राजपथ - जनपथ
सरोज पांडेय की सांसद निधि
पूर्व राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय ने लोकसभा चुनाव लडऩे पर खुले तौर पर कुछ नहीं कहा है। उन्होंने सब कुछ पार्टी हाईकमान पर छोड़ दिया है। फिर भी कई लोग अंदाज लगा रहे हैं कि सरोज कोरबा सीट से चुनाव लड़ सकती हैं। इसकी वजह भी है। सरोज ने सालभर में सांसद निधि का काफी हिस्सा कोरबा संसदीय क्षेत्र में खर्च किया है।
सरोज दुर्ग से सांसद रही हैं। वैशाली नगर सीट से विधायक रही हैं, और दो बार दुर्ग की मेयर भी रहीं। दुर्ग में उनके समर्थकों की अच्छी खासी संख्या है। मगर विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें कोरबा संसदीय क्षेत्र का प्रभारी बनाया था। कोरबा में भाजपा को अच्छी सफलता भी मिली। ऐसे में सरोज का नाम कोरबा सीट से तय हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
नेताजी के भाईजी
अंबिकापुर के भाजपा विधायक राजेश अग्रवाल विवादों के घेरे में आ गए हैं। विवाद की वजह यह है कि राजेश के भाई विजय अग्रवाल ने दो दिन पहले लखनपुर थाने में हंगामा किया था, और वहां के डीएसपी शुभम तिवारी को धमकी दी। विजय, कोयला चोरों पर पुलिसिया कार्रवाई से खफा थे। हंगामे के कुछ घंटे बाद डीएसपी को हटा दिया गया।
मीडिया कर्मियों ने इस पर पुलिस के आला अफसरों से सवाल किया, तो यह कहा गया कि डीएसपी शुभम तिवारी के प्रशिक्षण की अवधि खत्म हो गई है। इसलिए उन्हें बदला गया है। शुभम की साख अच्छी है, और यही वजह है कि अंबिकापुर के कई स्थानीय नेताओं ने विधायक राजेश अग्रवाल और उनके भाई की शिकायत प्रदेश संगठन में भी की है। शिकायत में यह कहा गया कि विधायक और उनके परिवार के सदस्यों के पुलिस-प्रशासन में गैर जरूरी हस्तक्षेप से सरकार की छवि खराब हो रही है। अब पार्टी संगठन क्या कुछ करती है, यह देखना है।
लौटे अफसर क्या करेंगे ?
दिल्ली डेपुटेशन से अफसर लौटने लगे हैं। डीओपीटी ने चार अफसरों को वापसी के लिए रिलीव कर दिया है। दो ने कल जॉइनिंग दे दी है । वापसी से ये लोग तो खुश हैं लेकिन दिल्ली छोड़ आने के सबब से यहां रहे लोग अधिक चिंतित हैं। और कहने भी लगे हैं, आखिर ये लोग लौट क्यों रहे हैं? बड़े साहब ने पोस्टिंग की नोट शीट तो सरकार के भेज दी है। बताया जा रहा है कि इन्हें, कुछ अतिरिक्त प्रभार वाले अफसरों को हल्का कर एडजस्ट किया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत है कि साहब, अतिरिक्त प्रभार छोडऩा नहीं चाहते। ऐसे में वापसी कर रहे लोगों को मंत्रियों से ही उम्मीद है कि दो महीने में सूट न करने वाले वर्तमानों को बदलना लें।
टूट रहे हैं तो टूटने दो..
कोरबा जिले के छुरी नगर पंचायत की कुर्सी भी कांग्रेस के हाथ से चली गई। यहां कांग्रेस के 9 पार्षद हैं। अपनी कुर्सी बचाकर रखने के लिए अध्यक्ष नीलम देवांगन को केवल 6 वोट की जरूरत थी। मगर, उनको केवल 5 वोट मिले।
सरकार बदलने के बाद प्रदेश की नगरीय निकायों में एक दर्जन से ज्यादा ऐसे अविश्वास प्रस्ताव पारित हो चुके हैं, जिनमें बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस अपनी कुर्सी खो चुकी है। अविश्वास प्रस्ताव अचानक नहीं आता। इसके लिए कलेक्टर के पास आवेदन देना होता है और सभा के लिए कम से कम एक सप्ताह का समय दिया जाता है।
प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष सहित पदाधिकारियों की भारी-भरकम टीम है। नगर पंचायत और नगरपालिकाओं के पार्षद जमीनी कार्यकर्ता होते हैं, जो हर चुनाव में काम आते हैं। वे उनको संभाल नहीं पा रहे हैं। क्यों? सीधा जवाब हो सकता है कि जब बड़े नेता सांसद, विधायकों को टूटने से नहीं बचा पा रहे हैं तो आप हमसे उम्मीद क्यों करते हैं?
