राजपथ - जनपथ
इतनी रफ्तार से निपटी फाइल !
सीएस अमिताभ जैन तेज रफ्तार से फाइल निपटाने के लिए जाने जाते हैं। पिछले दिनों पीसीसीएफ के रिक्त पद पर प्रमोशन के लिए डीपीसी हुई, और यह बैठक डेढ़ मिनट में निपट गई। इसमें 87 बैच के आईएफएस के मुरूगन पीसीसीएफ के पद पर प्रमोट हो गए, और केन्द्र सरकार में एडिशनल सेक्रेटरी वीएस उमा देवी को प्रोफार्मा प्रमोशन मिल गया।
बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई। इसमें पीएस फॉरेस्ट मनोज पिंगुआ, मंत्रालय और हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी अरण्य भवन से जुड़े थे। सीएस ने सिर्फ इतना ही पूछा कि पैनल में कितने अफसर हैं? इस पर पिंगुआ ने बताया कि कुल पांच अफसरों को रखा गया है। इसके बाद सीएस ने सीनियरिटी क्रम में ऊपर मुरूगन, और उमा देवी को प्रमोट करने के प्रस्ताव पर सहमति दे दी। सीएस ने पिंगुआ से कहा कि वो अभी बैठे हुए हैं, और अभी उनसे फाइल पर दस्तखत ले लें। इस तरह बैठक निपट गई।
जीपी की बारीक पड़ताल
निलंबित एडीजी जीपी सिंह की प्रापर्टी की बारीक पड़ताल हो रही है। जीपी सिंह के परिवार के लोग ओडिशा के बड़बिल में भी रहते हैं, और यह इलाका माइनिंग के लिए काफी मशहूर है। जीपी सिंह के बुजुर्ग पिता को कंपनियों से हर महीने कंसलटेंट के रूप में 8 लाख रुपए मिलने की बात भी सामने आई है। अब एसीबी, कंपनियों का रिकॉर्ड खंगाल रही है, और एक-एक कर पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है।
चर्चा है कि कुछ शैल कंपनियां भी हैं। इसके जरिए ब्लैक मनी को परिजनों के खाते में ट्रांसफर किया गया है। हालांकि ये सब खुलासे अनुमान से काफी कम हैं। वजह यह है कि जीपी सिंह को अपने खिलाफ कार्रवाई का अंदाजा पहले से हो गया था, और वे इसको रुकवाने की कोशिश में भी थे। फिर भी, जितना कुछ मिला है वह भी जीपी सिंह के कैरियर चौपट करने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है। देखना है आगे होता है क्या?
केन्द्र को मिला ऑक्सीजन?
केन्द्र सरकार का यह कहना कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से देश में कोई मौत नहीं हुई, किसी के गले नहीं उतर रहा है। लोगों ने अपनी आंखों के सामने अपनों को, टीवी और अखबारों में लोगों को ऑक्सीजन सप्लाई नहीं होने के चलते, तड़पते-मरते देखा है। मगर, क्या छत्तीसगढ़ में वैसा ही हुआ, जैसा केन्द्र सरकार कह रही है?
यह सवाल स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के 6 भागों में आये लम्बे ट्वीट से खड़ा किया जा सकता है। राहुल गांधी को टैग किये गये इस ट्वीट में उन्होंने जो लिखा उसका सार यह है कि छत्तीसगढ़ में सरप्लस ऑक्सीजन था। अधिकतम खपत अप्रैल माह में जिस दिन दर्ज की गई, उस दिन प्रदेश में ऑक्सीजन गैस का उत्पादन करीब दुगुना था। सिंहदेव ने कहा है कि प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत की कोई जानकारी किसी को हो तो इसे वे पारदर्शिता के साथ सामने लाना चाहेंगे। उन्होंने इस काम में मीडिया व सामाजिक तथा गैर-सरकारी संगठनों से मदद करने भी कहा है।
यह सही है कि प्रदेश में ऑक्सीजन का उत्पादन सरप्लस था। इसीलिये दिल्ली के लिये टैंकर रेल से भेजे गये। उद्योगपतियों ने उद्योगों में फिर से ऑक्सीजन की अनुमति देकर प्लांट शुरू करने की मांग की, जिसे मान ली गई।
अब केंद्र सरकार के पास अपने जवाब के बचाव में छत्तीसगढ़ का उदाहरण सामने है। स्वास्थ्य विभाग के पास भी कोई आंकड़ा ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का नहीं है।
पर यह पूरी सच्चाई नहीं है। यह सही है की ऑक्सीजन का उत्पादन छत्तीसगढ़ में भरपूर है। पर वह ऑक्सीजन फैक्ट्री से सीधे कोरोना मरीजों के फेफड़ों तक नहीं जा रहा था। ऑक्सीजन की अस्पतालों को समय पर सप्लाई नहीं हुई। ऑक्सीजन सिलेंडरों की भारी कमी पैदा हो गई। अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड नहीं थे, इसके चलते ऑक्सीजन होते हुए भी मरीजों को उपलब्ध नहीं कराये जा सके और दर्जनों मौतें हुई हैं। अगर ऐसा नहीं था तो प्रदेश भर में दूसरी लहर के बाद से द्रुत गति से ऑक्सीजन बेड बढ़ाने की नौबत क्यों आ रही है? अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाने की बात क्यों की जा रही है। जिला ही नहीं तहसील स्तर के अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड क्यों तैयार कराये गये?
