संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, इनके बाद सब खतरे में, एक लडक़े ने साबित किया
02-Apr-2023 4:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, इनके बाद सब खतरे में, एक लडक़े ने साबित किया

हैदराबाद की पुलिस ने एक ऐसे नौजवान को गिरफ्तार किया है जिसने देश की करीब आधी आबादी की निजी जानकारियों को जुटाकर इंटरनेट पर बेचने का धंधा चला रखा था। इसमें छात्रों के स्कूल-कॉलेज की जानकारी, जीएसटी, आरटीओ की जानकारी, लोगों के खरीदी, खानपान, ऑनलाईन और मोबाइल से भुगतान जैसी बेहिसाब जानकारी थी। उसने देश के दो दर्जन राज्यों और आठ महानगरों के 65-70 करोड़ लोगों और कारोबार के निजी और गोपनीय डेटा चुराने और बेचने का धंधा चला रखा था। उसके पास ऑनलाईन टैक्सियां इस्तेमाल करने वालों की जानकारी थी, और लाखों सरकारी कर्मचारियों की जानकारी भी। इनमें देश के रक्षा विभाग के कर्मचारियों, बिजली ग्राहकों, शेयर कारोबार के अकाऊंट, बीमा, क्रेडिट कार्ड सबकी जानकारी थी। अब एक अकेला लडक़ा जिसे इन सब जानकारियों के साथ गिरफ्तार किया गया, वह खुलेआम इंटरनेट पर इन्हें बेच भी रहा था। अब सैकड़ों किस्म की ये जानकारियां यह भी बताती हैं कि जो लोग आपकी जानकारी इकट्ठा करते हैं, वे उसे हिफाजत से नहीं रखते। और घर बैठे एक लडक़ा जब इन्हें चुरा ले रहा है, ग्राहक ढूंढकर बेच ले रहा है, तो फिर दुनिया भर में बिखरे हुए पेशेवर हैकर इससे और कितना अधिक काम कर रहे होंगे। अब इस खबर से लोगों को यह सोचना चाहिए कि मोबाइल फोन और कम्प्यूटर पर किसी भी एप्लीकेशन या वेबसाइट के मांगने पर वे जितनी आसानी से अपनी सारी जानकारी दे देते हैं, अपने फोन और कम्प्यूटर पर घुसपैठ की इजाजत दे देते हैं, उसका नुकसान उन्हें कितना हो सकता है। आज झारखंड के जामताड़ा जैसे पेशेवर-जालसाज हो चुके एक गांव-कस्बे का हाल यह है कि वहां के बच्चे-बच्चे ने फोन पर जालसाजी सीख ली है, और वे लोगों के बैंक खातों को दुह लेते हैं। ऐसे में डिजिटल लेनदेन, कारोबार, भुगतान को बढ़ाना तो ठीक है, लेकिन उसके साथ ही आपकी हिफाजत बहुत बुरी तरह खत्म भी हो रही है। अगर एक अकेला लडक़ा देश की आधी आबादी की डिजिटल जानकारी जुटा सकता है, तो फिर पेशेवर हैकर तो उससे हजार गुना अधिक ताकत रखते हैं, और वे तो हो सकता है कि आपकी स्मार्ट टीवी में लगे कैमरे से आपके बेडरूम में लगातार निगरानी भी रख रहे हों। 

दुनिया में डिजिटल तकनीक, ऑनलाईन, और कम्प्यूटर-मोबाइल के बिना भी गुजारा नहीं है। लेकिन आज हालत यह है कि अगर आप गूगल मैप जैसे साधारण एप्लीकेशन को गलती से एक इजाजत दे बैठते हैं तो वह आपके पल-पल की लोकेशन को समय सहित दर्ज करते चलता है। हमारे आसपास के कुछ लोगों ने अपने खुद के फोन पर दर्ज अपने ये नक्शे जब देखे हैं, तो वे खुद दहशत में आ गए। और आज अधिकतर लोगों को यह समझ नहीं है, या वे इतने चौकन्ने नहीं हैं कि किस एप्लीकेशन को कौन सी इजाजत देना जरूरी है, और कौन सी नहीं। लोग यह भी अंदाज नहीं लगा पाते हैं कि कौन से मोबाइल ऐप बिल्कुल ही अविश्वसनीय है। भारत सरकार बीच-बीच में कुछ विदेशी एप्लीकेशनों पर रोक लगाती है लेकिन ऐसा होने के पहले वे बरसों तक कारोबार कर चुके होते हैं। आज भारत में जिस टिक-टॉक पर रोक लगे बरसों हो गए हैं, अब जाकर ब्रिटेन और अमरीका जैसे पश्चिमी देश उस पर रोक लगाने की बात सोच रहे हैं। 

