राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पान मसाले का हमला आदिवासियों पर
18-Feb-2023 4:03 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पान मसाले का हमला आदिवासियों पर

पान मसाले का हमला आदिवासियों पर

अब एक नया पान मसाला, जय जोहार, बाजार में आया है जिसका नारा है, हर जुबां पे जय जोहार! आमतौर पर आदिवासियों के बीच अभिवादन के लिए जय जोहार का इस्तेमाल होता है। और आदिवासियों से जुड़े एक ट्विटर पेज पर उनके अभिवादन के ऐसे बाजारू इस्तेमाल का विरोध किया गया है और लिखा गया है कि इसके मालिक का मकसद पैसा कमाना है, या इस शब्द को प्रदूषित करने के लिए इसे ब्रांड बनाया गया है? बहुत से लोगों ने इस पर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। एक ने लिखा है कि जीवन देने वाली प्रकृति की जय बोलने वाले शब्द के नाम से जीवन लेने वाला पान मसाला बेच रहे हैं दुष्ट लोग।

भारत क्या है? कंपनी, सरकार, या देश?

अडानी को लेकर दुनिया के सबसे बड़े पूंजीनिवेशक जॉर्ज सोरोस ने मोदी सरकार की आलोचना की, तो सरकार की तरफ से केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इसे भारत पर गोरों का हमला करार दे दिया। अडानी पहले ही अपने पर लगे आरोपों को भारत पर हमला करार दे चुके हैं। भारत इन सबसे बहुत बड़ा है। वह एक देश है, एक पूरी संस्कृति है, एक पूरी सभ्यता है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भी है। इसकी खामियों पर अगर कोई विदेशी कुछ कहते हैं, तो वह इस देश पर हमला नहीं होता, वह आत्मविश्लेषण और आत्मचिंतन का एक मौका होता है। जॉर्ज सोरोस अकेले नहीं हैं जिन्होंने अडानी के मामले में भारत सरकार के रूख को लेकर फिक्र जाहिर की है। कल सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भी केन्द्र सरकार की यह अपील खारिज कर दी कि अडानी की जांच किनसे करवाई जाए, वे नाम सीलबंद लिफाफे में केन्द्र सरकार दे रही है। सुप्रीम कोर्ट ने यह लिफाफा छूने से ही इंकार कर दिया, और कहा कि वह इस मामले में खुली कार्रवाई करना चाहती है, सरकार के सुझाए नाम देखना भी नहीं चाहती। जॉर्ज सोरोस के बाद अब सुप्रीम कोर्ट की बारी है कि कोई उसके खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस ले?

अफसरों की तुन तुन तुनक मिजाजी

इन दिनों जगह-जगह मेलों का माहौल है, सरकारी महोत्सव भी चल रहे हैं। उत्सव शानदार तरीके से बिना व्यवधान निपटे इसके लिए अफसरों को बेहद मेहनत करनी पड़ती है। मैनपाट में महोत्सव के आखिरी दिन मशहूर पंजाबी गायक दलेर मेंहदी का प्रोग्राम रखा गया। कलेक्टर कुंदन कुमार, एसपी भावना गुप्ता, फिर उनकी देखा देखी जिले के तमाम बड़े अफसर मंच पर चढ़ गए और तुनक..तुनक..तुन ता ना ना ना पर जमकर थिरके। ठीक है, आखिरी दिन थकान मिटाने के लिए यह जरूरी लगा हो, पर अफसर ऐसी आजादी अपने मातहतों को भी क्यों नहीं देते? सडक़, चौक-चौराहों पर धूप-बारिश में घंटो खड़े रहकर कड़ी ड्यूटी करने वाले सिपाही, इंजीनियर या नीचे लेवल के दूसरे कर्मचारी जब ऐसा करते हैं तो उन्हें ड्यूटी मे लापरवाही के रूप में दर्ज किया जाता है। कलेक्टर एसपी के डांस में तो दर्जनों कैमरे लगे थे। पर यदि कोई छोटा कर्मचारी या जवाव सोशल मीडिया पर आधा-एक मिनट का रील भी बनाकर डाल दे तो उसे तुरंत सस्पेंड लेटर थमाकर अनुशासन का पाठ पढ़ा दिया जाता है।

दशकों बाद सीधी बस सर्विस

नारायणपुर और बैलाडीला के बीच हाल में सीधी बस सेवा शुरू हो गई है। पहले इस सफर में निकलने से पहले लोगों को दस बार सोचना पड़ता था। दूरी 250 किलोमीटर और कोई सीधी बस भी नहीं। दंतेवाड़ा से जगदलपुर, फिर कोंडागांव उसके बाद कोंडागांव से नारायणपुर। अब दशकों के बाद बारसुर-पल्ली की सडक़ बन गई है। दो चार किलोमीटर का ही काम बाकी है, पर इसी महीने से बसें दौडऩे लगी है। इससे दूरी 100 किमी घटकर 150 किलोमीटर रह गई है। बैलाडीला से नारायणपुर के लिए सुबह की बस दोपहर में और दोपहर की बस शाम तक पांच से छह घंटे में तय हो रही है। इस सडक़ को पूरा करने में सुरक्षा बलों को भी लगातार पहरेदारी करनी पड़ी। स्थानीय आदिवासियों का प्रशासन के प्रति भरोसा बढ़ाने में यह नई सडक़ मददगार हो सकती है।

जेल जैसे बालक छात्रावास

दंतेवाड़ा जिले के हितावर के बालक आश्रम में 13 साल के बच्चे ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। किस वजह से उसने यह कदम उठाया, प्रशासन इसकी जांच करा रहा है। सरकारी छात्रावास में छात्रों को कैसा घटिया भोजन दिया जाता है, इसकी तस्वीर बस्तर के ही विश्रामपुरी से सामने आई थी, थोड़ा सा चावल और पतली दाल के अलावा कुछ नहीं। बीते सप्ताह कटघोरा के एकलव्य आश्रम में सीनियर छात्रों के हाथों छोटे बच्चों को टीचर ने पिटवाया था। दोनों घटनाएं इसी माह की हैं और इस कॉलम में उनका जिक्र हुआ था। तीनों घटनाएं आदिवासी समुदाय के छात्रों से जुड़ी हैं। प्राय: आश्रम में उन छात्रों को पढऩे के लिए पालक भेजते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति प्राय: बेहद कमजोर होती है। इन बच्चों के साथ एक दबाव होता है कि वे घर न जाएं, परिस्थिति विषम हो तब भी छात्रावास में रहकर ही पढ़े। भोजन घटिया हो, शिक्षक पीटें तब भी। आदिवासी विकास विभाग को इन छात्रावासों के लिए करोड़ों का बजट आवंटित किया जाता है। अफसरों की खूब कमाई वाला विभाग माना जाता है। इनको और इस विभाग के मंत्री थोड़ा समय निकालकर इन छात्रावासों की हालत का जायजा लें और बच्चों के बजट पर नजर न गड़ाएं तो हो सकता है ऐसी घटनाएं कम हों।

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