संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : श्रवणकुमार कहानियों में तो ठीक हैं, पर असल जिंदगी में समझदारी दिखाएं
03-Apr-2023 4:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : श्रवणकुमार कहानियों में तो ठीक हैं, पर असल जिंदगी में समझदारी दिखाएं

फोटो : सोशल मीडिया

महाराष्ट्र के एक परिवार की विचलित करने वाली खबर है। वहां पिता को बहला-फुसलाकर एक बेटे ने चार एकड़ जमीन और मकान अपने नाम पर करवा लिया। इसके बाद पिता को तीर्थयात्रा करवाने के बहाने लेकर निकला, और मध्यप्रदेश के देवास स्टेशन पर खाना लाने के बहाने पिता को छोडक़र चले गया। बूढ़ा और कमजोर पिता तीन हफ्ते से अधिक स्टेशन पर ही बैठकर बेटे का इंतजार करते रहा, इसके बाद अफसरों ने उसे ले जाकर एक वृद्धाश्रम में दाखिल करवाया। माता-पिता को तीर्थ करवाने के नाम पर हिन्दी-हिन्दुस्तान के जहन में श्रवण कुमार की कहानी आती है जो कांवर पर अंधे मां-बाप को बिठाकर तीर्थयात्रा पर निकला, और रास्ते में राजा दशरथ ने गलती से श्रवण कुमार पर बाण चला दिया, उसकी वहीं मौत हो गई, और उसके मां-बाप ने दशरथ को श्राप दिया जिसकी वजह से राम को बनवास हुआ और दशरथ ने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिए। एक तरफ यह कहानी है, दूसरी तरफ आज का यह श्रवण कुमार है जो इतने बूढ़े और कमजोर पिता को स्टेशन पर इस तरह छोड़ गया जिस तरह कि लाइलाज बीमारी के शिकार किसी घरेलू जानवर को लोग शहर के पास के किसी जंगल में छोड़ आते हैं। फिर इस श्रवण कुमार ने यह काम सारी दौलत अपने नाम करवाने के बाद किया। 

हम पहले भी इस अखबार में यह लिखते रहे हैं कि लोगों को भावनाओं में बहकर अपनी सारी प्रापट्री औलादों के नाम नहीं करनी चाहिए। यह मानकर चलना चाहिए कि उनकी अपनी जिंदगी खासी लंबी हो सकती है, क्योंकि आज दुनिया भर में औसत उम्र बढ़ती चल रही है। फिर यह भी है कि अब महंगे इलाज जगह-जगह उपलब्ध होने लगे हैं, और अधिक उम्र तक जिंदा रहने पर इनमें से कई किस्म के इलाज की जरूरत पड़ सकती है। इसलिए लोगों को अपनी बचत, अपनी दौलत, अपने जिंदा रहने तक अपने काबू में रखनी चाहिए। और अपने जाने के बाद के लिए तो उनके पास यह विकल्प रहता ही है कि वे आल-औलाद के लिए छोड़ जाएं, या फिर समाजसेवा के किसी काम के लिए दे जाएं। जो लोग संतानप्रेम में अपनी मौत के काफी पहले अपनी जमीन-जायदाद, अपनी बचत, सब कुछ बच्चों को दे देते हैं, उनमें से काफी लोगों का वक्त बड़ा मुश्किल गुजरता है। उन्हें बगल से आते-जाते बच्चों का ध्यान खींचने के लिए भी खांसना पड़ता है, तब बच्चों को दिखता है कि बूढ़े मां-बाप अभी बाकी हैं। 

