राजपथ - जनपथ
राजिमवाले बरकरार...
स्वास्थ्य महकमे में डॉ. श्रीकांत राजिमवाले कई अहम जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। वे छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी, मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार के साथ-साथ डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य योजना के नोडल अधिकारी भी हैं। वैसे तो वे पिछली सरकार के लोगों के करीबी रहे हैं, और एक के बाद एक उन्हें अहम जिम्मेदारी मिलती रही। मगर सरकार बदलते ही उन्होंने थोड़े ही समय में नए लोगों के साथ तालमेल बिठा लिया।
ऐसे समय में जब विश्वविद्यालयों और अन्य अहम जगहों पर आरएसएस और पिछली सरकार से जुड़े लोगों को चुन-चुन कर हटाया गया, डॉ. राजिमवाले का बाल भी बांका नहीं हुआ। ऐसा नहीं है कि डॉ. राजिमवाले के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है। कुछ लोगों ने उनके खिलाफ काफी कुछ इक_ा कर सरकार के प्रभावशाली लोगों तक पहुंचाया भी है। मगर इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सुनते हैं कि डॉ. राजिमवाले के पक्ष में दो प्रभावशाली नेता भी आगे आ गए हैं। यही वजह है कि उन्हें हटाना तो दूर, उनके खिलाफ शिकायतों की जांच तक शुरू नहीं हो पा रही है। कहावत है कि बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है। डॉ. राजिमवाले के प्रकरण में तो यही दिख रहा है।
पार्टी के भीतर हलचल
भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा जल्द ही हो सकती है। प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय, सौदान सिंह और पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की सलाह से सूची तैयार कर दिल्ली में डटे हुए हैं। राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष की आपत्ति के बाद कुछ नामों में हेरफेर कर नए नाम जोड़े गए हैं। संतोष चाहते थे कि हारे हुए लोगों को संगठन में अहम दायित्व न दिया जाए, मगर ऐसा नहीं हो पाया। सुनते हैं कि विधानसभा चुनाव में हारे कुछ लोगों को पद मिल रहा है, उनमें से पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी का नाम प्रमुख है।
चौधरी को पहले युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाने की अनुशंसा की गई थी, लेकिन अब उन्हें शिवरतन शर्मा की जगह प्रदेश का मुख्य प्रवक्ता बनाए जाने की चर्चा है। सूची तो अब तक जारी नहीं हुई है, लेकिन मात्र उड़ती खबर से पार्टी दूसरे खेमे में नाराजगी बढ़ गई है। सौदान सिंह के करीबी लोग यह प्रचारित कर रहे हैं कि उनका सूची से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन अंदर की खबर यह है कि वे बिहार चुनाव में व्यस्तता के बाद भी सूची पर पूरी निगाह रखे हुए हैं। और उनकी कोशिश है कि जल्द से जल्द सूची जारी हो जाए।
दूसरी तरफ, पार्टी के एक बड़े आदिवासी नेता कुछ लोगों के बीच यह कहते सुने गए कि विष्णुदेव साय की जगह नए अध्यक्ष की नियुक्ति हो सकती है। उनकी बात सुनकर लोग चकित थे, क्योंकि साय को प्रदेश अध्यक्ष बने चार महीने भी नहीं हुए हैं। मगर आदिवासी नेता ने बताया कि केन्द्र सरकार अभी तक राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति नहीं कर पाई है। विष्णुदेव साय भी इस पद की दौड़ में हैं। चर्चा है कि केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी विष्णुदेव साय का नाम आगे बढ़ाया है। वाकई ऐसा होगा, यह कहना कठिन है। मगर इसको लेकर पार्टी के भीतर हलचल है।
मरवाही में कांग्रेस का चार गुना जोर..
