राजपथ - जनपथ
त्यौहार पर जेल में?
पुरानी बस्ती थाने में मारपीट के आरोपी भाजयुमो कार्यकर्ताओं की जमानत हो गई है। कुल 9 लोगों के खिलाफ पुलिस ने प्रकरण दर्ज किया था जिसमें से तीन जेल में बंद थे। भाजयुमो कार्यकर्ताओं पर कथित तौर पर धर्मांतरण में लिप्त पास्टर, और अन्य लोगों के साथ मारपीट करने का आरोप था। चूंकि आरोपियों ने कथित धर्मांतरण के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी इसलिए उनके पीछे पूरी पार्टी खड़ी हो गई।
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने तो आरोपियों को छुड़ाने के लिए वकीलों की फौज लगा दी थी। इसके बाद जेल में बंद युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं की हाईकोर्ट से जमानत हो गई। बाकी फरार आरोपियों को अग्रिम जमानत मिल गई। अब बारी कवर्धा की है। कवर्धा में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे के मामले में 59 लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज हुआ है। इन सबके खिलाफ गंभीर धाराएं लगी हैं। जिन प्रमुख लोगों को आरोपी बनाया गया है, उनमें सांसद संतोष पाण्डेय, और पूर्व सांसद अभिषेक सिंह भी है।
भाजपाई दिग्गजों को तो पुलिस ने पकड़ा नहीं है, लेकिन पार्टी से जुड़े जो लोग गिरफ्तार हुए हैं वो दूसरे जिलों से आए थे। गिरफ्तार लोगों की रिहाई की चिंता परिजनों को सताने लगी है। और वो भाजपा दफ्तर या फिर पूर्व सीएम रमन सिंह के आगे-पीछे हो रहे हैं। पार्टी की तरफ से यह कोशिश हुई कि सभी को निशर्त रिहा कर दिया जाए।
पार्टी का एक प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल से भी मिलने गया था। मगर सरकार ने सख्ती दिखाई है। और आरोपियों की रिहाई न हो पाए, इसके लिए जरूरी कानूनी प्रबंध भी कर रखे हैं। त्योहार नजदीक है इसलिए आरोपियों को छुड़वाने के लिए परिजनों का दबाव भी भाजपा नेताओं पर बढ़ता जा रहा है। ये परिजन बृजमोहन जैसी सक्रियता चाहते हैं। मगर वैसा नहीं होने पर परिजनों का गुस्सा भी भडक़ रहा है।
बृजमोहन के तो सरकार, और प्रशासन के लोगों के साथ बेहतर तालमेल हैं। अगर पुरानी बस्ती थाने में मारपीट का वीडियो वायरल नहीं होता, तो सभी थाने से ही छूट गए होते। पहले तो जमानती धाराएं लगाई गई थी। लेकिन बाद में मीडिया में मामला उछलने के बाद गैर जमानती धाराएं जोड़ी गई। मगर कवर्धा मामले के कर्ताधर्ता भाजपा नेताओं की सरकार के लोगों के साथ राजनीतिक अदावत जगजाहिर है। इसका फल अब जेल में बंद कार्यकर्ता भुगत रहे हैं।
शराबबंदी का लक्ष्य बहुत करीब...
छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन लिमिटेड ने प्लेसमेंट एजेंसी को 4 अक्टूबर लिखी चि_ी में कहा कि चीफ सेल्समैन को शराब बिक्री का टारगेट दें। जो लोग इसे पूरा न करें उसकी नौकरी छीन लें। इस मामूली से परिपत्र के बहाने शराबबंदी को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल उठाया जा रहा है। चुनाव से पहले वह शराब बंद करना चाहती है, पर इतना बेचना चाहती है कि रेवन्यू के अनुमानित घाटे की भरपाई हो जाये। फिर आबकारी विभाग का उडऩ दस्ता भी है। ज्यादा शराब बिक्री यानि ज्यादा कोचिये। ज्याद कोचिये मतलब ज्यादा छापे, ज्यादा छापे मतलब अफसरों की ज्यादा कमाई। वैसे भी नीलामी बंद करने के बाद से पता नहीं शराब निर्माता कंपनियां ऊपर कहां-कहां सेटिंग कर लेती हैं, उनके हाथ में चखना दुकान और कर्टन की बिक्री को छोडक़र कुछ आता नहीं है। वैसे, कार्पोरेशन यदि सचमुच अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहती है तो उसे डिस्काउंट ऑफर भी लाना चाहिये, जैसा सरकारी होने के पहले था। नशामुक्ति अभियान के लिये जिस तरह बजट एलॉट किया जाता है उसी तरह प्रेरित करने के लिए भी प्रावधान रखना चाहिये। खाली-पीली सेल्समेन पर दबाव डालने से बिक्री नहीं बढऩे वाली। बेचारों की नौकरी पर ही तलवार लटकी रहेगी।
अरवा के दिन फिरे पर उसना?
