राजपथ - जनपथ
कानून को नहीं दिखती तख्तियां?
हिन्दुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में सरकार राजनीति, धर्म, जाति या किसी भी और संगठन से जुड़े लोग उस ताकत का इश्तहार अपनी गाडिय़ों के नंबर प्लेट के साथ करते हैं ताकि सडक़ पर पुलिस और दूसरे लोग दहशत में रहें। अलग-अलग प्रदेशों में जब जिस धर्म या जाति की सत्ता रहती है, उसके नाम के स्टिकर गाडिय़ों के शीशों पर लग जाते हैं। छोटे-छोटे से कागजी संगठनों के पदाधिकारी बड़ी-बड़ी तख्तियां बनवाकर नंबर प्लेट के ऊपर लगाकर चलते हैं। इनमें मीडिया और मानवाधिकार के नाम पर बनाए गए बहुत से फर्जी संगठनों के लोग सबसे आगे रहते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश में विधायक और जिला पंचायत अध्यक्ष तो नंबर प्लेट की जगह अपने पदनाम की प्लेट लगाकर चलते हैं मानो उन्हें राज्यपाल की तरह कोई रियायत मिली हुई है।
यह पूरा सिलसिला बहुत ही पाखंडी है, गैरकानूनी तो है ही। लेकिन सरकार के अपने लोग जितनी बड़ी संख्या में कानून तोड़ते हैं, उन पर कार्रवाई करे तो कौन करे। ऐसे में कुछ लोग ऐसे दिखावटी लोगों की खिल्ली उड़ाने के लिए अपनी गाड़ी पर आम आदमी लिखवाकर चलते हैं, या जैसा कि इस कार में दिख रहा है किसी ने भूतपूर्व क्लास मॉनिटर लिखी तख्ती लगा रखी है। जन संगठनों को चाहिए कि वे ऐसी गाडिय़ों को सार्वजनिक जगहों पर घेर लें, और पुलिस को बुलाकर इन तख्तियों को उतरवाएं। देखना है कि पुलिस कानून को तोडऩे वाले ताकतवर लोगों को बचाने के लिए कौन-कौन से बहाने ढूंढेगी, क्योंकि ये तख्तियां खुद होकर तो पुलिस की नजरों में तो रोज सामने आती हैं, कार्रवाई तो किसी पर नहीं होती।
रायपुर को रावघाट के रास्ते से जगदलपुर तक रेल मार्ग से जोडऩे के लिए अंतागढ़ से निकली पदयात्रा को एक सप्ताह पूरे हो गए हैं। अब तक 125 किलोमीटर की दूरी इस भीषण गर्मी में तय की जा चुकी है। यह यात्रा 173 किलोमीटर यात्रा करेगी और जगदलपुर पहुंचेगी। हैरानी की बात यह है कि इन पदयात्रियों के समर्थन में न तो कांग्रेस कुछ कह रही है, न बीजेपी। कोई इनकी यात्रा में शामिल होने भी नहीं पहुंचा। जबकि यह आदिवासी समाज, परिवहन संघ, चेंबर ऑफ कॉमर्स आदि दर्जनों संगठनों का मिला-जुला अभियान है। दरअसल, तमाम बड़े नेता इन दिनों खैरागढ़ उप-चुनाव में लगे हुए हैं। दोनों ही दलों को इस वक्त इस चुनाव को जीतने से बड़ा कोई सवाल दिखाई नहीं दे रहा है। हो सकता है मतदान के बाद इन आंदोलनकारियों की कोई सुध ली जाए।
चिटफंड कंपनी का दफ्तर चालू
अंबिकापुर में एक पत्रकार जितेंद्र जायसवाल के खिलाफ एक चिटफंड कंपनी कैनविज ने एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस ने उन्हें थाने में लाकर बिठा लिया। पत्रकार की पत्नी, बच्चे थाने के बाहर गुहार लगाते रहे। बताते हैं कि कैनविज चिटफंड कंपनी ने पत्रकार के खिलाफ शिकायत की है कि उन्होंने ऑफिस में घुसकर दफ्तर के काउंटर से 52000 रुपये लूट लिए। शिकायत में कितना दम है यह तो सीसीटीवी वगैरह के फुटेज से भी सामने आ जाएगा। मगर दूसरा बड़ा सवाल यह है कि जब तमाम चिटफंड कंपनियों के लोग फरार हैं और सरकार उनकी गिरफ्तारी तथा संपत्ति की कुर्की की कार्रवाई कर रही है, तब यह चिटफंड कंपनी अंबिकापुर में किसके दम पर काम कर रही है?
हर मर्ज का इलाज...
बीते दिनों दुर्ग के निजी अस्पताल में काम करने वाला एक कर्मचारी अपने गांव मस्तूरी में बंगाली डॉक्टर से दर्द का इंजेक्शन लगवाने के बाद अपनी जान गंवा बैठा। लाइसेंसी और नर्सिंग होम एक्ट के तहत चल रहे दुर्ग के हॉस्पिटल के कर्मचारी को भी झोलाछाप डॉक्टरों की शरण में जाना पड़ा इसका मतलब यह है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा की स्थिति अच्छी नहीं है। अपने प्रदेश में समय-समय पर अवैध क्लीनिक चलाने वालों के खिलाफ अभियान चलाया जाता है। हाल की कुछ तेज कार्रवाई के चलते कई स्वयंभू डाक्टरों ने अपने क्लीनिक के बोर्ड उतार दिए हैं, या किसी गली कूचे में काम करने लगे हैं। पर धंधा चल रहा है। निम्न मध्यम वर्ग और गरीब के लिए यह आसान ठिकाना है। थोड़े से रुपये में जांच भी हो जाती है, दवा भी मिल जाती है। इस मायने में गुजरात अपने छत्तीसगढ़ से आगे है। अहमदाबाद के डॉक्टर मुन्ना तिवारी साहब ने ऐलानिया बोर्ड लगा रखा है। उनके पास ऐसे ऐसे मर्ज का इलाज है जो देश के बड़े-बड़े अस्पतालों में भी नहीं मिलेगा। वे मरे हुए इंसान को जिंदा करने का भी दावा कर रहे हैं। हार्ट अटैक की बीमारी 5 दिन में ठीक कर देंगे। मतलब यह है झोलाछाप डॉक्टरों से इंजेक्शन लगवाने से यदि मौत भी हो जाती है तो दूसरे झोलाछाप उन्हें वापस जिंदा करने के लिए मौजूद हैं।