राजपथ - जनपथ
बढ़त मिलेगी या जलवा बरकरार ?
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस, और भाजपा ने जोर लगाया है। सोमवार को मतदान होगा, और 23 तारीख को देर शाम तक नतीजे घोषित होने की उम्मीद है। जिन 15 निकायों में चुनाव हो रहे हैं उनमें चार नगर निगम भी हैं। इससे पहले 10 नगर निगमों में चुनाव हुए थे, उनमें से एक में भी भाजपा अपना मेयर नहीं बनवा पाई। मगर इस बार भाजपा ने चारों निगमों में अपना मेयर बनवाने के लिए पूरी ताकत झोंकी है।
चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद जीत के अपने-अपने दावे हैं। कुछ विश्लेषकों का अंदाज है कि रिसाली, भिलाई-चरौदा, और बीरगांव में कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है। जबकि भाजपा की स्थिति भिलाई नगर निगम में बेहतर दिख रही है। नगर पालिकाओं में से सिर्फ शिवपुर-चरचा में ही भाजपा को उम्मीदें हैं।
पहले खैरागढ़ में भी भाजपा मजबूत स्थिति में दिख रही थी, लेकिन प्रचार खत्म होने से पहले दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह के बच्चों के कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में जुटने से माहौल बदलता दिख रहा है। इससे परे बस्तर के पांच निकायों में तो वैसे भी भाजपा स्थानीय नेताओं के बूते चुनाव लड़ रही है।
कुल मिलाकर हाल यह है कि 15 निकायों में से दो-तीन में ही भाजपा को बढ़त के आसार दिख रहे हैं। बाकी जगहों में कांग्रेस की अच्छी संभावना है। हालांकि भाजपा के रणनीतिकारों को ज्यादातर निकायों में बढ़त की उम्मीद है। देखना है कि वाकई निकायों में भाजपा को बढ़त मिलेगी, अथवा दाऊ का जलवा बरकरार रहेगा।
पुलिस में कौन कहां?
पीएचक्यू में जल्द ही फेरबदल होने जा रहा है। एडीजी राजेश मिश्रा प्रतिनियुक्ति से लौट आए हैं, और स्पेशल डीजी आर के विज 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। स्वाभाविक है कि कम से कम एडीजी स्तर के अफसरों के प्रभार बदलेंगे। यह भी संयोग है कि डीजीपी अशोक जुनेजा जब रायगढ़ एसपी थे तब राजेश मिश्रा ने ही उनकी जगह ली थी। जुनेजा जब दुर्ग एसपी थे तब भी राजेश मिश्रा ने उनसे ही चार्ज लिया था।
चर्चा थी कि राजेश मिश्रा को नक्सल ऑपरेशन का प्रभार सौंपा जा सकता है। मगर इसकी संभावना कम है। वजह यह है कि विवेकानंद बस्तर में काम कर चुके हैं, और उन्हें नक्सल मोर्चे पर ठीक-ठाक अफसर माना जाता है। ऐसे में मिश्रा को पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन अथवा डायरेक्टर लोक अभियोजन का प्रभार सौंपा जा सकता है। हाउसिंग कॉर्पोरेशन में पवन देव हैं। पिछले दिनों सीएम ने नक्सल इलाकों में आवास निर्माण कार्यों में देरी पर नाराजगी जताई थी। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि पवन देव की जगह राजेश मिश्रा अथवा किसी अन्य की पोस्टिंग हो सकती है। कुछ हफ़्ते पहले उड़ती-उड़ती यह चर्चा भी थी कि राजेश मिश्रा जल्द ही डीजीपी होंगे।
एक और आंदोलन की आहट
