राजपथ - जनपथ
पोस्ट न सही, जिले मिले
प्रमुख सचिव डॉ. मनिन्दर कौर द्विवेदी को कृषि विभाग से हटने के बाद अभी तक नई पोस्टिंग नहीं मिल पाई है। अलबत्ता, उन्हें महासमुंद और गरियाबंद जिले का प्रभारी सचिव बनाया गया है। वे काफी पहले महासमुंद कलेक्टर रह चुकी हैं। प्रभारी सचिव को महीने में एकाध बार जिले का चक्कर लगाकर सरकारी योजनाओं का हाल जानना होता है और इसकी रिपोर्ट सीएस को देनी होती है। ज्यादातर प्रभारी सचिव तो यह भी नहीं करते हैं। मगर आईएएस के 95 बैच की अफसर मनिन्दर कौर द्विवेदी की गिनती तेज तर्रार और काबिल अफसरों में होती है। ये अलग बात है कि मंडी बोर्ड की जमीन के ट्रांसफर में देरी को लेकर उन्हें सीएम का कोपभाजन बनना पड़ा था और उन्हें कृषि के साथ-साथ ग्रामोद्योग विभाग के दायित्व से भी मुक्त कर दिया गया था ।
अब जब उनके पास विशेष काम नहीं है, तो वे फिलहाल अपने सरकारी बंगले में गार्डर्निंग का शौक पूरा कर रही हैं। अच्छे अफसरों को सरकार वैसे भी ज्यादा समय तक खाली नहीं रखती। देर सबेर उन्हें कोई विभाग मिल ही जाएगा, तब तक शौक पूरा कर लेना अच्छा है।
हिन्दुस्तानी बचे तो कैसे बचे?
कोरोना से बचने के लिए दुनिया भर में डॉक्टरी सलाह यह है कि लोग अपना हाथ अपने चेहरे तक भी न ले जाएं क्योंकि हाथ तो कई तरह की चीजों को छुएगा ही, वैसा हाथ चेहरे तक न पहुंचे तो कोरोना का खतरा कम रहेगा। डॉक्टरों का यह भी कहना है कि घर के बाहर चेहरे पर मास्क पूरे समय लगे रहना चाहिए, और मास्क को भी बार-बार हाथ नहीं लगाना चाहिए। यह पूरा सिलसिला हिन्दुस्तानियों के लिए कई दूसरे देश वालों के मुकाबले अधिक मुश्किल है। इसलिए कि दुनिया में कम ही देश होंगे जहां हिन्दुस्तानियों की तरह पान, सुपारी, और गुटखा चबाया जाता है। इनको चबाते-चबाते दांतों की हालत ऐसी हो जाती है कि उनके जोड़ों में सुपारी-पान पत्ता फंस ही जाते हैं। किसी भी पानठेले पर देखें तो लोग किसी तीली से दांतों के जोड़ साफ करते दिखते हैं। अब उसके लिए लकड़ी की टूथपिक चल निकली हैं, और फ्लॉस भी। और इनकी आदत ऐसी रहती है कि छूटती नहीं। सार्वजनिक जीवन में बहुत से ऐसे मंत्री और नेता हैं जो भरी बैठक में भी चांदी की एक डंडी से, या किसी गुटखे के खाली पाऊच को मोडक़र दांतों से सुपारी निकालते रहते हैं। इनके बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कोई रास्ता नहीं निकाल सकता क्योंकि वह तो चेहरे तक भी हाथ ले जाने के खिलाफ है, मुंह के भीतर लार तक जाने वाले हाथ की तो वह कल्पना ही नहीं करता।
अब सरकार का नया हुक्म...
फिर आज भारत सरकार का एक और आदेश आ गया है कि लोगों को बार-बार सेनेटाइजर से हाथ साफ नहीं करना चाहिए, जहां तक मुमकिन है पानी और साबुन से ही हाथ धोना चाहिए। सरकार ने सेनेटाइजर के अधिक इस्तेमाल के खतरे गिनाएं हैं। अब सवाल यह है कि मेडिकल साईंस के पास कोरोना के खतरे के बीच दांत कुरेदने की लत का कोई भी इलाज नहीं है, कोई भी रास्ता नहीं है कि लोग अपनी इस आदत के साथ-साथ महफूज भी रह जाएं।
थोड़ी देर में हाथ कांपते हैं...
और जहां तक सेनेटाइजर से हाथ साफ करने की बात है तो कई लोग मनोविज्ञान की भाषा में दहशत में एक नई लत का शिकार हो गए हैं, उन्हें वायरस का फोबिया हो गया है, और वे अगर थोड़ी देर सेनेटाइजर हाथों पर नहीं लगाते, तो उन्हें अपने पर खतरा मंडराते दिखता है। लोग ऐसे ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के शिकार होते जा रहे हैं। ऐसे में सोशल मीडिया पर एक ने बहुत मजे की बात लिखी- सेनेटाइजर से अल्कोहल की वजह से मेरे हाथ ऐसे अल्कोहोलिक (नशे के आदी) हो चुके हैं कि कुछ देर अगर सेनेटाइजर न मिले, तो हाथ कांपने लगते हैं। अब ऐसे माहौल में हिन्दुस्तानी आदतों के साथ पान-सुपारी और तम्बाखू कैसे जारी रह सकता है, और कैसे कोरोना से बचा जा सकता है, यह तरीका ढूंढना कोरोना की वैक्सीन ढूंढने के मुकाबले भी अधिक मुश्किल है।