राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : खाना तो ठीक है, पर किसके घर?
26-May-2023 4:15 PM
 राजपथ-जनपथ : खाना तो ठीक है, पर किसके घर?

खाना तो ठीक है, पर किसके घर? 

सीएम भूपेश बघेल के लंच डिप्लोमेसी की राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा है। भूपेश भेंट-मुलाकात के लिए जिस गांव में उनका पड़ाव होता है, वहां वो भोजन करते हैं। कुछ इसी अंदाज में भाजपा संगठन के कर्ता-धर्ता अजय जामवाल और पवन साय भी घूम-घूमकर भोजन कर रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि भूपेश गांव के निर्धन परिवार के यहां भोजन करते हैं, तो जामवाल और पवन साय के मेजबान टिकट के दावेदार अथवा पार्टी के धनिक नेता होते हैं। 

अजय जामवाल, और पवन साय पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं के यहां भोजन पर जा चुके हैं। स्वाभाविक है कि संगठन दिग्गजों के लिए भोजन भी राजसी होता है। इससे परे सीएम जिस परिवार के यहां भोजन करते हैं वो एकदम सात्विक, और सामान्य होता है। जमीन पर बैठकर  परिवार के लोगों के साथ वो भोजन करते हैं। आदिवासी इलाकों में तो उन्होंने वहां के समाज में प्रचलित रोजमर्रा का खाना ही खाया। लेकिन जामवाल, और पवन साय के लिए आदिवासी इलाकों में भी विशेष इंतजाम होता है।  

जामवाल सरगुजा प्रवास पर गए तो बड़े कारोबारी अखिलेश सोनी, हरपाल भांमरा के घर जाकर भोजन ग्रहण किया। वो अब तक किसी गरीब-आदिवासी, दलित कार्यकर्ता के यहां भोजन पर नहीं गए। पत्थलगांव जैसे दूरस्थ इलाके में भी जामवाल नगर सेठ के मेजबान थे। जबकि भाजपा हाईकमान ने बड़े नेताओं को स्पष्ट रूप से निर्देशित किया है कि वो निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के यहां जाएं, और उनके यहां भोजन ग्रहण करे। मगर अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। खास बात यह है कि बड़े नेताओं की भोजन को लेकर भाजपा में विवाद भी हो चुका है।  

बताते हैं कि कुछ दिन पहले सह प्रभारी नितिन नबीन का दुर्ग प्रवास के दौरान एक कार्यकर्ता के यहां भोजन का आमंत्रण था, लेकिन बाद में वो सरोज पाण्डेय के यहां चले गए। इस पर दुर्ग सांसद विजय बघेल ने सहप्रभारी से मिलकर आपत्ति की थी। बाद में नबीन नाराजगी दूर करने उस कार्यकर्ता के यहां चाय पर गए। भेंट मुलाकात में जब भी भूपेश की भोजन करते तस्वीर मीडिया में आती है, तो भाजपा के भीतर जामवाल, और साय के भोजन से तुलना होती है। असंतुष्ट नेता इसकी शिकायत हाईकमान तक पहुंचाने के फेर में हैं।

ईडी भी कोर्ट के इंतजार में 

सोशल मीडिया पर शराब घोटाला केस से जुड़े अरविंद सिंह, और एक आईएएस अफसर के गिरफ्तारी की खबर उड़ी। यह चर्चा रही कि अरविंद सिंह को ईडी ने नेपाल बॉर्डर के पास से गिरफ्तार किया गया है, लेकिन इसकी किसी भी स्तर पर पुष्टि नहीं हो पाई है। 

दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अनवर ढेबर की याचिका पर सुनवाई के बीच ईडी के वकील को साफ तौर पर कहा था कि जिनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए पेंडिंग है उसे गिरफ्तार न किया जाए। हालांकि ऑर्डर शीट में इस तरह की कोई बात नहीं लिखी है। अरविंद सिंह, और अन्य की याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। ऐसे में कथित गिरफ्तारी को लेकर कई तरह की चर्चा होती रही। 

खैर, शराब घोटाला केस में 29 तारीख को सुप्रीम कोर्ट में चार अलग-अलग याचिकाओं पर अहम सुनवाई होनी है। जानकारों का अंदाजा है कि कोर्ट के फैसले से ईडी की आगे की कार्रवाई की दिशा तय होगी। ऐसे में सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है। 

बेरोजगारी भत्ता कितने दिन तक?

कड़ी शर्तों से गुजरकर जो बेरोजगार भत्ते के पात्र हुए हैं, उनके फायदे के लिए सरकार ने एक और नियम बनाया है। उनको कौशल विकास और स्वरोजगार का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से लेना होगा। पर बेरोजगार इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। बहुत से युवाओं ने तो अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा है। कुछ ने फोन पर ही बता दिया कि वे ट्रेनिंग नहीं लेना चाहते। रायगढ़, दुर्ग और राजनांदगांव से इस तरह की खबरें आ चुकी हैं। बाकी में भी ऐसी ही स्थिति होगी। दुर्ग में ही 5784 युवाओं को भत्ते का पात्र माना गया है लेकिन यहां 500 युवा भी ट्रेनिंग के लिए तैयार नहीं हुए। बताया जा रहा है कि यदि युवा प्रशिक्षण नहीं लेंगे तो उनका भत्ता 6 महीने में बंद कर दिया जाएगा। भत्ता वैसे दो साल के लिए है लेकिन एक साल बाद इसकी समीक्षा होगी। जिनको रोजगार मिल चुका है उन्हें भी भत्ता बंद नहीं मिलना है। 

