राजपथ - जनपथ
विधानसभा चुनाव में सांसदों की बारी?
चर्चा है कि भाजपा ने कुछ सांसदों को विधानसभा चुनाव लडऩे की योजना बनाई है। इनमें प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, सुनील सोनी, और राजनांदगांव सांसद संतोष पांडेय हैं। कहा जा रहा है कि पार्टी पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की जगह अभिषेक सिंह को राजनांदगांव अथवा कवर्धा सीट से चुनाव लड़ा प्रत्याशी बना सकती है। रमन सिंह पार्टी के स्टार प्रचारक होंगे, और उन्हें चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया जा सकता है। पार्टी जल्द ही कुछ और बदलाव कर सकती है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
जन्मदिन से चुनाव प्रचार शुरू
विधानसभा चुनाव के चलते दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस के कई युवा नेताओं के चुनाव लडऩे की आकांक्षाएं हिलोरे मार रही है। ये नेता जन्मदिन, और अन्य उत्सवों में अपनी ताकत दिखाकर दावेदारी करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। इन्हीं में से एक रायपुर शहर जिला भाजपा के उपाध्यक्ष आशु चंद्रवंशी ने दो दिन पहले अपने जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन किया।
आशु दीनदयाल उपाध्याय नगर के रहवासी हैं, और उनकी पत्नी पार्षद है। उनके जन्मदिन के बधाई के पोस्टर पूरे रायपुर पश्चिम विधानसभा में लगे थे। जन्मदिन पर बधाई देने वालों में रायपुर पश्चिम के कार्यकर्ता ही ज्यादा थे। वैसे तो रायपुर पश्चिम से पूर्व मंत्री राजेश मूणत विधायक रहे हैं,लेकिन पिछला चुनाव बुरी तरह हार गए थे।
चुनाव हारने के बाद भी मूणत की सक्रियता कम नहीं हुई है। मगर पार्टी गुजरात और अन्य राज्यों की तरह नए चेहरे को आगे लाने की रणनीति अपनाती है, तो मूणत की टिकट खतरे में पड़ सकती है। यह सब भांपकर आशु जैसे कई नेता खुद को विकल्प के रूप में देख रहे हैं। मगर पार्टी क्या सोचती है यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
तीर्थाटन बनाम पर्यटन उद्योग
केदारनाथ, बद्रीधाम, वैष्णो देवी मंदिर से लेकर अमरकंटक तक देश के अनेक पौराणिक-धार्मिक स्थल जब अस्तित्व में आए तो अत्यन्त दुर्गम स्थल थे। इनका चयन ही दर्शाता है कि तपस्वी, साधु-संत अपनी परिभाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए निर्जन पर्वत श्रृंखलाओं को उपयुक्त समझते थे। कुछ दशक पहले तक इन स्थलों में बैलगाड़ी, खच्चर से या पैदल लोग पहुंचा करते थे। वृद्धावस्था में जीवन का लक्ष्य ही यही होता था कि एक बार तीर्थ कर लें। कई तो यात्राओं पर अपना पिंड दान करके निकलते थे, क्योंकि यात्रा की कठिनाई के चलते लौट पाने की अनिश्चितता होती थी। जैसे-जैसे विकास हुआ, सडक़ें बनी, रेल पहुंची, रोप-वे तैयार हुए, बिजली पहुंच गई। इन स्थानों पर भीड़ बढऩे लगी जिसमें आस्था की मात्रा कम और वायु-ध्वनि से प्रदूषित होते शहरी माहौल से भागने की लालसा अधिक होने लगी। इस भीड़ को और प्रोत्साहित करने के लिए कारोबारियों की सहूलियत के अनुसार विकास के कार्य होने लगे। इलाका प्रतिबंधित हो तो कुछ दूरी पर होटल, ढाबे, मांस-मदिरा सब मिलने लगे। नव-धनाड्यों के लिए ये मनोरंजन स्थल बन रहे हैं। अमरकंटक ही हवाओं में अब महक नहीं मिलती, जो 20-25 साल पहले होती थी। वैध-अवैध निर्माण की एक बड़ी श्रृंखला वहां जारी है। मदिरा यहां प्रतिबंधित है पर जैसे ही इसकी सीमा खत्म होती है, होटलों में सब मिलता है। सरकारी दुकानें भी खुल गई हैं।
