें थी उनकी गतिविधियां ठप सी पड़ गई है। साव ने मोर्चा अध्यक्ष पद पर अपनी पसंद के नेता को बिठाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया था। अब हल्ला है कि मोर्चे में कई पदों के लिए नजराना-शुकराना जैसा कुछ हुआ है। 

मोर्चा अध्यक्ष राजधानी से दूर हैं। मगर उन्होंने कई ऐसे लोगों को उपकृत किया है, जिनको लेकर कई तरह की शिकायतें आई है। ये अलग बात है कि सुदूर इलाके में रहने वाले अध्यक्ष पहले दो पहिया वाहन में घूमते थे। पद पाने के बाद स्विफ्ट डिजायर पा गए, और अब वो नई इनोवा में नजर आ रहे हंै। ये अलग बात है कि अध्यक्ष की खुशहाली कई लोगों को खटक रही है। कुछ ने ‘ऊपर’ तक बात पहुंचाई है। देखना है आगे क्या होता है। 

दिव्यांगों को ताकत देने की मुहिम
 

महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत दिव्यांगों को भी काम करने का अधिकार मिला हुआ है। पर, प्राय: इस पर अलग से ध्यान नहीं दिया जाता। वहीं, जशपुर जिले में कुछ ऐसी कोशिश की गई है जो राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर रही है। 2019 बैच के आईएएस जितेंद्र यादव यहां जिला पंचायत के सीईओ हैं। एक मजदूर से उनका सामना हुआ जो कोविड-19 महामारी के दौरान काम की तलाश में राज्य से बाहर चला गया था और अपना एक हाथ गंवा बैठा। सबसे पहले उसको गांव में मनरेगा का काम दिलाया गया। इसके बाद पूरे जिले में सीईओ ने ऐसे विकलांगों का सर्वे कराया है, जो मनरेगा में काम कर सकते हैं लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है। इसके लिए पंचायतों में शिविर आयोजित किए गए। विकलांगों के बीच चर्चा  की गई कि वे किस तरह का काम कर सकते हैं। इनमें दूसरे मजदूरों के बच्चों के सहायक के रूप में काम करना, पर्यवेक्षक का काम करना, मजदूरों को पानी पिलाना, कंक्रीट निर्माण के दौरान दीवारों और पौधों को पानी देना जैसे काम पहचाने गए। इसके चलते करीब एक हजार विकलांग मनरेगा में काम कर रहे हैं और उन्हें करीब 26000 श्रम दिवस की राशि का भुगतान किया जा चुका है। देश में शायद यह पहला जिला है जहां इतनी बड़ी संख्या में विकलांग मनरेगा का लाभ उठा रहे हैं। उनको महसूस हो रहा है कि वे कुछ कर सकते हैं। शारीरिक अक्षमता इसमें बाधा नहीं है।

फिर लंपी वायरस की आहट
पिछले साल लंबी वायरस से राजस्थान, गुजरात, हरियाणा सहित करीब 7 राज्यों में हजारों पशुओं की मौत हो गई थी। साथ ही छत्तीसगढ़ में भी इसका प्रकोप फैला। हालांकि पशुओं की मौत ज्यादा नहीं हुई। उस समय टीकाकरण अभियान चलाया गया और मवेशी बाजारों पर रोक लगा दी गई। इधर एक बार फिर कबीरधाम जिले से कुछ गांवों से लंबी वायरस फैलने की खबरें आ रही हैं। इस बार प्रशासन जरा भी अलर्ट दिखाई नहीं दे रहा। कबीरधाम जिले के कई बाजारों में दूसरे राज्यों के पशु लाए जाते हैं, जिनसे वायरस फैलने का खतरा बढ़ रहा है। इन बाजारों पर रोक लगाने का कोई आदेश अब तक नहीं निकला है और न ही ग्रामीणों को इस खतरे को लेकर मुनादी आदि के जरिए आगाह किया जा रहा है।

छप्पर के घर की मरम्मत


प्रधानमंत्री आवास में भी अब कांक्रीट के छत बनने लगे हैं। खपरैल से तैयार घर अब कम ही दिखते हैं। पर ये घर पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। कांक्रीट के घरों के मुकाबले इसके भीतर का तापमान कम होता है। पर लगभग हर साल इसकी मरम्मत करनी पड़ती है। बारिश के पहले जब इसे तैयार किया जाता है तो धूप बड़ी तेज होती है। छत्तीसगढ़ के एक गांव में 40 डिग्री तापमान पर छत की मरम्मत करता परिवार।  ([email protected])

 

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