राजपथ - जनपथ
सवाल तो पहले भी उठ रहे थे...
यूपी एसटीएफ ने इनामी बदमाश प्रशांत सिंह को गिरफ्तार किया, तो छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता मुश्किल में घिर गए। प्रशांत सिंह की पत्नी कल्पना सिंह को कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने समाज कल्याण बोर्ड में सदस्य नियुक्त किया है। दंतेवाड़ा में उन्हें बंगला भी आबंटित किया गया है। कल्पना सिंह रायबरेली की रहने वाली है, और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी नहीं है। इसके बाद भी उन्हें नियुक्ति कैसे दे दी गई, इसका कांग्रेस नेताओं को जवाब देते नहीं बन रहा है।
सुनते हैं कि कल्पना के पति प्रशांत सिंह सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली के कांग्रेस कार्यकर्ता हैं, और वहां कांग्रेस का बूथ मैनेजमेंट देखते रहे हैं। प्रशांत ने प्रियंका गांधी से भी नजदीकियां बढ़ा ली थी। दंतेवाड़ा के नकुलनार में प्रशांत सिंह के भाई का ससुराल है। दर्जनभर संगीन मामलों के आरोपी प्रशांत सिंह भी फरारी काटने दंतेवाड़ा आते- जाते रहता था।
कल्पना सिंह को बोर्ड में सदस्य बनाने की सिफारिश भी कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं ने की थी। उनकी नियुक्ति पर छत्तीसगढ़ क्रांति सेना ने आपत्ति की थी, तब किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब जब प्रशांत सिंह पुलिस के हत्थे चढ़ा है, तो कांग्रेस के भीतर दबे स्वर में कल्पना को बाहरी बताकर पद से बेदखल करने की मांग हो रही है। मगर यह सबकुछ आसान नहीं है।
कांग्रेस में पद लेने की आखिरी लड़ाई
विधानसभा चुनाव के बाद लगातार अन्य चुनाव होने, उसके ठीक बाद कोरोना महामारी फैलने और फिर मरवाही का चुनाव आ जाने का कारण सुनते-सुनते कांग्रेस कार्यकर्ताओं का धैर्य जवाब दे रहा है। अब तो सरकार को दो साल पूरा होने को आये। इस बार सामने कोई वजह भी नहीं दिखाई दे रही कि 2018 के चुनाव में पसीना बहाने वाले कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने में देरी की जाये।
पहले ही कांग्रेस नेतृत्व के पास बड़ी संख्या में सीटें आने के कारण सभी छोरों के कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करना मुश्किल था और अब मरवाही जीतकर 70 विधायक हो चुके। मरवाही में काम करने के लिये प्रदेशभर से लोगों को बुलाया गया, उनका भी दबाव है। अब भी कई निगम, मंडल, आयोग, बोर्ड में नियुक्ति बची हुई है। जिला स्तर पर भी कई समितियों का गठन होना है। सहकारी बैंकों, समितियों में भी चुनाव होने वाले हैं जहां ज्यादातर सरकार के लोगों को ही जगह मिलती है।
28 नवंबर को होने वाली कांग्रेस की बैठक में इन नियुक्तियों पर विचार किये जाने की बात सामने आई है। यह बैठक बहुत खास होने वाली है क्योंकि अब कोई अधूरी या अंतरिम सूची नहीं निकाली जा सकती। माना जायेगा कि अब जो छूटे, मतलब छोड़ ही दिया गया। कार्यकर्ताओं ने भी अपने नेताओं पर इसी वजह से दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। देखें, कितनों को नेतृत्व संतुष्ट कर पाता है।
धान खरीदी के पहले टोकन
