संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक और, बड़े कमजोर तबके की मदद के लिए छत्तीसगढ़ में बड़ी योजना राहुल के हाथों शुरू
03-Feb-2022 2:33 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक और, बड़े कमजोर तबके की मदद के लिए छत्तीसगढ़ में बड़ी योजना राहुल के हाथों शुरू

छत्तीसगढ़ में ग्रामीण भूमिहीन खेतिहर मजदूरों या किसानों की मदद के लिए आज सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी के हाथों एक बड़ी योजना शुरू की गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र के मुताबिक किसानों की कर्ज माफी का ऐतिहासिक काम सरकार संभालने के कुछ घंटों के भीतर ही कर दिया था। उसके बाद से भी लगातार राज्य सरकार ने ग्रामीण विकास के हिसाब से जमीन के भीतर बारिश के पानी को संजोने के लिए, और गावों के पशुधन के उत्पादक उपयोग को बढ़ाने के लिए, तरह-तरह की योजनाएं लागू कीं। छत्तीसगढ़ में गाय से जुड़ी हुई जितनी योजनाएं लागू हुईं उन्होंने गाय को बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाकर चलने वाली भाजपा को भी हक्का-बक्का कर दिया है कि इस राज्य में भूपेश बघेल का विरोध कैसे किया जाए? लेकिन आज यहाँ लिखने का मुद्दा भाजपा के साथ कांग्रेस के टकराव का नहीं है बल्कि एक राज्य का मुद्दा है जिसमें लगातार किसानों, कमजोर तबकों, और ग्रामीण विकास पर काम किया गया, और करोड़ों लोगों को इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष फायदा मिला। देश के बहुत से राज्यों में छत्तीसगढ़ सरकार की कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नीतियां उत्सुकता पैदा कर रही हैं, और राज्य बनने के बाद शायद पहली बार सरकार का सबसे अधिक फोकस इन तबकों पर रहा है।

आज राहुल गांधी के हाथों राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना शुरू हुई है जिससे प्रदेश के लाखों खेतविहीन ग्रामीण गरीबों को साल में छह हजार रुपियों की सीधी नगद मदद मिलेगी। राज्य सरकार ने करीब 200 करोड़ रुपए से 3.50 लाख से अधिक लोगों को यह मदद आज से देना शुरू किया है और यह साल भर में दो हजार रुपियों की तीन किस्तों में दी जाएगी। सरकार ने इसके लिए पिछले बरस भूमिहीन कृषि मजदूरों का रजिस्ट्रेशन भी किया है और इसमें दूसरे हुनर पर जिंदा रहने वाले चरवाहा, बढ़ई, लोहार, मोची, नाई, धोबी, और पुरोहित जैसे लोग शामिल होंगे। कुल मिलाकर ऐसे तमाम ग्रामीण गरीब जो कि अब तक सरकार की खेती और धान की किसी योजना के तहत फायदा नहीं पा रहे हैं, वे सभी लोग इस दायरे में आ जाएंगे। यह एक कमजोर तबके को कैश ट्रांसफर वाली योजना है जिसका दायरा बड़ा व्यापक रखा गया है और जिसमें बाद में और तबके जोड़े भी जा सकेंगे।

इसके पीछे सरकार का यह तर्क है कि राज्य में खरीफ के दौरान तो खेतिहर मजदूरी के पर्याप्त मौके रहते हैं, लेकिन रबी फसल के दौरान खेती का रकबा ही घट जाता है और वैसे में मजदूरी की गुंजाइश भी घट जाती है। छत्तीसगढ़ में एक बात अच्छी यह हुई है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के पिछले पूरे दौर में ग्रामीण रोजगार गारंटी देने वाले मनरेगा के तहत छत्तीसगढ़ में खूब रोजगार दिया गया। यह योजना केंद्र सरकार में यूपीए सरकार के दौरान शुरू हुई थी और सोनिया गांधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अर्थशास्त्री सदस्य ज्यां द्रेज़ जैसे लोगों की सोच के मुताबिक यह योजना बनी थी। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता पर आए तो उन्होंने इस योजना को यूपीए सरकार की राष्ट्रीय नाकामयाबी का स्मारक करार दिया था, लेकिन बाद में देश को भुखमरी से बचाने के लिए यही योजना मोदी सरकार की मददगार बनी, और लॉकडाउन के पूरे दौर में गरीबों का चूल्हा इसी योजना से जला। छत्तीसगढ़ इस दौर में भी इस योजना के तहत अधिक से अधिक रोजगार देने में कामयाब रहा और मोटे तौर पर मनरेगा में जिन लोगों को काम दिया जाता है, या पिछले 2 बरस में छत्तीसगढ़ में मिला, वही लोग राज्य सरकार की इस नई योजना में भी शामिल रहेंगे। मतलब यह है कि मनरेगा के तहत काम मिलना तो लोगों के काम आया ही, कमजोर तबकों को यह एक सीधी मदद आज से और शुरू हो रही है।

कमजोर तबके के लोगों को सीधी आर्थिक मदद देने के खिलाफ भी एक विचारधारा रहती है जिसका यह मानना रहता है कि इससे लोग निकम्मे हो जाते हैं, और वे काम नहीं करना चाहते। जबकि जमीनी हकीकत को अगर देखा जाए तो छह हजार रुपये साल से किसी की जिंदगी नहीं चलती, उससे उन्हें थोड़ी सी मदद मिल जाती है। वे रोजगार तो करते ही हैं, लेकिन दूसरे खर्चों में यह रकम कुछ काम आ सकती है। अब यह सोचना राज्य सरकार के बजट की बात है कि यह रकम आएगी कहां से और यह प्राथमिकताओं के लिस्ट में कहां रहेगी लेकिन शहरी लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि जिस प्रदेश में शहरी विकास पर हजारों करोड रुपए सालाना खर्च होते हैं वहां पर अगर 200 करोड़ से कई लाख लोगों को मदद पहुंचाई जा सकती है, तो उसमें शहरी या संपन्न तबकों को हर्ज नहीं होना चाहिए। छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने इस कार्यकाल में किन किन तबकों के लिए कितनी आर्थिक मदद की है, कितना अनुदान दिया है, कौन सी योजनाएं शुरू की हैं, और उनकी सामाजिक और आर्थिक उत्पादकता क्या है, इस बारे में उसे जनता के सामने एक अच्छा प्रस्तुतीकरण रखना चाहिए ताकि जिनके मन में कमजोर तबकों के प्रति हमदर्दी है वे संतुष्ट हो सकें, और जो असंतुष्ट लोग हैं, उन्हें हकीकत समझाई जा सके। फिलहाल छत्तीसगढ़ में किसानों, गरीबों, ग्रामीणों, और कमजोर तबकों के लिए जितना कुछ किया जा रहा है यह कांग्रेस पार्टी के ही गिने-चुने बचे दूसरे राज्यों के लिए एक बड़ी चुनौती है. और उन राज्यों के लिए तो चुनौती है ही जहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं है, लेकिन चुनावी घोषणा पत्र बना रही है. ऐसे में भूपेश बघेल इन तमाम राज्यों में कांग्रेस के बड़े प्रचारक बनाए गए हैं क्योंकि उनसे ज्यादा कामयाब मिसाल पार्टी के पास फिलहाल किसी राज्य में नहीं है।  
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