राजपथ - जनपथ
एम्स में इलाज के लिए केन्द्रीय मंत्री का फोन
रायपुर में एकाएक कोरोना का प्रकोप बढ़ गया है। एम्स और अंबेडकर अस्पताल तकरीबन फुल हो गए हैं। ज्यादातर मरीज एम्स में ही भर्ती होना चाहते हैं। इसके चलते प्रबंधन पर काफी दबाव रहता है। ऐसे ही एक हाई प्रोफाइल संत-परिवार के पांच सदस्य कोरोना के चपेट में आ गए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने सभी को अंबेडकर अस्पताल ले जाने की तैयारी कर ली थी। मगर संत-परिवार के लोग नहीं माने।
ये एम्स छोडक़र कहीं और नहीं जाना चाहते थे। एम्स प्रबंधन ने बेड नहीं होने का कारण बताकर भर्ती करने में असमर्थता जताई। इसके बाद संत ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को फोन लगा दिया। इसके बाद केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने एम्स प्रबंधन को फोन किया तब कहीं जाकर एम्स प्रबंधन ने संत-परिवार के लिए किसी तरह बेड का इंतजाम कर भर्ती किया।
संत खुद कोरोना संक्रमित हैं। उनके कोरोना के चपेट में आने की कहानी कम दिलचस्प नहीं है। सुनते हैं कि संतजी के एक-दो अनुयायी सबसे पहले कोरोना संक्रमित हुए। ये लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए संतजी के पास गए और आशीर्वाद लिया। फिर क्या था, संतजी भी कोरोना के चपेट में आ गए।
लोग प्रतिबंध को इलाज समझते हैं
सरकारों में शहर और जिले के स्तर के छोटे-छोटे बहुत से फैसले अफसर खुद लेते हैं। और सत्ता चलाने वाले निर्वाचित नेता भी अक्सर उनकी बात मान लेते हैं। अफसरों को सबसे आसान तरीका प्रतिबंध का लगता है। बहुत सारी चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया जाए, तो उन्हें यह भी लगता है कि उनके हाथ कई तरह के अधिकार हैं, और उन्हें ताकत महसूस होती है। अभी छत्तीसगढ़ में लॉकडाऊन का एक और दौर चल रहा है। अधिकतर काम बंद कर दिए गए हैं, बाजार भी बंद कर दिए गए हैं। बकरीद और राखी, दो बड़े त्यौहार एक साथ आ रहे हैं, इसलिए नेताओं की मांग पर अफसरों ने बाजारों को कुछ घंटे खोलने की छूट दे दी है। नतीजा यह होने जा रहा है कि इन तमाम दुकानों पर अंधाधुंध भीड़ लगेगी, लोगों में धक्का-मुक्की होगी, और लॉकडाऊन का मकसद मारा जाएगा। जिस कोरोना-संक्रमण को कम करने के लिए लॉकडाऊन बढ़ाया जा रहा है, उसका बढऩा ऐसे सीमित घंटों की वजह से तय है। जिन चीजों की दुकानों को खुलने देना है, उन्हें अधिक से अधिक घंटों के लिए, या कम से कम काफी घंटों के लिए खुलने देना चाहिए, ताकि वहां पर धक्का-मुक्की की भीड़ न हो।
कोरोना को शिकार मिल रहे एक साथ
आज छत्तीसगढ़ के जिन शहरों में लॉकडाऊन के तहत बाजार बंद करवाए गए हैं, और दारू दुकानें भी बंद हैं, उन शहरों की सीमा से लगकर जो शराब दुकानें खुली हैं, उन शराब दुकानों पर भीड़ की हालत देखें तो लगता है कि वहां कोरोना को भी ओवरटाईम करना पड़ रहा होगा। यह लगता है कि कोरोना को शराब दुकानों से परे और कहीं जाने की जरूरत भी नहीं है क्योंकि वहां उसे उसकी क्षमता से अधिक शिकार आसानी से हासिल हैं। यह पूरा खतरनाक सिलसिला बाकी लोगों को भी खतरे में डाल रहा है क्योंकि जिस शराब के मोह में नशेड़ी-भीड़ कोरोना से बेपरवाह होकर धक्का-मुक्की कर रही है, वह पीने के बाद क्या नहीं करेगी। इसलिए कोरोना से बचाव और दारू, इन दोनों का साथ-साथ चलना मुमकिन नहीं है। दिक्कत यह है कि 15 बरस की भाजपा सरकार ने भी दारू के धंधे को ऐसी फौलादी पकड़ में जकड़ रखा था कि पत्थर से भी तेल निकाला जा रहा था। इसलिए अब कांग्रेस सरकार को कुछ कहने का मुंह भाजपा के बहुत से लोगों का तो रह भी नहीं गया है। कुल मिलाकर जहां प्रतिबंध नहीं रहनी चाहिए, वहां जरूरी सामानों की दुकानें खुलने पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, और जिस दारू पर प्रतिबंध लगना चाहिए, उस दारू पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं। इस कॉम्बिनेशन को कोरोना बहुत पसंद कर रहा है।