संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुप्रीम कोर्ट में इतनी बार घिरकर जाने क्या लगता होगा सरकार को
30-Jun-2021 3:09 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुप्रीम कोर्ट में इतनी बार घिरकर जाने क्या लगता होगा सरकार को

कोरोना के मोर्चे पर एक बार फिर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में बहुत बुरी तरह घिरी है। सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाई गई थी कि कोरोना से मरने वालों के परिवारों को 4-4  लाख मुआवजा दिया जाए। इस पर केंद्र सरकार ने पहले तो सुप्रीम कोर्ट में कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें कोरोना से बहुत बुरी आर्थिक स्थिति से गुजर रही हैं और ऐसा कोई मुआवजा दे पाना उनकी क्षमता से परे हैं। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया गया उस वक्त सरकारी वकील ने वहां पर यह कहा कि आर्थिक क्षमता कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन जिस कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट यह मुआवजा देने की बात सुन रहा उस कानून के तहत ऐसा मुआवजा देने की कोई अनिवार्यता नहीं है। इस पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण कानून को पढक़र सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कहा कि इस कानून के तहत मुआवजा देने की अनिवार्यता है, और केंद्र सरकार यह मुआवजा दे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की रकम तय करने से इंकार कर दिया और इसे सरकार के ऊपर छोड़ा। सुप्रीम कोर्ट का ताजा रुख जनहित का दिख रहा है और आम जनता के हिमायती होने का संकेत है। अभी कुछ अरसा पहले तक देश का सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की ही एक संस्था की तरह काम करते दिख रहा था, और देश के लोगों को उससे बड़ी निराशा हो रही थी। अब ताजा फर्क नए मुख्य न्यायाधीश के आने के बाद दिखाई पड़ रहा है, लेकिन यह कब तक जारी रहेगा यह अंदाज लगाना कुछ मुश्किल है। फिर भी आज इतनी बात तो राहत की है ही कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में अगर घिर रही है तो इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार की मनमानी नहीं सुन रहा है।

लोगों को याद होगा कि अभी कुछ हफ्ते पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कोरोना वैक्सीन के मामले में बुरी तरह से घेरा और सरकार की हर लापरवाही, अनदेखी पर ढेर सवाल किए, तो उन्हीं का नतीजा निकला कि कटघरे में खड़ी हुई मोदी सरकार ने अदालत के बाहर खुद होकर देश के तमाम लोगों को मुफ्त वैक्सीन लगाने की घोषणा की। वरना इसके पहले बहुत से राज्य, केंद्र सरकार के सामने इस बात की अपील करते हुए थक गए थे, एक दर्जन गैर-एनडीए दलों ने कई बार ऐसी मांग की थी कि सरकार प्रधानमंत्री के नाम से बनाए गए एक नए फंड की रकम का इस्तेमाल करके, या बजट में रखे गए 30 हजार करोड़ रुपए का इस्तेमाल करके पूरे देश को मुफ्त में वैक्सीन लगाएं। महीनों तक यह खींचतान चली और आखिर में जब सुप्रीम कोर्ट में सरकार बुरी तरह घिर गई, तब जाकर प्रधानमंत्री ने इस बात की घोषणा की। पता नहीं केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री के स्तर पर फैसला लेने के वक्त कौन उनके सलाहकार चल रहे हैं, लेकिन यह बात जाहिर है कि पिछले काफी समय से केंद्र सरकार के सर्वोच्च फैसलों में से कई फैसलों ने सरकार को बहुत ही फजीहत में डाला है। अब अगर यह फैसले प्रधानमंत्री अकेले ले रहे हैं, तो वे इस फजीहत के खुद ही हकदार हैं, लेकिन अगर फैसले लेने में कुछ और लोग भी शामिल हैं तो उन सब लोगों को काम के अपने तौर-तरीकों के बारे में फिर से सोचना चाहिए। राहुल गांधी की ट्वीट के कुछ या कई हफ्ते बाद जिस तरह से सरकार को उसकी एक-एक बात माननी पड़ रही है हालांकि उसके पहले मोदी सरकार और उसके समर्थकों के अनगिनत ट्वीट राहुल गांधी के खिलाफ आ चुके रहते हैं, और आखिर में जाकर केंद्र सरकार राहुल की बातों पर अमल करती है। 

यह सिलसिला आज के इस माहौल में ठीक नहीं है जब कोरोना ने लाखों परिवारों से लोगों को छीना है, माहौल पिछले महीनों में इतना खराब था कि लोग अपने परिवार के लोगों को आखिरी हफ्ते-दस दिन देख भी नहीं पाए और न उनका अंतिम संस्कार कर पाए। दूसरी तरफ लॉकडाउन की वजह से देश में अर्थव्यवस्था का जो हाल है, कारोबार जिस तरह से चौपट हो गया है, लोगों के पास बस सरकारी राशन की वजह से जिंदगी बचाने का एक जरिया बचा है, ऐसे वक्त पर केंद्र सरकार का बार-बार बदलता रूख, बार-बार अनचाहे और मजबूरी में अपने फैसलों को बदलना, बार-बार टीकों को लेकर नीति बदलना, बार बार अडऩा, और बार-बार झुकना, इस पूरे सिलसिले ने देश के लोगों का भरोसा तोड़ा है, और केंद्र सरकार की साख खराब की है। यह सिलसिला जितनी जल्द खत्म हो उतना अच्छा है क्योंकि सरकार तो 5 बरस के लिए चुनी गई है, और अभी खासा अरसा बाकी है इसलिए देश में सरकार तो यही चलनी है, लेकिन उसका ऐसा रुख लोकतंत्र पर से लोगों का भरोसा तोड़ रहा है। जिस वक्त निर्वाचित सरकार जनकल्याण के फैसलों से कतराए, और अदालत को बांह मरोड़ कर उससे जनकल्याण के काम करवाने पड़ें, तो यह बहुत ही अजीब सी नौबत रहती है, क्योंकि जजों को तो कोई चुनाव लडऩा नहीं है, उन्हें तो लुभावने फैसले देने नहीं हैं, लेकिन सरकार अपनी जिम्मेदारियों से इस हद तक कतराए या अच्छी बात नहीं है।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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