संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हिंदुस्तान का उत्तर भारत गुफा युग में जीते हुए पाखंडी शान ढो रहा है
04-Jul-2021 3:48 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हिंदुस्तान का उत्तर भारत गुफा युग में जीते हुए पाखंडी शान ढो रहा है

photo credit Gulf News

पिछले चार दिनों में उत्तर भारत से चार ऐसी खबरें आई हैं जिनमें प्रेम संबंधों को लेकर परिवार के लोगों ने ही हत्या कर दी। कुछ मामले तो ऐसे भी थे जिनमें एक ही धर्म के लोग प्रेम संबंध में थे, और लडक़ी के भाई ने उसके प्रेमी को बुलवाया और खुलेआम गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना उत्तर प्रदेश की है और इसी इलाके में अभी 2 दिन पहले एक लडक़ी के बाप ने अपनी बेटी और उसके प्रेमी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इससे थोड़े से परे, बगल के बिहार में ऑनर किलिंग कही जाने वाली एक और हत्या हुई है जिसमें एक लडक़ी शादी के बाद भी मायके लौटकर अपने प्रेमी से मिल रही थी तो उस लडक़ी के पिता ने ही अपने घर वालों के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी और 20 किलोमीटर दूर ले जाकर उसकी लाश फेंक दी, बाप गिरफ्तार हो गया है।

जितनी भयानक ऐसी हत्याओं की खबरें हैं, उतना ही भयानक यह भी है कि हिंदुस्तानी मीडिया ऐसी हत्याओं को ऑनर किलिंग लिखता है। यह बात सही है कि ऐसी हत्याओं के पीछे परिवारों का तर्क यही रहता है कि उनका सामाजिक अपमान हुआ है और वे अपने सम्मान को दोबारा पाने के लिए अपने परिवार के लोगों की या उनके प्रेमी प्रेमिकाओं की ऐसी हत्याएं कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है जिन हत्याओं को यह परिवार अपनी खोई इज्जत वापस पाना बतलाते हैं, क्या मीडिया भी उसी भाषा का इस्तेमाल करे? क्या मीडिया भी इन्हें परिवारों की प्रतिष्ठा से जोडक़र देखे? यह सिलसिला भयानक इसलिए है कि यह सिर्फ लडक़ी पर केंद्रित है। लडक़ी ने अपने मन से शादी कर ली तो परिवार की इज्जत खराब हो गई, लडक़ी के साथ बलात्कार हो गया तो भी उसके परिवार की इज्जत खराब हो गई, लडक़ी ससुराल छोडक़र मायके लौट आई तो भी उसके परिवार की इज्जत खराब हो गई। लडक़ी के साथ समाज क्या करता है, उसका परिवार क्या करता है, बलात्कारी क्या करता है, इसकी फिक्र किसी को नहीं है। आज तक किसी ने ऐसा नहीं लिखा कि बलात्कारी के परिवार की इज्जत खराब हो गई या बलात्कारी की इज्जत लुट गई। बलात्कार की शिकार लडक़ी की इज्जत लुट जाती है यानी उसके साथ बलात्कार भी किया जाए और उसकी इज्जत भी लुट जाए ? मतलब यह कि मर्द मुजरिम की इज्जत किसी हालत में खराब नहीं हो रही, जुर्म की शिकार लडक़ी की इज्जत भी खराब हो रही है वह अपना कौमार्य भी खो रही है, वह अपने शरीर का सम्मान भी खो रही है, वह अपने जिंदा रहने के हक को भी खो रही है, और समाज की नजरों में इज्जत को भी वही खो रही है। लडक़ा और लडक़ी बालिग होने पर मर्जी से शादी कर लें, तो भी लडक़े के परिवार की इज्जत खऱाब नहीं होती, सिर्फ लडक़ी के परिवार  इज्जत खऱाब होती है। सिर्फ लडक़ी का परिवार क़त्ल पर उतारू हो जाता है !

