राजपथ - जनपथ
बस नाम ही काफी है!
बाजार में मुकाबला इतना अधिक हो गया है कि लोगों को अटपटे नाम रखकर अपनी दुकान की तरफ ग्राहकों को खींचने का काम करना पड़ता है। राजधानी रायपुर से लगे हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चुनाव क्षेत्र अमलेश्वर में अगल-बगल के दो बिरयानी-सेंटरों के नाम देखें, ताबड़-तोड़ बिरयानी, धाकड़ बिरयानी। अब यहां सामने से निकलने वाले स्कूली बच्चे इन्हें देखते हुए निकलेंगे तो स्कूल में हिन्दी के पर्चे में ताबड़-तोड़ और धाकड़ के क्या मतलब लिखेंगे? यहीं अमलेश्वर के एक भोजनालय का बोर्ड देखें- आखरी ठिकाना भोजनालय! (यहां खाने के बाद कुछ और बाकी ही नहीं रहता है क्या?)
लेकिन देश के अलग-अलग प्रदेशों में कई नामी-गिरामी दुकानें भी अटपटे नाम रखती हैं। एक नाम कई शहरों में देखने मिलता है- ठग्गू के लड्डू! और इस दुकान का नारा रहता है- ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे हमने ठगा नहीं...
कई शहरों में बेवफा चायवाले दिखते हैं। ये लोग पत्नी से प्रताडि़त लोगों के लिए मुफ्त में चाय देते हैं, प्यार में धोखा खाए हुए लोगों के लिए रियायती चाय, प्रेमी जोड़ों के लिए अलग दाम की चाय, अकेलेपन की चाय और अलग दाम की।
एक ‘बेकरार छोले’ वाले का बोर्ड देखें तो उस पर लिखा है- दिल्ली के दिलजले छोले, दिल को जलाएं।
मंत्री भगत के पुत्रों को क्लीन चिट
जशपुर में मंत्री अमरजीत सिंह भगत के बेटों पर कोरवा आदिवासियों की जमीन हड़पने के आरोप पर जांच हो गई और नतीजे भी आ गये। इसमें भगत के पुत्रों की कोई गलती नहीं पाई गई। कलेक्टर ने 7 कोरवा आदिवासियों की शिकायत के आधार पर जांच समिति बनाई। निष्कर्ष निकाला कि सौदे में कोई दबी-छुपी बात नहीं थी। जिनकी जमीन खरीदने का सौदा हुआ वे भूमिहीन नहीं बल्कि उनके संयुक्त खाते में 100 एकड़ से अधिक जमीन दर्ज है। दरअसल, जिस जमीन का सौदा हुआ वह संयुक्त नाम पर था और इस सौदे से कुछ सदस्य असहमत थे। आम सहमति नहीं बनने के बाद तय यह किया गया कि यह जमीन वापस कर दी जायेगी। ऐसी घोषणा मंत्री ने अपने बेटों की ओर से पहले ही कर दी थी। वैसे यह तय है कि किसी भी संयुक्त खाते की जमीन में सभी हिस्सेदारों की जब तक सहमति नहीं होगी, सौदे पर सभी के हस्ताक्षर नहीं होंगे, तब तक जमीन बिक ही नहीं सकती। इस मामले में इतनी आशंका जरूर हो सकती थी कि मंत्री पद के प्रभाव में असहमत लोग भी सहमत करा लिये जाते, पर, शायद बात बनी नहीं हो। विरोधियों ने संरक्षित जाति और भूमिहीनों का मामला कहकर इसे सनसनीखेज बना दिया था। कहीं इसकी वजह यही तो नहीं थी कि प्रशासन कम से कम इसी बहाने अलर्ट मोड में आये और जो लोग सौदे से सहमत नहीं हैं, उनकी मदद हो जाये?
पहचानो तो जानें!
करीब 32 बरस पुरानी यह तस्वीर राजीव गांधी के वक्त की है जिसमें सेवादल के एक ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनिंग कैम्प में शामिल एक नौजवान है। छत्तीसगढ़ के लोग भी इस वर्दीधारी सेवादल कार्यकर्ता को मुश्किल से ही पहचान पाएंगे।
मास्क नहीं पहनने पर फिर कड़ाई..