पिछले साल धान खरीदी के लिये टोकन की व्यवस्था तब की गई थी जब खरीदी की आखिरी तारीख खत्म होने के बावजूद किसानों का धान बिक नहीं पाया था। पर इस बार धान खरीदी शुरू होने से पहले ही टोकन की व्यवस्था कर दी गई है। इसका लाभ यह बताया गया है कि किसानों को खरीदी केन्द्र में आकर अपनी बारी का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। उन्हें पहले ही पता चल सकेगा कि उनका धान कब तौला जायेगा। जिस बड़े पैमाने पर प्रदेशभर में धान की खरीदी होने वाली है यह एक ठीक तरीका लग रहा है लेकिन किसानों की दिक्कतें बढ़ भी सकती है।
तय है 27 नवंबर से किसानों में टोकन हासिल करने के लिये मारामारी होगी। तय नियम नहीं कि किसे पहले टोकन दिया जाये। ऐसा हो कि रसूखदार किसान पहले टोकन हासिल कर लें और ज्यादा जरूरतमंद होने के बावजूद छोटे किसान पीछे रह जायें और उन्हें लम्बा इंतजार करना पड़े। टोकन की तारीख इस आधार पर दी जायेगी कि खरीदी केन्द्रों में धान रखने की जगह बने। यह तब होगा जब परिवहन भी समय पर हो जाये। चेन टूटा तो किसानों का धान टोकन के बावजूद तय समय पर नहीं तौला जायेगा।
पिछले साल किसानों ने उतने ही धान को बेचने का टोकन लिया था, जितनी मिंजाई हो चुकी थी। जब दुबारा बचे धान के लिये टोकन लेने गये तो कई सोसाइटियों से उन्हें वापस लौटा दिया गया। कहीं फिर ऐसा न हो। बहरहाल, धान खरीदी-बिक्री सरकार और किसान दोनों की परीक्षा ले रही है।
कोरोना रोकने के लिये नाइट कफ्र्यू
कोरोना से निपटने के लिये सोशल डिस्टेंस और मास्क पहनने के साधारण उपायों की लोग भले ही अवहेलना करते हों लेकिन प्रशासन के सख्त आदेशों की उन्हें सदैव प्रतीक्षा रहती है। प्रशासन भी लोगों के बीच कोरोना को लेकर फैली चिंता, कौतूहल, जिज्ञासा के मजे लेता रहा है। जैसे एक बार प्रदेश के सारे निजी अस्पतालों को कोरोना के इलाज के लिये हैंडओवर करने का आदेश जारी कर दिया था।
कल भी कुछ ऐसा ही हुआ। दिल्ली, गुजराज, मध्यप्रदेश में नाइट कफ्र्यू की खबर ने क्या चौंकाया, रायगढ़ में भी नाइट कफ्र्यू का आदेश जारी कर दिया गया। रायगढ़ क्या रायपुर में भी महानगरों की तरह देर रात तक वैसी चहल-पहल नहीं रहती कि सोशल डिस्टेंस बनाये रखने के लिये रात का कफ्र्यू लगाना पड़े। आदेश जारी होने के बाद हडक़म्प मचा और फिर सवाल उठे। कुछ ही घंटों में आदेश वापस भी हो गया।
अभी दो दिन पहले ही आदेश जारी कर दिया गया था कि रायपुर की हर एक सीमा पर कोविड जांच टीम तैनात की जायेगी और कोई भी कोरोना जांच के बिना शहर में प्रवेश नहीं कर सकेगा। अभी यह आदेश लागू भी नहीं हुआ था कि देखा-देखी बिलासपुर सहित कई जिलों ने भी ऐसा ही आदेश निकाल दिया। तुरंत बाद समझ में आया कि रोजाना लाखों लोगों को आउटर पर टेस्ट के लिये रोकना अव्यावहारिक है।
अभी कल ही मुख्यमंत्री का बयान आया है और इस बात को सब जानते भी हैं कि बाहरी यात्रियों के कारण प्रदेश में कोरोना मामले बढ़े। यह तो अभी भी हो रहा है। हर दिन अकेले रायपुर बिलासपुर स्टेशन से 7-8 हजार यात्री उतर रहे हैं। शुरू में जब दहशत फैली थी तो एक-एक यात्री को कड़े परीक्षण के बाद स्टेशन से बाहर निकाला गया। अब तो मजे से लोग स्टेशन का गेट पार कर शहर में घूमने लग जाते हैं। रेलवे को तो परवाह है ही नहीं, स्वास्थ्य विभाग ने भी प्रदेश के बाहर से आने वालों को सूचना देने का जो नियम बना रखा है, उसका भी कुछ अता-पता नहीं है।