संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ..अगली जंग कैसे लड़ी जाएगी? हिंदुस्तान के आर्मी चीफ की बातों से लेकर हमारी सोच तक..
04-Feb-2022 2:40 PM
  ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ..अगली जंग कैसे लड़ी जाएगी? हिंदुस्तान के आर्मी चीफ की  बातों से लेकर हमारी सोच तक..

हिंदुस्तान के आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने कहा है कि अभी हिंदुस्तान भविष्य में होने वाली जंग का ट्रेलर देख रहा है। वे एक ऑनलाइन सेमिनार में चीन और पाकिस्तान से पैदा होने वाली चुनौतियों पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि विरोधी देश अपने रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लगातार कोशिशें जारी रखेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सूचना क्षेत्र, नेटवर्क, और साइबर स्पेस में भी हर दिन यह देखने मिल रहा है। उन्होंने सरहद पर फौजी मोर्चों के बारे में तो कहा ही, लेकिन उनकी कही कुछ और बातें सरहद से परे की भी हैं जिनमें आम लोगों को समझने में कुछ दिक्कत भी हो सकती है। उन्होंने अफगानिस्तान का जिक्र करते हुए कहा कि वहां पर गैर सरकारी ताकतों ने जिस तरह की स्थितियां पैदा की है उनको भी देखने की जरूरत है। उनका कहना था कि ये गैर सरकारी ताकतें स्थानीय परिस्थितियों पर पनपती हैं और ऐसी स्थितियां बनाती हैं जिससे वह देश अपनी मौजूदा क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पाता।

हम जनरल नरवणे की बातों की बारीकियों पर नहीं जा रहे, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि दुनिया में आने वाले जंग किस-किस किस्म के हो सकते हैं। परंपरागत हथियारों से लेकर मिसाइलों तक और परमाणु हथियारों तक की मौजूदगी बहुत से देशों के तनाव को बढ़ा रही हैं। लेकिन उससे परे भी सोचने की जरूरत है क्योंकि आज तमाम देशों में सत्ता पर काबिज नेता और फौजी जनरल मिलकर परंपरागत सेनाओं को ही सबसे महत्वपूर्ण साबित करने में लगे रहते हैं क्योंकि आमतौर पर देशों के बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा हथियारों की खरीदी पर चले जाता है जिसमें जमकर कमीशनखोरी एक आम बात है। इसलिए हथियारों से लड़े जाने वाले जंग को कोई भी कम करना नहीं चाहते क्योंकि कमाई वहीं पर है। लेकिन ऐसी कमाई और सरहद से दूर बैठे हमारे जैसे लोग जब देखते हैं कि आने वाली लड़ाई जरूरी नहीं है कि सरहद तक सीमित रहे और वह दूसरे मोर्चों पर बिना हथियारों के भी लड़ी जा सकती हैं। अब जैसे आज हिंदुस्तान पेगासस नाम के जिस खुफिया और फौजी घुसपैठिए सॉफ्टवेयर के विवाद में उलझा हुआ है, वैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किसी दूसरे दुश्मन देश के खिलाफ करके वहां के नेताओं, अफसरों, और प्रमुख लोगों के राज उजागर किए जा सकते हैं और उससे एक बड़ी बदअमनी फैलाई जा सकती है। किसी देश का लोकतांत्रिक ढांचा गिराया जा सकता है।