और लोगों को यह भी समझना चाहिए कि यह बात उनके बच्चों के भी भले की है कि उन्हें जिम्मेदार बनाए रखने का काम मां-बाप करें। ऐसा करने पर ही उनकी अगली पीढ़ी यह देख पाती है कि चाहे मां-बाप के प्रेम में, या फिर दौलत के लिए, किस तरह मां-बाप की सेवा की जाती है, मां-बाप की फिक्र की जाती है। इससे अगली पीढिय़ों तक भी यह नसीहत मिसाल के तौर पर आगे बढ़ती है, और आज के बुजुर्ग मां-बाप अपने बच्चों के बुढ़ापे के वक्त के लिए अपने पोते-पोती के सामने यह मिसाल रख जाते हैं। हो सकता है कि आज बच्चों को रकम की जरूरत हो, हर किसी को रहती है, खासकर जिनके मां-बाप के पास रकम दिखती रहती है, लेकिन अपने जिंदा रहने के इंतजाम के बाद ही बच्चों की मदद करनी चाहिए, वरना बुढ़ापे में अगर हाथ फैलाने की नौबत आई, तो उस वक्त की बदनामी भी बच्चों के नाम ही लिखाती है। इसलिए उन्हें ईमानदार और जिम्मेदार बनाए रखने का जिम्मा मां-बाप का ही रहता है। 

महाराष्ट्र की यह खबर आई थी कि एक दूसरी खबर भी पिछले दो-चार दिनों से सामने खड़ी हुई थी। देश की एक प्रमुख पत्रिका में दशकों तक पत्रकारिता कर चुके एक व्यक्ति ने इंस्टाग्राम पर अपनी 90 बरस की मां की फोटो के साथ लिखा है कि वे अभी अस्पताल से घर लौटी हैं, और देर से सोकर उठती हैं। इस बीच उनका एक बेटा अपने चार साथियों के साथ सुबह-सुबह पहुंचकर बीमार और कमजोर, 90 बरस की मां को नींद से जगाकर, पांव छूते हुए अपनी तस्वीरें खिंचवाने लगा, क्योंकि उसका जन्मदिन था, और उसे सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें पोस्ट करके वाहवाही पानी थी। इसके पहले साल भर में बेटे को मां का हालचाल पूछने का वक्त नहीं मिला था, और न ही अस्पताल में ही मां का ख्याल रखने का। उन्होंने लिखा और भी बहुत कुछ है, जो कि बड़ा तकलीफदेह है। जो लोग सार्वजनिक जीवन और राजनीति में हैं, उन्हें अपने या मां-बाप के जन्मदिन पर इस तरह की नौटंकी करने की जरूरत पड़ती है। और लंबे वक्त से यह बात कार्टूनिस्टों के काम भी आती है कि मदर्स डे पर किस तरह ऐसी आल-औलाद साल में एक बार वृद्धाश्रम पहुंचती हैं, और सेल्फी लेकर पोस्ट करती हैं। मां का ऐसा इस्तेमाल बहुत से लोग करते हैं, और ऐसे ही लोग आज इस कलियुग के श्रवण कुमार हैं। 

आज यहां इस चर्चा को छेडऩे का मकसद यही है कि लोगों को 80-90 बरस की उम्र तक अपने जिंदा रहने और इलाज की फिक्र पहले करनी चाहिए, उसका पुख्ता इंतजाम रखना चाहिए, और उसके बाद ही आल-औलाद की फिक्र करनी चाहिए जिनके कि हाथ-पैर चलते हों। लोगोंं को यह भी याद रखना चाहिए कि बैंक इन दिनों संपत्ति पर एक रिवर्स मार्टगेज भी करते हैं, जिसमें आपके जिंदा रहने तक आपको हर महीने एक रकम मिलती जाती है, और उसके बाद उस संपत्ति को बेचकर बैंक अपना कर्ज निकाल लेता है, और बाकी रकम वारिसों को दे देता है। ऐसे विकल्प के बारे में भी लोगों को सोचना चाहिए। ये दो घटनाएं जो कि चार दिन के भीतर ही सामने आई हैं, उन्हें देखकर हर किसी को सबक लेना चाहिए, और आल-औलाद भी अगर अपने मां-बाप को सचमुच ही चाहती हैं, तो उन्हें खुद होकर मां-बाप से इसी किस्म की वसीयत भी करवानी चाहिए कि उनसे अगली पीढ़ी को कुछ भी उनके गुजरने के बाद ही मिले। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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