तीन वर्ष के दौरान कांग्रेस सरकार ने घोषणा पत्र के कई वादे पूरे करने का दावा किया है, लेकिन शासकीय सेवा के नियमित, अनियमित, तदर्थ और दैनिक वेतनभोगियों के लिये की गई अनेक घोषणायें पूरी नहीं हुई हैं। सहायक शिक्षक वेतन विसंगति दूर करने की मांग पर आंदोलन कर ही रहे हैं। अब मितानिनों का असंतोष सामने आ रहा है। ब्लॉक स्तर पर कई जगह उनकी बैठकें हो चुकी हैं। उनका कहना है कि चुनाव के समय उन्हें पांच-पांच हजार रुपये देने का वादा किया गया था, लेकिन सरकार ने अब तक उसे पूरा नहीं किया। वे प्रदेश स्तर पर आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं।
दरअसल, तीन साल पूरा होने के बाद लोगों को लगता है कि चुनाव में किये गये वायदों को पूरा करने के लिये अब सरकार के पास ज्यादा समय बचा नहीं है। सरकार के लिये भी यह चुनौती होगी कि जो वायदे वह अब तक पूरे नहीं कर पाई है, उन पर जल्दी घोषणायें कर लोगों का असंतोष दूर करे।
इलेक्शन अर्जेंट तो यहां भी लागू होगा
भिलाई नगर निगम में होने वाले चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू है, सरकारी कर्मचारी अधिकारियों की छुट्टियों पर पाबंदी है। उसी तरह जैसे लोकसभा और विधानसभा चुनावों में होती है। भिलाई इस्पात संयंत्र के अधिकारियों के ध्यान में यह बात नहीं आई कि बिजली भी चुनाव के दौरान जरूरी सेवाओं में शामिल है। इलेक्ट्रिकल विभाग ने एक आदेश जारी कर मेंटनेंस के नाम पर 19 से 25 दिसंबर तक सुबह 10 बजे से 1.30 बजे दोपहर तक भिलाई में बिजली कटौती का आदेश जारी कर दिया। राज्य निर्वाचन आयोग के ध्यान में यह बात लाई गई। आयोग ने इसे गंभीरता से लिया। उसने बीएसपी प्रबंधन को नोटिस जारी कर दिया और कटौती को स्थगित करने का आदेश दिया। बीएसपी प्रबंधन को नोटिस मिलने के बाद बात समझ में आ गई और उसने तुरंत बिजली कटौती का आदेश वापस ले लिया।
बाघ नहीं मिले, पर ट्रैप कैमरे गायब
अचानकमार अभयारण्य के बाहर बेलगहना रेंज में एक बाघ शावक का शव मिलने के बाद वहां बाघ की दहाड़ भी सुनाई दी और तेंदुआ भी दिखा। इसके बाद वन अफसरों को लगा कि अभयारण्य के बाहर भी जंगल में ये वन्य प्राणी हो सकते हैं। यह जरूरी इसलिये भी लगा होगा क्योंकि अब तक मालूम नहीं हो पाया है कि शावक का शिकार कैसे हुआ? अधिकारियों ने कुछ जगह चिन्हांकित कर वहां ट्रैप कैमरे लगा दिये। कुछ दिन बाद, तीन दिन पहले मूवमेंट का पता करने ट्रैप कैमरों को निकालने के लिये अधिकारी गये तो पता चला कि चार कैमरे चुरा लिये गये हैं। जो कैमरे बचे उनमें किसी बाघ या तेंदुए की मूवमेंट नहीं मिली।
जिस जंगल में जगह-जगह बैरियर लगे हों, फारेस्ट गार्ड और बीट गार्ड की ड्यूटी हो, वहां वन कर्मचारियों की जानकारी के बगैर कौन घुसा? नाराज वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि सारे अधिकारी शहरों में रहते हैं, उनसे जंगल की रखवाली की उम्मीद नहीं कर सकते। चाहे शिकार का मामला हो या पेड़ों की कटाई का। एक अजीब सुझाव भी आया है कि वन अधिकारी कर्मचारी खुद निगरानी तो नहीं कर पा रहे हैं, ट्रैप कैमरों की निगरानी के लिये सीसीटीवी कैमरे भी लगा दिये जायें। सुझाव देने वाले को शायद भरोसा है कि सीसीटीवी कैमरों की चोरी ट्रैप कैमरों की तरह नहीं होगी।