राजपथ - जनपथ
याद बाबूलाल गली की..
रायपुर शहर को जिन लोगों ने कोई 25 बरस पहले देखा होगा, तो उन्हें याद होगा कि मालवीय रोड पर बाबूलाल टॉकीज के बगल की गली बड़ी बदनाम मानी जाती थी और उसे बाबूलाल गली कहा जाता था जो कि रायपुर शहर का रेड लाइट इलाका भी था। फिर एक पुलिस अफसर ने तय किया किस शहर में रेड लाइट इलाका नहीं होना चाहिए तो उस इलाके को सीलबंद कर दिया गया जितने मकानों में देह का धंधा होता था वे सब सील हो गए, और किसी ने उफ नहीं किया।
लेकिन उन दिनों की बात चल रही थी तो अचानक याद आया कि बाबूलाल गली के रेड लाइट एरिया को चलाने वाली महिला जानकीबाई नाम की एक बुजुर्ग महिला थी, जो कि कांग्रेस पार्टी की राजनीति में भी सक्रिय हिस्सेदार रहती थी, और जब कांग्रेस का कोई जुलूस निकलता था, तो वह झंडा बैनर थामे हुए सामने चलने वाली महिलाओं में से एक रहती थी।
कांग्रेस के पुराने लोगों को याद है कि 1977 से लेकर 1980 के बीच जब कांग्रेस देश में पहली बार विपक्ष में आई थी, और उसे सडक़ों पर संघर्ष करने की जरूरत थी उस वक्त जानकीबाई एक आम कार्यकर्ता के रूप में जुलूस में सामने चला करती थी, और क्योंकि कांग्रेस के लोग भी कम रह गए थे इसलिए भी, और शायद लोगों का बर्दाश्त था इसलिए भी, रेड लाइट एरिया के साथ नाम जुड़ा रहने पर भी इस महिला को कभी कांग्रेस के आयोजनों से अलग नहीं किया गया।
दूसरी बात यह भी कि जनता पार्टी या उसके बाद बनने वाली भाजपा के लोगों ने भी इस बात को लेकर कभी कांग्रेस पर हमला नहीं किया। यह एक पुरानी याद है जिसकी कोई तस्वीर किसी के पास मिल नहीं रही है।
जीत टॉकीज की हार
एक समय न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अविभाजित मध्य प्रदेश के सबसे खूबसूरत और साफ-सुथरे छविगृहों में गिना जाने वाला बिलासपुर का जीत सिनेमाघर बदलते हालात में जमींदोज किया जा रहा है।
आज जो साज-सज्जा हम मल्टीप्लेक्स में देखते हैं उसकी कल्पना जीत टॉकीज के मालिक मुंशीराम उपवेजा ने तीन दशक पहले कर ली थी। बाहर टिकट के लिए लाइन में लगने वालों के लिए साफ-सुथरी कुर्सियां, आंगन, भीतर प्रवेश करते ही बरामदे से लेकर बिछी हुई कालीन, दीवारों पर आकर्षक कलाकृतियां। भीतर भी जगह-जगह तरह-तरह के फूलों के गमले। सिनेमाघरों के टॉयलेट का हाल हम सब जानते ही हैं मगर यहां पहुंचने पर लोग आश्चर्यचकित हो जाते थे। यह एक ऐसी टॉकीज थी जहां फ्लॉप फिल्में भी हिट हो जाती थी। वितरक यहां अपनी फिल्में रिलीज करने के लिए इंतजार करते थे।
जिन लोगों ने जयपुर का राजघराना टॉकीज देखा होगा, उसकी तुलना में जीत टॉकीज कमतर नहीं थी। आसपास के कस्बों से बिलासपुर आने वालों का एक काम जीत टॉकीज में फिल्में देखना भी होता था।
पर, शहर में दो बड़े शॉपिंग मॉल खुलने और उनमें मल्टीप्लेक्स चालू हो जाने के बाद जीत टॉकीज में दर्शकों की संख्या घटने लगी। उसके बाद कोरोना संक्रमण से हालत और खराब हो गई। अब इस टॉकीज के मालिक ने कोई नया व्यवसाय करने के लिए इसे ढहा देने का निर्णय लिया है।
तीसरी लहर की आहट के बीच छूट
प्रदेश में लॉकडाउन को लेकर के बीते दो दिनों में और रियायत बरती गई है। राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के कई जिलों में रात्रिकालीन कर्फ्यू समाप्त कर दिया गया है और दुकानों, व्यावसायिक संस्थानों को रात्रि 10 बजे तक खोलने की अनुमति दे दी गई है। ऐसा नहीं भी किया जाता तब भी काम चल सकता था। लोग लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध को इस आदेश के पहले भी नहीं मान रहे थे। अब बस इतना रह गया है कि रात 8 बजे के बाद भी अगर दुकानें खुली मिलीं तो पुलिस महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं करेगी और रात में घूमने वालों को नहीं रोका जायेगा।