पिछले बहुत से बरसों से लगातार यह बात चल रही है कि साइबर हैकिंग करने वाले घुसपैठिए लगातार दुनिया के कंप्यूटरों में घुस जा रहे हैं, उन पर कब्जा कर रहे हैं। बीस बरस पहले ऐसी फिल्म आ चुकी है कि आतंकियों का एक गिरोह किस तरह अमेरिका के कई शहरों के सार्वजनिक सुविधाओं के कंप्यूटरों पर कब्जा कर लेता है, सडक़ों पर गाडिय़ां टकराने लगती हैं क्योंकि चारों तरफ एक साथ हरी बत्ती हो जाती है, बिजलीघरों के कंप्यूटरों पर कब्जा हो जाता है। अभी कुछ ही वक्त पहले अमेरिका का एक मामला सामने आया था जिसमें हैकिंग करने वाले लोगों ने पानी साफ करने के लिए उसमें मिलाए जाने वाले केमिकल की मात्रा पर कब्जा कर लिया था, और पानी जहरीला हो गया था। ऐसा काम हर किस्म के कंप्यूटर नेटवर्क पर हो सकता है और दुनिया के बहुत से देशों की सरकारें भी अघोषित रूप से ऐसे हैकरों को बढ़ावा देकर जंग की एक तैयारी रखती हैं कि किसी देश से दुश्मनी होने पर उसके कंप्यूटर नेटवर्क और जन सुविधाओं को कैसे तबाह किया जाए। अब हिंदुस्तान के बारे में ही यह कल्पना करें कि बैंकों और भुगतान के दूसरे सॉफ्टवेयर पर हैकर कब्जा कर लें, और वहां से भुगतान बंद हो जाए, एटीएम काम करना बंद कर दें, ऑनलाइन और मोबाइल फोन से कोई भुगतान न हो सके। इसके साथ-साथ अगर मोबाइल फोन कंपनियों, और इंटरनेट की सहूलियत पर कब्जा कर लिया जाए और उन्हें ठप कर दिया जाए, बिजली पहुंचाने वाली नेशनल ग्रिड को ध्वस्त करना कंप्यूटरों के रास्ते आसान काम है, और इसके बाद देश की हर किस्म की प्रणाली ठप्प हो जाएगी। जाहिर तौर पर किसी भी दुश्मन सरकार या आतंकी गिरोह का हमला एयर ट्रैफिक कंट्रोल पर भी होगा और विमानों का उडऩा और उतरना रुक जाएगा, रेलवे के सिग्नल काम करना बंद कर देंगे और लोगों की आवाजाही ठप्प हो जाएगी, सामान आना जाना बंद हो जाएगा। यह सब करने में सिर्फ सौ-दो सौ कंप्यूटर हैकरों की एक फौज लगेगी जो कि एक बूंद खून बहे बिना भी, किसी देश की सरहद पर पहुंचे बिना भी, उस देश को तबाह कर सकती है।

जो लोग आज यह मानते हैं कि परंपरागत और नए हथियारों कि यह दौड़ आने वाले जंग की तैयारी है, वे शायद खरीदी और खर्च में दिलचस्पी रखने वाले लोग हैं। हमारे हिसाब से तो अगली जंग सिर्फ कंप्यूटरों और नेटवर्क पर लड़ी जाएगी और इससे सरहद से हजारों किलोमीटर दूर बसे हुए बाकी के पूरे देश को भी बिना खून बहाए ठप्प और ध्वस्त किया जा सकेगा। हिंदुस्तान जैसे देश को यही सोचकर रखना चाहिए कि उसके कौन-कौन से कंप्यूटर नेटवर्क पर दुश्मन का कब्जा हो जाने के बाद वह किस तरह काम चला सकेगा। यह काम आसान नहीं रहेगा और आज जब हिंदुस्तान में झारखंड के एक गांव या कस्बे जामताड़ा में बैठकर अनपढ़ बेरोजगार लडक़े पूरे हिंदुस्तान में रोज दसियों हजार टेलीफोन कॉल करते हैं और हजारों लोगों को ठगते हैं, और कोई सरकार उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही है, तो हिंदुस्तान की सरकारों को अपनी साइबर सुरक्षा तैयारी के बारे में एक बार फिर सोचना चाहिए। भारत की सरकार हर बात को कंप्यूटर और आधार कार्ड से जोडक़र चल रही है, लेकिन अगर आधार कार्ड के पीछे की कंप्यूटर व्यवस्था ही ठप्प हो जाएगी तो क्या होगा? देश की संचार कंपनियों के कंप्यूटर अगर बिगाड़ दिए जाएंगे तो क्या होगा? अभी तो जिस तरह रात दिन कंप्यूटर और मोबाइल फोन से ठगी और धोखाधड़ी चल रही है, उससे ऐसा लगता नहीं है कि भारत की सरकार का कोई बहुत बड़ा सुरक्षा तंत्र काम कर रहा है। ऐसा अगर होता तो हर दिन करोड़ों लोगों को झांसे के मैसेज नहीं पहुंचते, और इतने बड़े पैमाने पर साइबर धोखाधड़ी नहीं हो पाती। इसलिए सरहद की महंगी और कमाऊ तैयारियों से परे हर समझदार देश को अपने कंप्यूटर नेटवर्क की हिफाजत की तैयारियों पर भी ध्यान देना चाहिए।

अब यह भी समझ लेने की जरूरत है कि जनरल नरवणे के शब्दों में देश के भीतर के गैरसरकारी लोग कौन हो सकते हैं, जो कि देश की ताकत को खोखला करते हैं। हिंदुस्तान में आज नफरत का सैलाब फैलते बहुत से लोग हैं तो कि देश के भीतर दुश्मन खड़े करने का काम कर रहे हैं। आज इस खतरे को देशभक्ति माना जा रहा है। किसी जंग के वक्त ऐसे हिंसक राष्ट्रवाद का खतरा पता लगेगा।
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