मौत के दरवाजे पर खड़े मरीजों के लिये दो चार घंटे में ही ऑक्सीजन मिलने थे, पर नहीं मिले। उनके लिये फैक्ट्रियों के तैयार ऑक्सीजन का महत्व उतना ही था जितना वायुमंडल का है।
स्वीकार किया जाना चाहिए कि कोरोनावायरस से होने वाली मौतों में बहुत से ऐसी थी जो मरीजों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचने के कारण हुई। ऑक्सीजन भरपूर होने के बावजूद अधोसंरचना दुरुस्त नहीं होने का कारण कोरोना के मरीज तक ऑक्सीजन पहुंच नहीं पाया और वे मारे गए। और इस आंकड़े को जुटाने के लिए किसी गैर सरकारी संगठन की जरूरत शायद नहीं पड़ेगी। सरकारी, निजी अस्पतालों से ही मिल जायेंगे।
महंगाई भत्ते पर रुका फैसला
केंद्रीय कर्मचारियों का जब-जब वेतन-भत्ता बढ़ता है, राज्य सरकारों के भी खजाने पर बोझ बढऩा शुरू हो जाता है। प्रदेश भर के कर्मचारियों ने आंदोलन शुरू कर दिया है कि उनको भी केंद्र सरकार की तरह 28 फ़ीसदी महंगाई भत्ता दिया जाए। कोरोना संकट के बाद वैसे भी राज्य सरकार ने 2 साल पहले से तय हो चुके 16 फीसदी महंगाई भत्ते को अब तक नहीं दिया है। अब यह नई मुसीबत सरकार के सामने आ गई है। 20 जुलाई को हुई कैबिनेट की बैठक में महत्व के कई निर्णय लिये गये पर, कर्मचारियों के महंगाई भत्ता बढ़ाने के बारे में विचार नहीं किया गया। वैसे राज्य सरकार देर-सबेर केंद्र सरकार द्वारा घोषित भत्ते के ही अनुरूप अपने कर्मचारियों का भी भत्ता बढ़ा देती है पर फिलहाल तो लग रहा है, लम्बी प्रतीक्षा करनी होगी।
पूर्व विधायकों की पेंशन
पूर्व विधायकों की पेंशन 20 हजार से बढ़ाकर 35 हजार कर दी गई है। यात्रा व चिकित्सा सेवा के लिये उन्हें करीब 4 लाख रुपये की सुविधा और मिलती है। मृत्यु की स्थिति में 50 फीसदी के करीब पेंशन उनके साथी या आश्रित को भी मिलती है।
दरअसल, सभी पूर्व विधायकों की स्थिति एक जैसी है भी नहीं। बहुत के पास एक बार विधायक बन जाने के बाद कोई दूसरा काम नहीं रहता। एक बार विधायक बन जाने के बाद उनका कद इतना बढ़ चुका होता है कि टिकट मिलने के पहले के पेशे को वे दुबारा लौटकर अपना भी नहीं पाते। ऐसे में यह पेंशन ही है जो उनकी आर्थिक स्थिति को संभालकर रखता है।
कई बार सवाल उठा कि कोई पांच साल के लिये विधायक बना तो उसे जीवन भर के लिये पेंशन देने का क्या औचित्य है। सरकारी कर्मचारियों को तो 60 साल की उम्र पूरी करने के बाद यह सुविधा मिलती है। पर इन मांगों पर सदन में फैसला उन्हीं को करना है जिन्हें लाभ मिल रहा है। वे अपने पैरों में क्यों कुल्हाड़ी मारेंगे। आखिर उन्हें भी कभी भूतपूर्व हो जाने का डर तो सताता ही होगा। ([email protected])