नए मंत्रियों की तारीफ
निर्धारित समय से पहले समाप्त हो जाने के बावजूद छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र लंबा चला। बहुत सवाल-जवाब हुए। वरिष्ठों के अलावा नए आए मंत्रियों अरुण साव, विजय शर्मा, टंकराम वर्मा, लक्ष्मी राजवाड़े आदि ने सवालों का सामना किया। वहीं पहली बार विधायक बनी चातुरी नंद ने पुलिस जवानों की समस्या को जितनी गंभीरता से उठाया, उसने पूरे सदन का ध्यान खींचा। आखिरी दिन तो कमाल ही हो गया। इस दिन की सबसे चर्चित चर्चा वन्यजीवों की असामयिक मौत पर थी। विधायक शेषराज हरवंश ने यह सवाल उठाया। उनका मुद्दा स्पीकर डॉ. रमन सिंह को भी प्रासंगिक लगा और उन्होंने विभाग के मंत्री केदार कश्यप को कार्रवाई का निर्देश दिया।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जवाब देने वाले नए मंत्रियों की तारीफ करते हुए कहा कि ऐसा लगा ही नहीं कि वे पहली बार विधानसभा आए हैं। उन्होंने बहुत अच्छी तरह तैयारी की और जवाब दिए। मगर लोकतंत्र में विपक्ष की ओर से की गई तारीफ का ज्यादा महत्व है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत की प्रतिक्रिया भी साय से मिलती-जुलती रही। उन्होंने कहा कि नए मंत्री होने के बावजूद सभी ने सवालों का अच्छे ढंग से जवाब दिया। पूरे सत्र में कटुता का कोई अवसर नहीं आया।
ऐसे वक्त में जब विधायकों के पाला बदलने से सरकारें बदल रही हैं, लोकसभा-राज्यसभा से थोक में सांसद निष्कासित कर विधेयक पारित कर दिए जाते हों, छत्तीसगढ़ ने विधायिका के महत्व का अच्छा उदाहरण पेश किया।
रात दस बजे के बाद..
धमतरी का रत्नाबांधा चौक। रात 10 बजे। एक के बाद एक महानदी से निकाली गई रेत लेकर निकलती गाडिय़ां। दो चार दस गाडिय़ों पर कार्रवाई के बाद कलेक्टर्स और खनिज अफसरों की अपनी ही पीठ थपथपाती जारी हो रही खबरों के बीच। रेत का अवैध खनन रुका नहीं है, बस सावधानी ज्यादा बरती जा रही है।
यह कैसा छापा
जब पता है जांच एजेंसी आने वाली है तो उसे छापा कैसे कहें? आबकारी में बड़ी गड़बड़ी मामले में राज्य की एक जांच एजेंसी ने ताबड़तोड़ छापेमारी की। फिर खाली हाथ लौट गई।
जब्ती के नाम पर कुछ जगह से पांच तो कुछ जगह से 15 कागज जब्त किए हैं। इसके अलावा कुछ भी जब्त नहीं कर पाए। क्योंकि जिनके यहां पडऩा था, उन्हें 3 दिन से पता था कि जांच टीम आने वाली है। अपने विभाग के ग्रुप में भी चर्चा कर रहे थे।
छापे के एक दिन पहले फिर गायब हो गए। चर्चा है कि छापे की सूचना लीक कर दी गई थी। क्योंकि जिनको जांच का जिम्मा है, वे लोग पिछली सरकार के बैठाए हुए भरोसेमंद लोग हैं। जो पांच साल से वहा जमे रहे है। ये लोग, इसीलिए महादेव सट्टा पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।