हमारा ख्याल है कि अपने देश के नागरिकों की हिफाजत के लिए यह जिम्मेदारी सरकार ही उठा सकती है कि वह वहां प्रचलित सभी वेबसाइटों और मोबाइल ऐप जैसी चीजों की सुरक्षा की जांच करे, गैरजरूरी जानकारी मांगने और दर्ज करने वाले लोगों से जवाब मांगे, और अपनी जनता को सार्वजनिक रूप से आगाह भी करे। आज टेक्नालॉजी जिस रफ्तार से छलांग लगाकर आगे बढ़ रही है, उसमें यह बिल्कुल मुमकिन नहीं है कि आम लोग सावधान रह सकें। आज तो खुद सरकार इतनी जगह डिजिटल जानकारी मांगती है, इतने ओटीपी आते हैं, कि उनमें कौन सा सरकार का पूछा हुआ है, और कौन सा किसी जालसाज का, यह अच्छे-खासे पढ़े-लिखे लोगों को भी समझ नहीं पड़ता है। और फिर हिन्दुस्तान तो ऐसा एक डेटा प्रोटेक्शन कानून बनाने जा रहा है, और अभी कंपनियों और सरकारों द्वारा दर्ज किए गए डेटा  की हिफाजत आईटी कानून के तहत आती है। ऐसा सुनाई पड़ता है कि सरकार इसे कड़ा कानून बनाने वाली है, और अगर जुटाई गई जानकारी को कंपनियां हिफाजत से नहीं रखेंगी, तो इस पर उन्हें बड़ा जुर्माना और कड़ी सजा भी हो सकती है। हर दिन लोग अपनी निजी और सार्वजनिक जिंदगी की सैकड़ों-हजारों छोटी-छोटी जानकारियां मोबाइल ऐप से, वेबसाइटों से, और सोशल मीडिया से शेयर करते रहते हैं। इन सबकी इजाजत लोग इनका इस्तेमाल करते हुए खुलकर दे देते हैं, और बाद में उन्हें ही याद नहीं रहता कि वे किस-किसको कौन-कौन सी बात रिकॉर्ड करने की इजाजत दे चुके हैं। आज कहीं पर ईडी, और कहीं पर आईटी के छापों में जो जानकारियां निकल रही हैं, उनमें से बहुत सी जानकारियां लोगों के मोबाइल फोन और तरह-तरह के एप्लीकेशन से निकल रही हैं, जिन्हें लोग यह मानकर चल रहे थे कि वे मिटाई जा चुकी हैं, और उनमें से मिटा कुछ भी नहीं था। वह सबका सब जांच एजेंसियों के हाथ लग गया। 

दुनिया की बहुत सी सरकारें चीन जैसे संदिग्ध देश से सावधान होकर चल रही हैं, क्योंकि वहां का एक कानून देश की हर कंपनी को इस बात के लिए मजबूर करता है कि सरकार के मांगने पर उन्हें अपने पास की हर जानकारी देनी होगी। ब्रिटेन-अमरीका यह मानकर चल रहे हैं कि टिक-टॉक जैसा मासूम दिखने वाला एप्लीकेशन लोगों की हजारों जानकारियां दर्ज करते रहता है, और चीनी सरकार उसका विश्लेषण करके इन लोगों के बारे में अनगिनत जानकारी पा सकती है, उसका बेजा इस्तेमाल कर सकती है। अब हिन्दुस्तान के एक नौजवान ने चोरी की हुई जानकारी का यह जखीरा बाजार में पेश करके इस देश के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है कि क्या यहां की कोई भी जानकारी महफूज नहीं है? इस बारे में जनता तो क्या ही सावधान होकर सोच सकेगी, देश की सरकार को ही लोगों की साइबर-हिफाजत करनी होगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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