राजपथ - जनपथ
असली और बड़े गैरकानूनी !
उत्तरप्रदेश में किसी पर भी उपद्रवी होने का आरोप लगाकर उसका मकान गिराना अब राज्यधर्म हो गया है, अगर यह आरोप किसी मुस्लिम पर लगाया जा रहा है। ऐसे में टाईम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से सरकारी आंकड़ों को लेकर आई है जिनमें प्रदेश भर के शहरों में 8320 इमारतों का सर्वे किया गया है, और यह पाया गया है कि 35 फीसदी इमारतें गैरकानूनी हैं। यह सर्वे जनवरी में शुरू हुआ था, और सरकार के स्तर पर ही किया गया है। अब एक तिहाई से अधिक इमारतों को गिराना तो गुजरात सरकार के लिए आसान नहीं होगा, इसलिए सरकार एक अध्यादेश लाने की सोच रही है ताकि गैरकानूनी को कानूनी बनाया जा सके। अब पता नहीं भाजपा के इस गढ़ गुजरात के ऐसे फैसले से बाकी प्रदेशों के साम्प्रदायिक-बुलडोजर थमेंगे या नहीं?
क्या प्लेन भी डबल डेकर...
लोगों ने हिन्दुस्तानी, और दूसरे देशों की रेलगाडिय़ों में डबल डेकर डिब्बे देखे हैं जिनमें मुम्बई में चलने वाली लाल डबल डेकर बसों की तरह दो तल्ले होते हैं, और दोगुने मुसाफिर बैठ जाते हैं। अब किसी ने हवाई जहाज में मुसाफिरों की गिनती बढ़ाने के लिए इसी किस्म की एक डिजाइन पेश की है जिसे अगर लागू किया गया तो भाड़ा शायद कुछ कम हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि ऊपर की सीट पर बैठे हुए लोगों का पेट गड़बड़ होगा, तो नीचे की सीट पर बैठे लोगों का क्या हाल होगा।
अग्निपथ... अग्निपथ
सेना में युवाओं की 4 साल के लिए अनुबंध भर्ती का फैसला केंद्र की मोदी सरकार ने लिया है। चुनाव आ रहे हैं और बेरोजगारी का संकट विकराल है। अब जो युवा 4 साल बाद फिर से रोजगार ढूंढ लेंगे वे क्या करेंगे, इसके लिए कोई रोड मैप नहीं है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने ऐसे युवाओं को फोर्स की भर्ती में प्राथमिकता देने की बात कही है लेकिन गारंटी नहीं है कि सबको मौका मिल जाए। हां वे हथियार चलाना जरूर सीख जाएंगे और जब लौटेंगे तो उनकी दूसरी सरकारी नौकरियों में आवेदन करने के लिए सीमा घट चुकी रहेगी। हथियार चलाने के मिले प्रशिक्षण का युवा बेरोजगार हो जाने के बाद कैसा इस्तेमाल करेंगे इसके बारे में हम-आपको जरूर सोचना चाहिए।
छत्तीसगढ़ को लेकर के ज्यादा दिक्कत नहीं है। जमीनी हकीकत चाहे जो भी हो लेकिन अभी जो सरकारी डेटा आया है उसमें यहां की बेरोजगारी दर को सबसे कम पाया गया है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश की तरह सेना में भर्ती के लिए रुचि भी छत्तीसगढ़ के युवाओं में नहीं दिखाई देती है। जिस तरह से विकलांगों को दिव्यांग कह देने से उनकी दशा नहीं सुधरी है उसी तरह से इन युवाओं को अग्निवीर कह देने से हालत बदलने वाली नहीं है।