राजपथ - जनपथ
वही चखना, वही डिस्पोजल, वही आंदोलन...
दुर्ग जिले में मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र पतन के जामगांव ‘एम’ की शराब दुकान खोलने का विवाद दो माह से ज्यादा पुराना है। भाजपा के प्रदर्शन के दौरान वहां शराब की गाड़ी पहुंची और लूट ली गई। अमलेश्वर थाने में सात पेटी शराब लूट लिये जाने की एफआईआर दर्ज है। लूट के आरोप में गिरफ्तार हुए वे भाजपा के पदाधिकारी हैं। लॉकडाउन के दौरान प्रदेश में कई जगहों पर शराब दुकानें खुली रखी गईं। शहरी इलाकों में लॉकडाउन था तो बगल की देहात में खुली रहीं। भाजपा का कहना है कि हमें प्रदर्शन के लिये मजबूर होना पड़ा, लूटपाट हुई हो तो वह भीड़ में घुस आये असामाजिक तत्वों ने की। उनका आरोप है कि इसके पीछे कांग्रेसी थे। लूट के पहले ही आंदोलनकारियों ने मोर्चा संभाल लिया था। पर एफआईआर और गिरफ्तारी के बाद तो अब जो होना है, अदालत से होगा। दुर्ग सांसद के नेतृत्व में अब भाजपा कार्यकर्ता फिर आंदोलन पर हैं। अलग-अलग गुटों में एकता भी दिख रही है। क्या ऐसा नहीं लगता कि ऐसा ही माहौल पिछली सरकार में भी दिखाई देता रहा है? वैसी ही अशांति, वैसा ही चखना, डिस्पोजल, आबकारी, कानून- व्यवस्था और अपराध। बस आंदोलन के किरदार बदल गये हैं।
किसान फंसे ऑनलाइन पंजीयन में
समर्थन मूल्य पर धान बेचने के लिये बीते कई सालों से धान के रकबे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता रहा। बेजा कब्जा, पड़त भूमि, भर्री-बंजर भूमि को भी किसान अपने नाम पर बता देते थे, जिसके चलते उन्हें ज्यादा धान बेचने का मौका मिल जाता था। यह धान बिचौलियों और बड़े किसानों के होते थे। तीन चार साल से यह निर्देश है कि किसान की ऋण पुस्तिका काफी नहीं उनको अपना पंजीयन सहकारी समिति में कराना होगा। तब भी गड़बड़ी रोकी नहीं जा सकी। पिछली बार धान का रकबा अचानक बहुत ज्यादा दिखने लगा तो किसान के धान लेने के वास्तविक रकबे की रिपोर्ट (गिरदावरी) बनाने का काम पटवारियों को दिया। इस बार यह काम ऑनलाइन कर दिया गया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि पटवारी रिकॉर्ड में दर्ज रकबा और समिति में पंजीकृत रकबे में कोई अंतर नहीं रहे। पर इसमें वे ईमानदार किसान भी पिस रहे हैं जिन्होंने कोई गड़बड़ी ही नहीं की। पटवारियों ने अधिकारियों के दबाव में आकर किसानों का रकबा कम दर्ज किया और भुईयां एप में लोड कर दिया। राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज जमीन से कम खेती का रकबा दिख रहा है, कहीं ज्यादा भी दिख रहा है। जब तक दोनों माप एक नहीं होंगे उनका पंजीयन यानि धान बेचने का मौका नहीं मिलेगा। जांजगीर चाम्पा, बिलासपुर, दुर्ग आदि जिलों से खबर आ रही है कि अब तक आधे किसानों के ही रिकॉर्ड अपडेट नहीं हो पाये हैं। कोरोना की परवाह किये बगैर किसानों की भीड़ पटवारी तथा समितियों में दिखाई दे रही है।