राजपथ - जनपथ
इतिहास की सबसे बड़ी लिस्ट
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की अब तक की सबसे बड़ी तबादला सूची जारी की गई है। राप्रसे के करीब साढ़े 3 सौ अफसरों में से एक साथ 96 अफसर बदल दिए गए। हर जिले से चार-पांच अफसरों का तबादला हुआ है। कुछ जगहों पर तो स्वीकृत पदों से अधिक की पोस्टिंग हो गई।
रायपुर में एडिशनल कलेक्टर के दो पद स्वीकृत हैं, लेकिन यहां पांच अफसर पदस्थ हो गए। रायपुर में पद्मिनी भोई साहू, गोपाल वर्मा, बीसी साहू, एनआर साहू, पहले से ही हैं, और अब वीरेन्द्र बहादुर पंचभाई की भी एडिशनल कलेक्टर के पद पर पोस्टिंग हो गई। कई के तबादले गंभीर शिकायतों के बाद हुए हैं।
रायपुर समेत कुछ जिलों में अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरणों में लेनदेन की शिकायत हुई थी। कर्मचारी नेताओं ने ऐसे अफसरों के नाम सीएम तक पहुंचाया था। इसी तरह विधायकों की भी अपनी पसंद थी। फिर क्या था, सूची में नाम जुड़ते गए, और रिकॉर्ड कायम हो गया।
अफसरों के दिन फिरे
आईएएस अफसरों के तबादले अपेक्षित थे। क्योंकि डॉ. एम गीता स्वास्थ्यगत कारणों से दिल्ली पोस्टिंग चाहती थीं। उमेश अग्रवाल की जगह गृह सचिव के पद पर पोस्टिंग होनी थी। सूरजपुर कलेक्टर पद से हटाए जाने के बाद रणवीर शर्मा को कुछ न कुछ काम देना था। इन सब वजहों से सूची लंबी हो गई, और 20 अफसरों के प्रभार बदले गए।
पिछले कुछ साल से लूप लाइन में चल रहे विशेष सचिव स्तर के अफसर भुवनेश यादव को अच्छा खासा काम मिल गया है। उन्हें उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, और रोजगार जनशक्ति नियोजन का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। इन विभागों के अलावा उन्हें बीज निगम का एमडी भी बनाया गया है। जबकि प्रसन्ना आर से संचालक पंचायत का प्रभार वापस लिया गया है।
सुनते हैं कि पंचायत विभाग में कुछ ऐसे फैसले हो गए थे जिनकी शिकायत ऊपर तक हो गई थी। यही नहीं, पंचायत शिक्षकों की अनुकंपा नियुक्ति को लेकर फाइलें भी सालभर से विभाग में पड़ी थी। जिस पर सीएम ने तत्काल कार्रवाई करने कहा था। ऐसे में उनसे संचालक का प्रभार लेकर अविनाश चंपावत को कमिश्नर बनाया गया है। हालांकि प्रसन्ना के पास सचिव का प्रभार यथावत रहेगा। वैसे भी विभाग में रेणु पिल्ले तो एसीएस हैं ही।
तकरीबन रातों-रात
थाने में पादरी के साथ मारपीट की घटना के बाद से एसएसपी अजय यादव को हटा दिया गया था, लेकिन उन्हें जल्द ही सरगुजा रेंज के आईजी का प्रभार दिया गया। अजय भले ही कडक़ मिजाज के नहीं हैं, लेकिन उनकी साख अच्छी है। वे किसी को नाराज भी नहीं करते। यही वजह है कि उन्हें अहम जिम्मेदारी दी गई।
राहुल के दौरे का आगे टल जाना..