कोरोना संक्रमण का पहला केस छत्तीसगढ़ में 18 मार्च 2020 को आया था, जब लंदन से लौटी एक युवती की जांच हुई थी। उस वक्त वह जो हडक़म्प मचा तो कई इलाकों को सील कर दिया गया। छत्तीसगढ़ में कोरोना की रफ्तार सुस्त पड़ चुकी थी, जिससे लग रहा था कि साल पूरा होते-होते मास्क उतर जायेगा, सोशल डिस्टेंस रखने की बाध्यता खत्म हो जायेगी और इसका अंतिम संस्कार कर दिया जायेगा। लेकिन पड़ोसी राज्यों खासकर महाराष्ट्र में फिर से केस बढऩे लगे। अब देश के टॉप 10 प्रभावित राज्यों में छत्तीसगढ़ आ गया है, सरकार फिर से अलर्ट मोड पर आ गई है। कल से पुलिस ने फिर मास्क पहने बिना बाहर निकलने वालों पर सख्ती शुरू की । कई जिलों में 200 से लेकर 500 लोगों पर 100-100 रुपये का जुर्माना लगाया गया । यह कार्रवाई आज भी चल रही है।
वैसे कोरोना केस कम होने और वैक्सीन आ जाने के बाद भी मास्क पहनना जरूरी है, स्वास्थ्य विभाग और सरकार की दूसरी एजेंसियां लगातार बता रही थीं। इसके बावजूद लोग इसकी अवहेलना कर रहे थे। टीवी, न्यूज पेपर और टेलीफोन डायल टोन पर आने वाले संदेशों को सब उपेक्षित करने लगे थे। अब पुलिस ने फिर मोर्चा संभाला है। संभलने की जरूरत है। ताकि लॉकडाउन 4 की नौबत न आये। पुलिस के अच्छे-बुरे बर्ताव के वो दिन फिर न लौटें।
धान चावल बेचने का समय सही?
छत्तीसगढ़ केबिनेट ने किसानों से खरीदे गये अतिरिक्त धान की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है। 16 फरवरी से ट्रेडर्स और मिलर्स का पंजीयन भी शुरू हो गया है। केन्द्र और राज्य सरकार की चावल की जरूरत पूरी होने के बाद करीब 20.8 लाख मीट्रिक धान को बेचने का निर्णय लिया गया है। यदि तय बेस प्राइज 2057 रुपये पर भी धान बिक जाता है तो सरकार को करीब 450 रुपये घाटा तो सिर्फ उस राशि का है जो वह किसानों को समर्थन मूल्य और राजीव गांधी न्याय योजना के अंतर्गत देती है। लेकिन खरीदी के लिये प्रबंध करने, परिवहन में भी अच्छी खासी रकम खर्च होती है। भाजपा के आरोप को मानें तो पिछले साल करीब 1000 करोड़ रुपये का धान खुले गोदामों में पड़े रहने से खराब हो गया। धान बर्बाद हो, इससे बेहतर तो इसकी घाटे पर ही सही नीलामी कर देना समझ का फैसला लगता है। इधर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि धान, चावल बेचने के लिये यह सही समय नहीं है। बाजार में इसकी अभी मांग नहीं है और उपलब्धता काफी है। धान सुरक्षित रखा जाये और बाद में बेचा जाये।
वास्तव में, मुद्दा तो सुरक्षित रखे जाने का ही है। बीते 20 सालों में अतिरिक्त उपज को संभाल सकने का मैकेनिज्म छत्तीसगढ़ में बन नहीं सका। धान ही नहीं दूसरी फसलों के लिये भी। जरूरी है कि बड़ी संख्या में शेड, चबूतरे हों, कोल्ड स्टोरेज और गोदाम हों और मांग के समय बाजार में इन्हें निकालें। फिलहाल जो धान रखा रहेगा वह कुछ या ज्यादा खराब होना ही है।