धान खरीदी पर केन्द्र की नीति से राज्य सरकार इस बार भी नाखुश है। इसके बावजूद कि केन्द्र ने 61 लाख टन चावल खरीदने का आश्वासन दिया है। दरअसल, पिछले साल भी करीब 24 लाख टन चावल ही लिया गया, जबकि भरोसा 60 लाख का दिलाया गया था। इस बार इसमें से केन्द्र कितना उठायेगी, उठाव हो जायेगा तब मालूम होगा। दूसरी मुसीबत जिसे लेकर सरकार ज्यादा चिंतित है वह है केन्द्र केवल अरवा चावल लेगी, उसना नहीं। वैसे प्रदेश में अरवा मिलों की ही संख्या ज्यादा है। 1800 राइस मिलों में करीब 1300। पिछले कुछ वर्षों से अरवा मिलों की दशा ठीक नहीं थी क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार और केन्द्र दोनों की मांग उसना चावल की ही अधिक थी। केन्द्र दोनों चावल की मिक्स खरीदी करती रही है। अब स्थिति उलट है। उसना राइस मिलों के बंद हो जाने की आशंका है।
सरकार ने अपने चुनावी वादे के कारण कार्यकाल के पहले वर्ष में 2500 रुपये क्विंटल सीधे-सीधे भुगतान का निर्णय लिया। केन्द्र की आपत्ति के बाद राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत अतिरिक्त राशि दी गई। इसके बाद केन्द्र थोड़ा नरम है।
पर, यह निर्भरता खत्म भी तो हो। धान को खुले बाजार में नुकसान उठाकर बेचने, हाथियों को मुफ्त खिलाने के बावजूद अतिरिक्त भंडार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। दूसरी तरफ हर वर्ष की तरह इस बार भी खरीदी का लक्ष्य बढ़ाकर 1 करोड़ टन कर दिया गया है। जाहिर है, मुश्किलें आने वाले सालों में बढ़ेगी ही। सरकारी खरीद दर के कारण इसके पैदावार में कमी आने के आसार फिलहाल नहीं दिखते। धान से बायोफ्यूल के उत्पादन में रोड़ा है। राज्य का कहना है केन्द्र की सहमति नहीं। पर कुक्कुट आहार, सालवेंट, पावर, शराब उद्योग में भी चावल का इस्तेमाल हो सकता है, निर्यात भी। केन्द्र पर कम से कम आश्रित रहकर राज्य कैसे धान का समायोजन कर सकती है इस पर विचार तो होना ही चाहिये। प्रदेश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा मुद्दा है।
उखाड़ी जा रही खराब बनी सडक़..
पता नहीं यह हाईकोर्ट में लगातार सडक़ों पर चल रही सुनवाई का असर है, या लोक निर्माण मंत्री तक पहुंची शिकायत का। मुख्यमंत्री ने गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले के उद्घाटन और उसके बाद करीब 324 करोड़ रुपये के सडक़ों की स्वीकृति दी थी। इनका काम हो रहा है। जो सडक़ें बन चुकी हैं, उन्हें घटिया पाया गया है। ईएनसी ने बसंतपुर जाने वाली सडक़ का निरीक्षण करने के बाद एक तरफ से तीन किलोमीटर सडक़ को उखाडक़र दुबारा बनाने के लिये ठेकेदार से कहा है। दूसरे तरफ सडक़ की जांच भी शुरू कर दी गई है। इंजीनियरों को कारण बताओ नोटिस भी दिया गया है। आम तौर पर सडक़ों को उखाडक़र दुबारा बनाने का निर्देश दिया नहीं जाता है, पैबंद लगवाये जाते हैं। पर साहब ने ऐसी हिम्मत दिखाई है तो ऐसा निरीक्षण प्रदेश की दूसरी सडक़ों का भी कर लें, अधिकारियों-ठेकेदारों मिलीभगत से उनकी भी हालत बदतर ही हो रही है।
छाया वर्मा दूसरी समितियों में...
कल दी गई यह जानकारी अधूरी थी कि राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा को संसद की स्थायी समितियों से उनकी कम उपस्थिति की वजह से हटा दिया गया। दरअसल, उन्हें एक समिति से हटाकर दूसरी समितियों में रखा गया है। उन्हें सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण समिति तथा कृषि विभाग की स्थायी समिति में रखा गया है। छाया वर्मा को एक बार राज्यसभा की सर्वेश्रेष्ठ महिला सदस्य के रूप में सम्मानित भी किया गया था।