इज्जत को लेकर हिंदुस्तानी समाज की है सोच एकदम ही हिंसक है और जाने यह कितने लाख साल पहले के इंसानों की तरह गुफा में चलने वाली उस सोच की तरह है जहां ताकत ही सब कुछ हुआ करती थी। जिन दिनों जंगल के जानवरों और उस वक्त के इंसानों के बीच जिंदा रहने के लिए ताकत ही अकेली काबिलियत मानी जाती थी, वैसी नौबत आज 21वीं सदी में भी हिंदुस्तान में कायम है, जहां मर्द की ताकत है, लडक़ी के भाई और बाप की ताकत है, पाखंडी समाज की ताकत है, लेकिन लडक़ी की यह ताकत नहीं है कि बालिग होने के बाद भी वह अपनी मर्जी से शादी कर सके। जगह-जगह से यह बात सुनाई पड़ती है कि किस तरह शादी करने के बाद भी उस जोड़े को ढूंढकर घर वालों ने गोलियां मार दीं, अकेले प्रेमी को मार दिया, लडक़ी को मार दिया। यह अंतहीन सिलसिला चले आ रहा है।

समाज में अखबारों को भी अपनी जुबान सुधारनी होगी। किसी भी मामले को मीडिया लव जिहाद लिखना शुरू कर देता है जैसे कि एक बालिग लडक़ी को मोहब्बत करने का हक ही नहीं है, और अगर आज शहंशाह अकबर नहीं हैं, तो यह समाज शहंशाह अकबर बनकर अपनी तानाशाही से अनारकली को कुचलने के लिए खड़े हो जाता है। लडक़ी के बारे में लिखते हुए यह कहा जाता है कि वह घर छोडक़र भाग गई, उसे भगाकर ले गया, लडक़ी अगर बालिग हो तो भी यही जुबान इस्तेमाल होती है। तो क्या लडक़ी कोई गाय या बकरी है जिसकी रस्सी खोलकर कोई उसे लेकर भाग जाए? क्या एक बालिग लडक़ी को भी अपनी मर्जी से किसी के साथ कहीं जाने का कोई हक नहीं है? हिंदुस्तान में आमतौर पर यह देखने में आता है कि जब प्रेम संबंधों में कोई लडक़ी अपनी मर्जी से बालिग होने पर किसी लडक़े के साथ हो जाती है तो भी परिवार का पहला काम यह दिखाई पड़ता है कि उसे नाबालिग साबित करने के लिए तरह-तरह के फर्जी सर्टिफिकेट पुलिस में पेश करे, और किसी तरह उस लडक़ी को पकड़वाकर एक बार अपने घर वापस ले आए। आज तक कभी यह सुनाई नहीं पड़ता कि लडक़ी के घरवालों के पुलिस में जमा किए गए फर्जी उम्र सर्टिफिकेट को लेकर उनके खिलाफ कभी कोई जुर्म दर्ज हुआ हो कि यह पुलिस को झांसा देने की कोशिश की गई, और एक बालिग लडक़ी के हक कुचलने की कोशिश की गई। 

आम तौर पर पुलिस इतनी दकियानूसी रहती है कि वह अपने धर्म के बाहर जाकर शादी करने वाली लडक़ी, अपनी जाति के बाहर जाकर शादी करने वाली लडक़ी, या बलात्कारी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने वाली लडक़ी, इन सबका हौसला पस्त करने में लग जाती है। इन्हें तरह-तरह के डर दिखाने में पुलिस जुट जाती है। एक नजर में देखें तो यह समझ ही नहीं पड़ेगा कि क्या यह हिंदुस्तान आजाद हुए पौन सदी होने जा रही है और अब तक एक बालिग लडक़ी को अपनी मर्जी से कुछ भी करने का हक नहीं दिया गया है। अभी किसी ने सोशल मीडिया पर एक अच्छी बात लिखी कि हिंदुस्तानी शादी में दुल्हन को सब कुछ अपनी मर्जी का मिलता है सिवाय दूल्हे के। पुलिस और अदालत को, और मीडिया को, अपनी जुबान संभालना चाहिए और ऐसी हत्याओं को ऑनर किलिंग लिखना बंद करना चाहिए। लडक़ी से बलात्कार के मामले में उसकी इज्जत लुट गई या उसकी आबरू लुट गई जैसी भाषा तुरंत बंद करना चाहिए। उत्तर भारत एक शर्मिंदगी में जीने वाला इलाका होना चाहिए जिसे अपनी लड़कियों को मारकर अपनी इज्जत वापस पाने जैसी बातें सूझती हैं।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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