राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : इम्युनिटी बढ़ाने वाली बरसात की भाजी
11-Jul-2021 5:15 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : इम्युनिटी बढ़ाने वाली बरसात की भाजी

(फोटो प्राण चड्ढा ग्रीनरी)

इम्युनिटी बढ़ाने वाली बरसात की भाजी

छत्तीसगढ़ में भाजी खान-पान का जरूरी हिस्सा है। हर घर में भाजी बनती है। गूगल देखें तो इसकी सब्जियों से अलग व्याख्या नहीं है- वेजिटेबल बताया जायेगा। जो लोग छत्तीसगढ़ी को भाषा के रूप में मान्यता दिलाना चाहते हैं, उन्हें इस ओर ध्यान देना चाहिये। साग अलग है, भाजी दूसरी चीज। 

वैसे, छत्तीसगढ़ की भाजियों की पौष्टिकता पर कई किताबें लिखी गई हैं। तखतपुर विकासखंड के गनियारी जन सहयोग स्वास्थ्य केन्द्र में कुछ समय पहले तक काम करने वाले डॉ. योगेश जैन ने छत्तीसगढ़ की साग-सब्जियों, भाजी पर पूरी किताब लिख डाली है। इसमें उन्होंने बताया है कि जो आयरन, प्रोटीन, मिनरल्स, इम्युनिटी फॉर्म इन सब्जी- भाजियों में हैं, वे महंगे काजू, किशमिस में भी नहीं। पलाश सुरजन किसी लेखक की किताब का जिक्र करते हुए बताते हैं कि उन्होंने छत्तीसगढ़ में मिलने वाली, खाने योग्य 100 तरह की भाजी है।

खेतों की तरफ नहीं जाते हों तब भी बाजार में मिलने वाली कुछ भाजी आपको याद आ सकती हैं- जैसे बोहार भाजी, गुमी भाजी, भथुआ भाजी, मुस्कनी भाजी, मुनगा भाजी, कैना भाजी, सुनसुनिया भाजी, मखना भाजी, अमारी भाजी, चरौचा भाजी, पोई भाजी, लाल भाजी, गोंदली भाजी, पटवा भाजी, तिपनिया भाजी, मुरई भाजी, करेला भाजी, पालक भाजी, चरौटा भाजी, करमत्ता भाजी, गोंदली भाजी, पटवा भाजी, तिपनिया भाजी, चौलाई भाजी, कोचाई भाजी, गोभी भाजी, खेड़ा भाजी, मेथी भाजी, चेच भाजी, चना भाजी, तिवरा भाजी, सरसों भाजी, बरबट्टी भाजी, कांदा भाजी, बर्रे भाजी, कुरमा भाजी, चनौरी भाजी, कोईलार भाजी, पीपर भाजी और सफेद चेच भाजी।

भाजी आसपास के किसान के ही उगाये होते हैं। ये नागपुर, यूपी या गुजरात से आने वाली सब्जी नहीं हैं। जब भी थैला लेकर निकलें तो एक दो भाजी भी अपनी खरीदी में शामिल कर सकते हैं। यह स्थानीय किसानों की मदद होगी। (फोटो प्राण चड्ढा)

अफसर को नारद याद आये

मीडिया को लेकर मंत्रियों और अफसरों का नजरिया अलग-अलग रहता है. छत्तीसगढ़ सरकार के कम से कम एक मंत्री ऐसे हैं जो मीडिया के टेलीफोन कॉल से बचते हैं और खुलकर इस बात को मंजूर भी कर लेते हैं कि किसी बात पर अपना बयान देना खतरे का काम रहता है, इसलिए वह उससे बचते हैं। ऐसा ही कई अफसर भी करते हैं, और हो सकता है कि उनका तजुर्बा कुछ गड़बड़ रहता हो। अब जैसे छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ आईएएस अफसर, स्कूल शिक्षा सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह ने ट्विटर पर पोस्ट किया है -मीडिया को कई बार जानकारी आप कुछ भी बताएं, स्टेटमेंट कुछ भी दें, न्यूज़ रिपोर्टिंग वह अपने हिसाब से ही करते हैं. हमारे शास्त्रों में ऋषि नारद की जो परिकल्पना है वह याद आ जाती है।

अब नारद की बात करना तो ठीक है क्योंकि हिंदुस्तान में हिंदू धर्म के एक सबसे बड़े दावेदार संघ परिवार के लोग भी नारद को पहला पत्रकार मानते हैं। लेकिन जो पेशेवर अखबारनवीस हैं, वे नारद से अपनी तुलना ठीक नहीं समझते, जिन्हें इधर की बात उधर करने के लिए जाना जाता था। अब एक आईएएस अफसर ने मनमानी रिपोर्टिंग करने वाले लोगों के बारे में बात करते हुए नारद की कल्पना की है, तो मीडिया को अपने बारे सोचना चाहिए। किस-किसने पिछले दिनों उनसे बात करके रिपोर्टिंग की थी?

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