संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एमपी में व्यवस्था से लड़ता एक नौजवान आईएएस
19-Jun-2021 5:29 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एमपी में व्यवस्था से लड़ता एक नौजवान आईएएस

मध्यप्रदेश में एक आईएएस अधिकारी को लेकर बड़ा विवाद चल रहा है। इस नौजवान अफसर के तेवर कुछ ऐसे हैं कि 4 बरस में उसका 9 बार तबादला हो चुका है, और उसके खिलाफ कई तरह की कार्रवाई भी सरकार कर रही है। दूसरी तरफ इस अफसर ने अपने बड़े अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ सार्वजनिक रूप से भी बहुत सी बातें कही हैं जो कि लोगों को कुछ हैरान भी करती हैं। अब ताजा मामला यह है कि इस अफसर ने अपने से सीनियर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि उसने सीएम हाउस में किसी से बात की और इस जूनियर का तबादला करवा दिया। इसके साथ-साथ उसने यह भी कहा कि सीएम की पत्नी और इस कलेक्टर की पत्नी दोनों  एक जाति संगठन में अध्यक्ष और सचिव हैं, इस नाते उनका घरोबा है। लेकिन इस अधिकारी को अभी सरकार की तरफ से जो नोटिस मिला है वह इस बात के लिए हैं कि उसने राजधानी से एक बड़ी अफसर द्वारा टेलीफोन पर कही गई बातों को आईएएस अफसरों के एक व्हाट्सएप ग्रुप में पोस्ट किया। अपने से बड़ी अफसर के टेलीफोन कॉल को रिकॉर्ड करना और उसकी बातों को पोस्ट करना इसे सरकार ने बहुत बड़ा जुर्म माना है और इस नौजवान अफसर के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है।

अब यहां पर दो-तीन बातों को देखना जरूरी है कि किसी अफसर को अगर उससे बड़े किसी अफसर ने टेलीफोन पर या रूबरू कोई बात कही है, तो उसे रिकॉर्ड करना क्या एक जुर्म माना जाना चाहिए? सवाल यह है कि एक सीनियर और एक जूनियर अफसर के बीच अगर कोई निजी बात हो रही है तो यह उनकी निजी हैसियत से होने वाली बात है इस पर कोई सरकारी नियम लागू नहीं हो सकते। दूसरी तरफ अगर उनके बीच सरकारी कामकाज को लेकर कोई बात हो रही है तो कोई भी बात रिकॉर्ड से परे की क्यों होनी चाहिए? अगर बात नियम-कानून के तहत सही है, तो उसे रिकॉर्ड पर लाने में क्यों दिक्कत होनी चाहिए, फिर चाहे वह फाइल हो या कोई व्हाट्सएप ग्रुप हो। इस देश में सूचना का अधिकार इसीलिए लागू किया गया है कि लोगों को सरकार से जुड़ी हुई तमाम बातों को मालूम करने का हक होना चाहिए। सूचना का अधिकार एक किस्म से सरकार की जवाबदेही तय करता है और कुछ वैसा ही काम इस अफसर ने किया है। उसने अपने से सीनियर अफसर की कही हुई बातों को अफसरों के समूह में पोस्ट किया। 

सरकारी ढांचे के फौलादी मिजाज को जो लोग बहुत इज्जत करने के लायक मानते हैं, उन लोगों को तो यह बात अटपटी लगेगी कि अपने सीनियर की बातों को कोई रिकॉर्ड करें। लेकिन सरकार में यह एक आम बात भी रहती है कि जिस फाइल पर चर्चा करें लिखा जाता है उस पर चर्चा के बाद फाइल में यह बात दर्ज भी की जाती है कि चर्चा क्या हुई। उसी बात को दर्ज करना अटपटा लग सकता है, जो बात किसी भ्रष्टाचार की हो जो बात नियमों के खिलाफ हो, जो बात किसी का पक्ष लेने की हो, या जो बात किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह की हो। ऐसी बातों से परे अगर नियम-कायदे की बात दो अफसरों के बीच हो रही है तो उसे रिकॉर्ड करने में क्यों दिक्कत होनी चाहिए? खासकर तब, जब वह बात सरकारी कामकाज को लेकर हो रही है। टेलीफोन की बातचीत को तो बाद में शब्दश: लिखा नहीं जा सकता, इसलिए उसे रिकॉर्ड कर लेना एक बेहतर तरीका है। 

हम मध्यप्रदेश के इसी मामले को लेकर नहीं, इसके पहले भी कई बार इस मुद्दे पर लिख चुके हैं कि लोगों को सरकारी कामकाज के सिलसिले में जो भी बातचीत करनी है उसे रिकॉर्ड करना चाहिए, ताकि अगर उसमें कोई गैरकानूनी सुझाव दिया जा रहा है, या कोई भ्रष्ट सुझाव दिया जा रहा है, तो उसके खिलाफ लडऩे के लिए एक सामान रहे। यह हर किसी का न सिर्फ एक हक है, बल्कि हर किसी की एक जिम्मेदारी भी है। अगर कोई सरकारी अफसर किसी दूसरे अफसर से फोन पर किसी नाजायज काम के लिए बात करें तो यह उस दूसरे अफसर की कानूनी जिम्मेदारी भी रहती है कि उसके नाजायज हिस्से को वह सरकार या कानून के सामने रखे। नाजायज बातें सुनकर उन पर चुप रहना यह जनता के पैसों पर तनख्वाह पाने वाले लोगों की जिम्मेदारियों के खिलाफ है। इसलिए हम पहले से यह बात लिखते आए थे कि सरकारी बातचीत टेलीफोन पर मिलने वाले सरकारी निर्देश, इन सबको रिकॉर्ड करके रखना चाहिए और इसमें कोई सरकारी नियम आड़े नहीं आते। 

सरकार ने अपने किसी भी कर्मचारी या अधिकारी को बर्खास्त करने के लिए एक ब्रह्मास्त्र बनाकर अपने हाथ में रखा हुआ है और सरकारी सेवा नियमों में एक लाइन जोड़ी है कि उनका बर्ताव सरकारी कर्मचारी या अधिकारी जैसा ना होने पर उनकी सेवा समाप्त की जा सकती है। अनबिकमिंग ऑफ एन ऑफिसर, नाम की यह शर्त पूरी तरह से धुंधली है और यह बेजा इस्तेमाल करने के लिए ही बनाई गई है। हम अभी मध्यप्रदेश के इस मामले में सही या गलत पर नहीं जा रहे हैं, कौन भ्रष्ट है और कौन नहीं, उस पर हम कोई बात नहीं कह रहे हैं, लेकिन हम इतना जरूर कह रहे हैं कि सरकारी कामकाज में कोई निजी बात क्यों रहना चाहिए जिसे कि रिकॉर्ड ना किया जाए या जिसे सार्वजनिक रूप से कहा न जा सके? ऐसे 10-20 और अफसर अगर सामने आएंगे तो बड़े मंत्रियों और बड़े अफसरों का मातहत अधिकारियों और कर्मचारियों को गलत काम करने के लिए कहना भी बंद होने लगेगा। लोकतंत्र के हित में यही है कि इस तरीके को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि सब कुछ पारदर्शिता से हो सके। अगर सरकार को अदालत में जाना पड़ा, तो वहां उसकी शिकस्त होगी।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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