राजपथ - जनपथ
70 हजार शादियां पर सब फीकीं
ठीक शादियों के वक्त कोरोना महामारी ने इस तरह पैर पसारा है कि लगभग पूरा प्रदेश लॉकडाउन के दायरे में आ चुका है। लॉकडाउन का पहला चरण यदि 20-22 अप्रैल तक समाप्त हो जाता तो बहुत से विवाह समारोह हो जाते। 22 अप्रैल से लेकर देवशयनी एकादशी 15 जुलाई तक विवाह के 37 मुहूर्त हैं। पर ज्यादातर शहरों में लॉकडाउन दूसरी और तीसरी बार बढ़ा दिया गया है। यह मई के पहले सप्ताह तक चलने वाला है। जिस तेजी से महामारी फैल रही है उसके चलते यह संभावना भी नहीं दिख रही है कि हालात सामान्य हो जाये और अगले माह लोगों को भीड़ जमा करने की छूट मिल जाये। यदि 15 जुलाई तक हालात नहीं सुधरे तो शादियों का ये सीजन तो गया। उसके बाद फिर देवउठनी एकादशी के बाद ही 15 नवंबर से मुहूर्त है। तब दिसम्बर तक 13 शादियां की जा सकेंगीं।
ज्यादातर लोगों को कोरोना के प्रकोप से जल्दी छुटकारा मिलने की उम्मीद नहीं है। इसीलिये एक तरफ से सिर्फ 10 लोगों को शामिल करने की अनुमति होने के बावजूद प्रदेशभर में करीब 73 हजार आवेदन शादियों के लिये किये गये हैं। इनमें से कई लोगों ने कड़ी पाबंदी को देखते हुए अर्जी वापस ले ली है, जबकि कुछ निरस्त भी किये गये हैं। जाहिर ये शादियां सादगी और सीमित मेहमानों के बीच होगी। कोई भव्यता नहीं होगी। इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें हुआ है जिनके साल भर की आमदनी इन्हीं शादियों पर टिकी है, जैसे केटरिंग, बैंड बाजे, होटल, टेंट, पुरोहित, फोटोग्रॉफर आदि। अब इसे विडम्बना भी कहेंगे कि पिछले साल भी कोरोना के चलते लॉकडाउन इसी सीजन में लगाया गया था। तब इन व्यवसायों से जुड़े लोगों को उम्मीद थी कि 2020 के गुजर जाने के बाद सब अच्छा हो जायेगा, पर 2021 उससे कहीं ज्यादा बुरे दिन दिखा रहा है।
कब इस्तेमाल करेंगे इन पैसों का?
कोरोना मरीजों के लिये जीवनरक्षक रेमडेसिविर इंजेक्शन की प्रदेश में आपूर्ति पर्याप्त शुरू हो जाने के दावे के बावजूद इसकी कालाबाजारी थमने का नाम नहीं ले रही है। कई डॉक्टर, वार्ड ब्वाय और नर्स और मेडिकल स्टोर संचालक इस भयंकर आपदा में मुनाफा देख रहे हैं। कल एक ही दिन में सरगुजा, बिलासपुर और रायपुर में पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया। स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े बहुत से लोगों का विद्रूप चेहरा दिखाई दे रहा है। महामारी में जहां से मिले लूट-खसोट कर रहे हैं। निजी अस्पतालों में सरकार की तय दर से कई गुना ज्यादा फीस जमा कराई जा रही है। अनाप-शनाप अनावश्यक टेस्ट कराये जा रहे हैं ताकि बिल बढ़े। इलाज क्या हुआ, परिजनों को पता नहीं चलता, सीधे लाश सौंप दी जाती है। एम्बुलेंस तक का किराया पांच-दस गुना बढ़ा दिया गया है। जो लोग मरीजों और उनके परिजनों को पीड़ा को समझे बगैर अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं, उनके साथ ए सोच पॉजिटिव है। वो ये कि इस भयंकर आपदा के बाद भी सामान्य दिन आ जायेंगे, तब वह अपनी अनाप-शनाप कमाई हुई रकम का उपभोग कर पायेंगे।
कोरोना मृतकों को सहायता
कोरोना महामारी राष्ट्रीय आपदा ही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि देश में मेडिकल इमरजेंसी के हालात है। ऐसे में कोरोना के चलते मारे गये लोगों के लिये यदि परिजनों की मांग है कि उन्हें मुआवजा मिलना चाहिये तो इसमें गलत क्या है? राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 में प्रावधान तो है कि आकस्मिक मृत्यु में मृतकों के आश्रितों को आर्थिक सहायता दी जाये। पर प्रदेश में मरने वालों की संख्या अब 7 हजार से ऊपर पहुंचने जा रही है। सब मामलों में 4-4 लाख रुपये दिये गये तो एक बड़ा हिस्सा इन पर खर्च करना पड़ेगा, जबकि अभी स्वास्थ्य सेवाओं पर आई आपदा को दुरुस्त करने में ही बड़ी राशि की जरूरत पड़ रही है।
इधर प्रदेश भर में लोगों ने इसी आधार पर राजस्व विभाग को आवेदन करना शुरू कर दिया है। कोविड मरीजों की सहायता के लिये बनाये गये कंट्रोल रूम में भी लगातार फोन कर पूछा जा रहा है कि कहां आवेदन करें? इसके जवाब में शासन ने दिसम्बर 2020 का एक पुराना पत्र फिर से निकालकर बताया है कि कोविड-19 से होने वाली मौतों में मुआवजे या अनुदान का प्रावधान नहीं रखा गया है। वैसे लोग समझ रहे हैं कि मौजूदा परिस्थिति में कम से कम इस तरह की सहायता तो नहीं की जा सकती है, पर मांग उठ रही है। सोशल मीडिया पर भी अभियान चल ही रहा है।