इधर भत्ता पाने वाले बेरोजगारों का कहना है कि ढाई हजार तो उनके प्रशिक्षण के लिए आने-जाने में ही निकल जाएंगे। उनको डाटा एंट्री ऑपरेटर जैसा प्रशिक्षण लेने कहा जा रहा है जबकि वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इस पैसे से कुछ किताबें ले सकते हैं, घर खर्च में थोड़ी सी मदद कर सकते हैं। ज्यादातर लोग प्रशिक्षण नहीं लेना चाहते, मतलब उनका भत्ता 6 महीने के बाद शायद ही जारी रहे। फिर भी चुनावी साल में शुरू किया गया बेरोजगारी भत्ता वोट डाले जाने तक तो चलेगा ही।

एक मोबाइल से शुरू इतनी लंबी बहस 

पखांजूर के जलाशय में गिरे फूड इंस्पेक्टर के महंगे मोबाइल और उसकी तलाश में पूरा पानी बहा देने के मामले ने सोशल मीडिया में बहस और चटखारे लेने का मौका दिया है। इसके जरिए लोग प्रशासनिक अमले के पद दुरुपयोग की पोल खोल रहे हैं। ऐसे ही एक ग्रुप की चर्चा बड़ी खूब रही। एक मेंबर के खबर का लिंक सेंड करते ही दूसरे सदस्य ने कहा-ये खबर बाहर आने के बाद भी इस अधिकारी के खिलाफ कुछ गलत नहीं हो सकता क्योंकि पहला पत्थर वो मारे जिसने कोई पाप ना किया हो, ऐसा भी कोई है नहीं। जिसके मन में जो आ रहा है वो किए जा रहा है...डर, खौफ, राज्य के प्रति वफादारी कुछ नहीं बची है। अंग्रेजों की तरह पहले वाले 15 साल नोचे खाए। अब ये है जो कोई भी कुछ भी किसी भी तरह से नोच खसोट कर सकता है करने की अनुमति दी हुई है। जनता जाए भाड़ में। अभी तो शुरुआत है।

दूसरे ने लिखा- आपने पंद्रह साल का उल्लेख किया मैं खुश नहीं हूं। आप मर्यादा लांघ रहें हैं। आपको याद रखना चाहिए नीति/पॉलिसी अफसर बनाते हैं उनको पैंतीस चालीस साल तक आजादी है उसे  आप लूट खसोट कह रहें डबल अटैक नहीं चलेगा, ये। मतलब अल्लाह, भगवान, जीजस, और वाहेगुरु से एक ही दुआ है कि अगला जन्म छत्तीसगढ़ में ही दे। वह भी सरकारी अधिकारी या उसके रिश्तेदार के रूप में दे। सिंचाई विभाग का मासूम अधिकारी थोड़ा बहुत पानी निकलेगा। इसकी भी विभागीय जांच हो और दोनो के खिलाफ अपराधिक मामला (बांध को तोडक़र पानी बहाने का) 430/34 आईपीसी दर्ज होना चाहिए। कुछ नहीं होगा क्योंकि 2 लाख जांच अधिकारी के रूप में आने वाले एसडीएम को। 25-25 हजार जलाशय के चारों जिम्मेदारों को बयान पलटने के लिए। सबसे बाद में जांच रिपोर्ट पर फाइनल टीप लिखने के लिए स्थानीय आईएएस साब की पत्नी के मार्फत लाख दो लाख देने का मन बना लिया है। इससे अच्छा तो किसे ठेकेदार को बोल के एक लाख का नया मोबाइल मंगा लेते बिचारे।

तीसरे ने लिखा - आप नाखुश, तो मैं नाखुश। आप हमारे हो। क्योंकि पिछला रिकॉर्ड उठाकर देखे तो,चंगुल में आए सरकारी अधिकारियों की पत्नियों का भी बड़ा रोल सामने आया है। एक ईडी अधिकारी कोर्ट में किसी को बोल रहा था कि फलाने आईएएस की आईएएस पत्नी पैसे देखकर सबसे ज्यादा पागल होने के पूरे सबूत मिले है। उसको जब चाहेंगे जब उठायेंगे। अभी पहले हिडन लॉक को तलाश रहे हैं।

मिठाई के जैसा मीठा फल

गुलाबजामुन केवल मिठाई नहीं, एक दुर्लभ फल का भी नाम है। यह नाम इसकी खुशबू और स्वाद की वजह से ही है। बिल्कुल हलवाई के पास मिलने वाले मिठाई गुलाब जामुन की तरह। अमरकंटक की तराई में और पेंड्रा-गौरेला के जंगल में जितना भीतर जाए यह फल फरवरी के बाद से बारिश के पहले तक मिलते हैं। इसे कान के पास लाकर हिलाएं तो भीतर से बीज की आवाज आएगी। नरम इतना कि उंगलियों से दबा लें। गुलाब जामुन के फल ही नहीं इसके पत्ते और बीज भी फायदेमंद है। खासकर डायबिटीज के लिए। छत्तीसगढ़ के अलावा यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि में भी जंगलों के भीतर ये फल पाए जाते हैं। इसके पेड़ अब कम दिखते हैं। अभी यह डेढ़ सौ से 200 रुपए किलो में बिक रहा है।

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