कांग्रेस सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौरे को लेकर सारी तैयारी पूरी हो चुकी है। बस उनके आने का इंतजार हो रहा है। वैसे तो दिल्ली गये नेताओं के साथ चर्चा में उनके एक सप्ताह बाद ही आने की बात थी पर इसे अब एक पखवाड़ा बीतने जा रहा है। तारीख अब भी तय नहीं हुई है। छत्तीसगढ़ से उनका तीन दिन का दौरा कार्यक्रम बनाकर भेज दिया गया है। दो तीन में इसके फाइनल होने की उम्मीद है। यानि सितंबर के तीसरे-चौथे सप्ताह में उनका प्रवास हो सकता है। इस बीच सरगुजा और बस्तर में मंत्री दौरा करके माहौल बना चुके हैं। सोचें यदि विधायकों के दिल्ली कूच के तुरंत बाद राहुल गांधी आते तब क्या होता और अब क्या हो सकता है। तत्काल बाद आते तो शायद एक बार फिर शक्ति प्रदर्शन होता और विकास कार्यों के बजाय ढाई साल के सीएम फॉर्मूले पर लोगों का फोकस अधिक होता। अब पानी में ठहराव आ चुका है। कांग्रेस के दिल्ली में बैठे रणनीतिकार राहुल के दौरे को आगे टालने का निर्णय शायद माहौल को शांत होते देखना चाहते थे।
क्या आदमखोर थे ये मासूम तेंदुए?
कांकेर इलाके में तेंदुए के कथित आदमखोर होने की खबरों के बाद अब पिंजरे में दो तेंदुओं को पिंजरे में बंद कर जंगल सफारी रायपुर लाया गया है। कहा जाता है कि इन दोनों ने एक महिला और एक बच्चे को अपना शिकार बनाया। इनका वीडियो भी देखने को मिला। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि अभी ये अल्पव्यस्क हैं और मां के साथ प्रशिक्षण ले रहे होंगे। यानि ये शिकार करना अभी नहीं जानते होंगे।
यह भी आशंका है कि किसी दूसरे तेंदुए की करतूतों की सजा इन शावकों को मिलने वाली है। ऐसा देखा गया है मां जब अपने शावकों के साथ होती है तब अपने शावकों की सुरक्षा के लिए आक्रामक हो जाती है> ऐसी दशा में वह आदमखोर नहीं होती। वैसे भी एक आदमी को उठा कर ताडोबा में ले जाने वाले टाइगर मटकासुर को ना पकड़ा जा सका न ही शूट किया गया है।
रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने इस मामले में चिंता जताई है। उनका कहना है कि इन दोनों तेंदुओं की उम्र का सही पता कर ही कोई इल्जाम लगाना होगा। जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं किया जाए। इनका जंगल में पुर्नवास यदि किया जाता है तो विवेक सम्मत कार्य होगा। जिस इलाके से ये पकड़े गए उधर के गांवों में लोग सुरक्षित रहें इसकी मुनादी भी जरूरी है।
मेढक-मेढकी की शादी
आप इसे अंधविश्वास मान सकते हैं या पीढिय़ों से चली आ रही धारणा का निर्वाह करना। रायगढ़ जिले के लैलूंगा में बारिश की कमी के चलते फसल सूखने के कगार पर है। ग्रामीणों में भय के चलते भक्तिभाव पैदा हुआ और उन्होंने मेंढक-मेढकी की शादी रचाने का निर्णय लिया। शनिवार को सोनाजोरी गांव से मेंढक की बारात पहुंची और मेढक़ी के साथ उसका विवाह मंडप, मंत्रोच्चार के साथ बेस्कीमुड़ा गांव में कराया गया। इंद्रदेव को प्रसन्न कर बारिश की कामना की गई। देव कितने प्रसन्न हुए यह पता नहीं लेकिन बारात में शामिल लोगों को बड़ा आनंद आया। खबर है कि करीब 3 हजार लोग शामिल हुए। बैंड-बाजे के साथ बाराती-घराती सब नाचे। भोज की भी शानदार व्यवस्था की गई थी। बकायदा निमंत्रण-पत्र छापकर लोगों को न्यौता दिया गया था।