राजपथ - जनपथ
विधायक की गाड़ी में एंबुलेंस की डीजल
कोविड संक्रमण काल में लोग दहशत में थे। सारा ध्यान अपना और अपने परिजनों को कोरोना के प्रकोप से बचाने में लगा था। पर इस बीच सरकारी फंड की जमकर हेराफेरी की गई। ऐसा ही एक मामला डोंगरगांव के विधायक दलेश्वर साहू से जुड़ा है। यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में जीवन दीप समिति है जिसमें लोग दान करते हैं। समिति के फंड में ओपीडी और दूसरी जांच के लिये मरीजों से लिये जाने वाले शुल्क की रकम भी जमा की जाती है। इस पैसे का इस्तेमाल मरीजों के इलाज और स्वास्थ्य केन्द्र में सुविधाओं के विस्तार के लिये किया जाता है। पर जब मई जून महीने में कोरोना का प्रकोप अपने चरम पर था, विधायक की गाड़ी में इस फंड से डीजल भरा गया। ऐसे कई बिल आरटीआई से निकाल लिये गये हैं। अब यहां की बीएमओ सफाई दे रही है कि ड्राइवर ने पेट्रोल पंप में गलती से विधायक का नाम लिखवा दिया जबकि डीजल स्वास्थ्य केन्द्र की एंबुलेंस के में भरे गये। कोरोना काल में मरीजों की मदद के लिये विधायक की सराहना की जाती रही, पर जब ये बिल सोशल मीडिया पर वायरल हो गये हैं तो उनकी खूब छिछालेदार हो रही है।
मरीजों से हुई लूट का भंडाफोड़
बिलासपुर में स्काई हॉस्पिटल के डायरेक्टर को अपहरण के बाद छोड़ दिया गया है पर इस घटना ने कोरोना संक्रमण काल में मरीजों के परिजनों से हुई लूट की पोल-पट्टी खोलकर रख दी है। हॉस्पिटल में कोरोना काल के दौरान काम करने वाले यूपी मुरादाबाद के जिन दो डॉक्टरों पर अपहरण का आरोप लगा है, बताया जाता है कि उन्हें दवा, उपकरण व स्टाफ का खर्च काटकर कुल बिलिंग की 60 फीसदी राशि देनी थी और 40 फीसदी संचालक को रखना था। अस्पताल में जब कोरोना बेड खाली हो गये तो डॉक्टरों ने अपना हिस्सा मांगा लेकिन संचालक मुकर गया। बताते हैं कि अकेले स्काई हॉस्पिटल में इस दौरान 7 करोड़ रुपये का बिल बना था। जो इलाज नहीं किये जाते थे, जो इंजेक्शन और दवा नहीं दी जाती थी उनका बिल भी बना क्योंकि अस्पताल के भीतर मरीज का क्या उपचार हो रहा है यह देखने की अनुमति परिजनों को नहीं थी।
एक अस्पताल की यदि इतनी कमाई हुई हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाकी ने कितनी लूट मचाई होगी। बिलों की मॉनिटरिंग के लिये बनाई टीम ने कुछ मामलों में शिकायत करने वाले मरीजों की रकम ही वापस कराई। मनमाने चार्ज को लेकर हाईकोर्ट में एक मरीज के परिजन ने केस भी दायर कर दिया है।
हर जिले में कलेक्टर, सीएमएचओ से लेकर विधायक और मंत्रियों तक से भारी-भरकम बिल बनाने की दर्जनों शिकायतें हुई लेकिन कार्रवाई एक अस्पताल पर नहीं हुई। क्या यह मुमकिन है कि बिना इनको भरोसे में लिये ही डॉक्टर और अस्पताल ऐसा कर रहे थे?
कोंडागांव के लिये भर्ती रायपुर से
भाजपा शासनकाल में जब आउटसोर्सिंग से शिक्षकों की भर्ती का फैसला लिया गया था तब विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने इसका भारी विरोध किया था। पर अब भी हाल वही है। केन्द्र सरकार की सहायता से शुरू की गई एक परियोजना छत्तीसगढ़ इन्क्लूसिव रूरल एंड एक्सीलरेटेड एग्रीकल्चर ग्रोथ प्रोजेक्ट (चिराग) के लिये कम्प्यूटर आपरेटर, फील्ड वर्कर, मैनेजर जैसे पदों पर कोंडागांव में नियुक्ति की जानी है। यह काम कृषि विभाग को किया जाना था पर जिम्मेदारी दी गई है एक निजी कंपनी एसपीजी जॉब्स को। इसके पोर्टल का लिंक भी कृषि विभाग की वेबसाइट पर एनआईसी में दे रखा है। सवाल यह उठता है कि बस्तर में वैसे भी अनुसूचित क्षेत्र होने के कारण स्थानीय बेरोजगारों को नियुक्त करने और प्रक्रियायें जिला स्तर पर पूरी करने का प्रावधान है। इसके बावजूद उस कंपनी को काम सौंपा गया है जिसने अपना दफ्तर रायपुर में खोल रखा है। निजी कंपनी चयन में पारदर्शिता कितनी रखेगी? कोंडागांव के कितने लोगों को मौका मिल पाएगा?