राजपथ - जनपथ
तगड़ी घेराबंदी में रहे विक्रांत
खैरागढ़ उपचुनाव में भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार रहे विक्रांत सिंह अपनी ही पार्टी की घेरेबंदी में रहे। विक्रांत की नाराजगी को भांपते हुए अप्रत्यक्ष रूप से घेरने के लिहाज से सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक भाजपा की उन पर नजर रही। प्रचार के दौरान भाजपा को विक्रांत को टिकट नहीं दिए जाने से नुकसान का अंदेशा था। पार्टी ने विक्रांत के इर्द-गिर्द कुछ नेताओं को तैनात कर दिया था।
सुनते हैं कि अकलतरा विधायक सौरभ सिंह रोज नाश्ते की टेबल पर विक्रांत के साथ होते थे। नाश्ता खत्म होने के कुछ घंटों में संगठन महामंत्री पवन साय विक्रांत को अपने साथ लेकर प्रचार के लिए निकलते थे। दिन में प्रचार खत्म होने के बाद देर शाम तक विक्रांत को बृजमोहन अपने साथ रखते थे। शाम को चुनावी प्रचार करने के बीच विक्रांत को क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठक और रणनीति तैयार करने साथ रखा जाता था। इसके बाद देर रात यानी 10-11 बजे के बीच रोजाना प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी विक्रांत से वीडिय़ो क्रान्फ्रेस पर चुनावी गतिविधियों का रिपोर्ट लेती थीं।
चर्चा है कि पार्टी को आभास था कि टिकट की अनदेखी से विक्रांत के समर्थक और कार्यकर्ता चुनाव प्रचार से दूर हो सकते हैं। सुनते हैं कि विक्रांत की राजनीतिक स्थिति कोमल जंघेल के मुकाबले मजबूत रही। सिर्फ जातिवाद का कार्ड खेलने के लिए कोमल पांचवीं बार टिकट पाने में कामयाब रहे। सियासी हल्के में चर्चा रही कि कांग्रेस सरकार के कुछ रणनीतिकारों ने भी विक्रांत से संपर्क किया था। यह भी खबर थी कि प्रचार के शुरूआती दिनों में पूर्व सीएम रमन सिंह ने भी विक्रांत के साथ बैठक की थी। विक्रांत को घेरे रखने के लिए भाजपा की इस सियासी चाल से जुड़ी बातें अब सामने आने लगी हैं।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
प्रदेश के एक बड़े निगम में अभूतपूर्व शांति है। पेयजल, सफाई, और सरकारी योजनाओं में खुले तौर पर भ्रष्टाचार हो रहा है। मगर विरोधी दल के पार्षदों ने खामोशी ओढ़ ली है। पार्टी के निर्देश पर, अथवा सामान्य सभा में थोड़ा बहुत दिखावे के लिए हो हल्ला हो जाता है, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हो रहा है।
सुनते हैं कि पार्टी के एक बड़े नेता ने पार्षदों की खामोशी का राज जानने की कोशिश की, तो खुलासा हुआ कि निगम के मुखिया ने योजनाओं में कमीशन का ऐसा सिस्टम बना दिया है, जिससे पार्षदों को अतिरिक्त कमाई के लिए हाथ-पांव मारने की जरूरत नहीं है। किसी भी वार्ड में कोई भी निर्माण कार्य होगा, उसका दो फीसदी कमीशन बिना मांगे संबंधित वार्ड पार्षद तक पहुंच जाएगा। सफाई ठेकेदारों को भी इसी तरह के निर्देश जा चुके हैं। अब निगम के मुखिया पार्षदों के हितों का इतना कुछ ध्यान रख रखते हैं, तो विरोध करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।
लोगों के दिमाग में इन दिनों धर्म, कर्म और ज्योतिष कुछ अधिक ही भरा हुआ है। उसका एक नमूना सोशल मीडिया में देखने को मिला।