मरवाही उप-चुनाव को कांग्रेस ने किस सीमा तक प्रतिष्ठा का सवाल बना रखा है वह प्रभारियों की नियुक्ति से मालूम होता है। आम तौर पर एक विधानसभा में एक ही प्रभारी होते हैं। यहां चार-चार प्रभारी बना दिये गये हैं जिनमें से दो तो विधायक भी हैं। कैडर वाले दलों की तरह कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। दर्जन भर मंत्री, सांसद, अधिकारी वहां दौरा कर चुके, करते आ रहे हैं। प्रदेश स्तर के कई पदाधिकारियों ने स्थायी डेरा बना रखा है। रोज कोई न कोई उद्घाटन, शिलान्यास हो रहा है। मुख्यमंत्री ने करीब डेढ़ सौ करोड़ की नई-पुरानी योजनाओं की ऑनलाइन शुरूआत की। दो राय नहीं कि गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही को जिला बनाने की घोषणा करना मौजूदा सरकार का एक ईमानदारी भरा फैसला था। ताकतवर प्रतिनिधियों के रहते, 15 साल की भाजपा सरकार रहते हुए यह नहीं हो पाया। नये जिले की जरूरतें भी बहुत सी हैं तो इन उद्घाटन, शिलान्यासों को जरूरी माना जा सकता है पर इसमें चुनाव का एंगल तो छिपा हुआ है ही। मरवाही का अतीत बताता है कि अब तक हुए सभी चुनावों के नतीजों में प्रत्याशी के व्यक्तित्व को उन्होंने दल से ऊपर रखा। यदि कांग्रेस ने बाजी मारी तो पहला मौका हो सकता है जब यहां की जनता ने व्यक्ति से ज्यादा संगठन को महत्व देना तय किया है।
भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस ने विपक्ष में रहते तो संगठित पार्टी की तरह काम किया ही था, अब तो पार्टी के साथ सरकार की ताकत भी है।
दूसरे सबसे बड़े शहर की त्रासदी
छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े शहर बिलासपुर के खाते में विकास के सारे अध्याय अधूरे ही लिखे हुए हैं। लगभग 30 साल पहले यहां से वायुदूत सेवा चलती थी। किसी वजह से बंद हो गई। अब कई सालों से यहां हवाई सेवा के लिये आंदोलन चल रहा है। दर्जनों बार हाईकोर्ट की फटकार, दो सौ से ज्यादा संगठनों के आंदोलन के बाद भी अब तक यहां से उड़ानें शुरू नहीं हुई हैं। देखते ही देखते बस्तर से भी हवाई सेवा शुरू हो गई। बीते दिनों जब केन्द्रीय नागरिक विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बिलासपुर-भोपाल के बीच हवाई सेवा शुरू करने के फैसले के बारे में ट्वीट किया तो क्या कांग्रेस, क्या भाजपाई सब अपनी पीठ खुद ही थपथपाने लगे थे। जमीनी हक़ीकत देखने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। हवाईअड्डे के लिये जरूरी निर्माण कार्य कछुआ चाल से चल रहे हैं। रफ़्तार यही रही तो आने वाले 6 माह तक भी काम पूरा नहीं होना है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यहां के लिये जो राशि मांगी गई थी वह मंजूर तो कर दी, पर काम समय पर हो यह देखना तो स्थानीय नेतृत्व का काम है। अंडरग्राउन्ड सीवरेज पर 450 करोड़ रुपये फूंक दिये गये, काम अधूरा। रायपुर बिलासपुर नेशनल हाईवे पर टोल टैक्स वसूली शुरू हो गई पर काम बाकी। फ्लाईओवर के एक काम को 18 माह में पूरा होना था, तीन साल हो गये पूरा नहीं। अमृत मिशन से पेयजल सुविधा मिलनी थी, अधूरी। 18 पानी टंकियों से भी तीसरे माले तक पानी पहुंचाने की योजना थी, लाखों रुपये बहे काम आधा-अधूरा। बिलासपुरवासियों को स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, स्व. बीआर यादव जैसे नेता याद आते हैं जिन्होंने यहां के विकास के लिये परिणाम मिलने वाले काम किये।