यह फैसला ऐसे मौके पर लिया गया है जब कोरोना संक्रमण धीमी गति से बढ़ता दिखाई दे रहा है। प्रशासन ने भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने और मास्क नहीं पहनने वालों पर कार्रवाई करने में ढिलाई शुरू कर दी है। दुकानों-दफ्तरों में सैनिटाइजर भी नहीं दिखाई देते हैं। सरकारी बैठकों में अफसरों ने ही सलीके से मास्क पहनना छोड़ दिया है। शादी ब्याह, आंदोलन, सभायें हो रही हैं। अब जब तीसरी लहर जैसी कोई विपत्ति आई तो एक बार फिर लापरवाही का ठीकरा जनता के ही सिर पर टूटेगा। यह नहीं कहा जाएगा कि प्रशासन भी उदासीन हो गया था।
कानून का प्राइवेटाइजेशन
केंद्र सरकार जब कोई कानून लाती है तो उन लोगों की नींद उड़ जाती है जिनके हित में उसे बताया जाता है। कृषि कानून किसानों के हित में बताया गया पर किसानों का ही अनवरत आंदोलन इसके खिलाफ चल रहा है। श्रम कानूनों में सुधार की बात करते हुए नए कानून लागू किए गए जिसका भी श्रमिक ही विरोध कर रहे हैं। व्यापारियों के लिए जब जीएसटी लागू किया गया तो इसे उनके हित में बताया गया लेकिन व्यापारी इसकी जटिलता और आम जनता भारी भरकम टैक्स से जूझ रहे हैं। अब बात की जा रही है वन संरक्षण कानून में संशोधन का।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेताओं ने इस कानून के मसौदे को तैयार करने के लिए अपनाई जा रही है प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाया है। कोरबा के किसान सभा जिलाध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर कहते हैं कि मसौदा तैयार करने के लिए केंद्र सरकार ने एक विज्ञापन जारी किया है और रुचि की अभिव्यक्ति मंगाई है। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। कानून में संशोधन का काम संवेदनशील विषय है, जिसे सरकार के अधिकारियों को ही बनाना चाहिए। रुचि की अभिव्यक्ति के लिए खुला टेंडर बुलाया जाना ही साबित करता है कि नए कानून से जंगल साफ करने खदानें आवंटित करने और आदिवासियों को बेदखल करने का रास्ता निकाला जाएगा। टेंडर में कारपोरेट कंपनियां रुचि ले सकती हैं और प्रतियोगिता में सबसे आगे रहकर टेंडर हासिल भी कर सकती हैं, ताकि सरकार को मनमाफिक सुझाव दे सकें।
आप सुरक्षित हैं..
राजस्थान और पंजाब के मामलों में कांग्रेस हाईकमान की सख्ती से छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के समर्थकों को भी राहत मिली है। पंजाब और राजस्थान दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री की कुर्सी हिलाने की कोशिश हो रही है। ये हाईकमान को बार बार भरोसे में लेने की कोशिश कर चुके पर लेकिन अब तक तो बात नहीं बनी है। सचिन पायलट भाजपा और नवजोत सिद्दू आम आदमी पार्टी का डर दिखाकर भी हाईकमान को संतुष्ट करने में विफल रहे हैं। मध्यप्रदेश में तो सरकार ही गिर गई मगर कमलनाथ को हटाने की बात नहीं मानी गई। विधायकों की संख्या के लिहाज से देखें तो छत्तीसगढ़ मैं सरकार ज्यादा मजबूत है तोडफ़ोड़ का डर दिखाना भी नहीं हो पाएगा।
पाटन इतना खास क्यों है?
भारत माला परियोजना के तहत बनाई जा रही सडक़ से जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित हुई है उन्हें पाटन व अभनपुर में चार गुना ज्यादा मुआवजा दिया जा रहा है। राजनांदगांव और आरंग के किसान इससे नाराज हैं। पूर्व विधायक नवीन मार्कंडेय ने इस बारे में आरंग एसडीएम से मिलकर ज्ञापन भी सौंपा है। मारकंडे जो कि अधिवक्ता भी हैं, उनका कहना है कि राज्य सरकार का यह भेदभाव संविधान के खिलाफ है। मारकंडे का कहना तो ठीक है एक ही परियोजना से प्रभावित होने वाले अलग-अलग जगहों के किसानों को अलग-अलग मुआवजा क्यों? पाटन और अभनपुर में ऐसा क्या खास है?