राजपथ - जनपथ
गुरु गुड़ और चेला शक्कर
कहावतें यूं ही न शुरू होती हैं न दोहरायी जाती हैं।
1990 के दशक में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम धूमधाम चलाया गया था। छत्तीसगढ़ के एक जिले के कलेक्टर प्रगति देखने एक दिन एक क्लास में पंहुच गये। गुरु जी को एक तरफ किया और स्वयं चॉक ले कर बोर्ड में लिखना भी शुरू किया और साथ साथ जोर से उच्चारण भी।
‘च में बड़ी ऊ की मात्रा चू,
ह में बड़े आ की मात्रा हा ,
क्या हुआ? ’
पूछते हुए उन्होंने बारी बारी से सबकी ओर देखना शुरू किया पर सारे के सारे ‘विद्यार्थी’ निर्विकार, अविचल, भावशून्य बैठे दिखे।
गुरु जी ने जब आंकलन किया कि कलेक्टर की नजर उन पर पडऩे में अब देर नहीं है तो उन्होंने किताब खोली, चूहे का बड़ा चित्र वाला पृष्ठ खोला, एक हाथ से किताब को कलेक्टर के सिर के पीछे से ऊपर कर ‘विद्यार्थियों’ को चित्र दिखाया और दूसरे हाथ से उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित किया।
चित्र ने माहौल बदल दिया। चेहरों पर मुस्कान आ गयी। अचानक उत्तर देने के लिए उत्सुक हाथ उठे दिखायी दिये। कलेक्टर ने एक को मौका दिया। विद्यार्थी ने भी पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़े हो कर उत्तर दे दिया:
‘मुसुआ’।
दामाद बाबू की नियुक्ति पर सवाल
निगम-मंडलों में नियुक्ति के लिए कांग्रेस नेता चप्पलें घिस रहे हैं। इन सबके बीच राज्य उपभोक्ता प्रतितोषण आयोग में भाजपा के ताकतवर नेता के दामाद की सदस्य के रूप में नियुक्ति हो गई। दामाद बाबू पहले भी आयोग के सदस्य थे। तब उनका हक बनता भी था क्योंकि उस समय भाजपा की सरकार थी। मगर सरकार बदलने के बाद भी उनकी हैसियत में कमी नहीं आई। ससुरजी की धमक के चलते पुनर्नियुक्ति मिल गई। अब कांग्रेस में इस नियुक्ति पर सवाल खड़े हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के प्रवक्ता रहे देवेन्द्र गुप्ता ने फेसबुक पर लिखा कि मंडल-आयोग में पद पाने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ता जहां जूते-चप्पल घिस रहे हंै वही पिछले दरवाजे से विपक्ष के नेता सेटिंग में लगकर अपने रिश्तेदारों को मलाई खिला रहे है।