कुछ समय पहले एक रिपोर्ट आई थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के केदारनाथ की लगातार यात्रा के चलते वहां पर्यटकों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। 11 हजार फिट ऊंची इस पहाड़ी पर हेलिकॉप्टर से ही पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या इस साल 1.30 लाख पहुंच चुकी है। सडक़ मार्ग से जाने वाले पर्यटक 14 लाख से अधिक हैं। उत्तराखंड सरकार वहां की पहाडिय़ों को काटकर और चौड़ी सडक़ें बना रही है। बहुत से नए होटल प्रोजेक्ट वहां शुरू हो गए हैं। बावजूद इसके कि बादल फटने और भू-स्खलन की एक बड़ी विपदा सन् 2013 में आ चुकी है और आगे भी खतरा बना हुआ है। झारखंड में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित सम्मेद शिखर में हो रहे विकास का विरोध इसी तारतम्य में है। छत्तीसगढ़ में कई शहरों में जैन समुदाय प्रदर्शन कर रहा है। योजना झारखंड सरकार की है और केंद्र ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। जैन समाज का यह आंदोलन दूसरे तीर्थ स्थलों के संबंध में भी विचार करने का अवसर देता है।
जशपुर की खूबसूरती...
फोटोग्राफी महसूस करने का, छूने का, प्यार करने का एक तरीका है। आपने कैमरे की मदद से जो पकड़ा है उसे हमेशा के लिए कैद कर सकते हैं। तस्वीरें छोटी-छोटी चीजों को याद रख सकती है। जो आप लंबे समय के बाद भूल जाते हैं। यह तस्वीर अनायास ही एक पर्यटक रोहित ने ली है। जशपुर के बगीचा इलाके के गायबुड़ा गांव से, जहां टाउ की फसल लहलहा रही है।
कोविड बची उम्मीद न कुचल दे
कांग्रेस सरकार की चार साल की अनेक उपलब्धियों के बावजूद कई घोषणाएं पूरी नहीं हुई है। बेरोजगारी भत्ता देना, सभी के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, शराबबंदी, राज्य स्तर पर लोकपाल जैसे कई वादे अधूरे हैं। पर जिन मांगों को लेकर बीते वर्षों में सबसे ज्यादा आंदोलन हुआ वह था अस्थायी संविदा कर्मियों को नियमित करना और भाजपा ने जिस मुद्दे पर घेर रखा है वह है शराबबंदी। कांग्रेस को चुनाव से पहले इन दोनों वायदों को या तो पूरा करना होगा या फिर नहीं कर पाने का कोई तर्कसंगत कारण बताना होगा।
छत्तीसगढ़ के चार साल पूरे होने पर गौरव दिवस का आना और कोविड के सक्रिय मामलों का शून्य हो जाना लगभग एक साथ हुआ। पर इसी बीच चीन में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए केंद्र सरकार अलर्ट हो गई है। राज्य सरकार दिशा-निर्देश की प्रतीक्षा में है। दूसरी ओर, अनियमित कर्मचारियों के दर्जनों संगठन, जिन्होंने राजधानी तक पहुंचकर लगातार आंदोलन किया है वे प्रार्थना कर रहे हैं कि कोविड फिर न लौटे। सरकार पहले भी वादे पूरे नहीं कर पाने का एक बड़ा कारण बीच के दो साल तक महामारी से आए गतिरोध को बता रही है। यदि फिर लॉकडाउन जैसी स्थिति पैदा हो गई तो चुनाव के पहले कुछ फैसला हो जाने की उनकी रही-सही उम्मीद पर भी पानी फिर जाएगा।