संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सोशल मीडिया जिंदगी का रुख, असल जिंदगी से कुछ बेहतर ही
12-Jul-2021 5:06 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सोशल मीडिया जिंदगी का रुख, असल जिंदगी से कुछ बेहतर ही

पिछले कई वर्षों में दुनिया के बहुत से प्रमुख विश्वविद्यालयों ने सोशल मीडिया के लोगों पर असर को लेकर कई तरह के शोध किए हैं। उनमें से अधिक ऐसे हैं जिनका निष्कर्ष है कि लोगों पर सोशल मीडिया का सकारात्मक असर पड़ता है। लेकिन इस तरह की शोध के साथ इस बात को जोडक़र ही देखा जाना चाहिए कि इसे किन विश्वविद्यालयों ने किया है, किन देशों के लोगों पर किया है, और वहां पर सोशल मीडिया का क्या हाल है।

हम अगर हिंदुस्तान के बारे में बिना किसी शोध प्रक्रिया के, सिर्फ अपनी मामूली समझ से देखने की कोशिश करें, तो यह बात दिखती है कि इसने भारत के संकीर्ण समाज के बहुत से लोगों को एक-दूसरे के साथ जान-पहचान बढ़ाने में मदद की है। हिंदुस्तान में अधिकतर इलाकों में लडक़े-लड़कियों के साथ उठने-बैठने पर भी पिछली कई पीढिय़ों से रोक चली आ रही थी, और कम ही लोगों को एक दूसरे से बात करने का ऐसा मौका मिलता था, जो कि इस नई पीढ़ी को तो फिर भी हासिल है। इस नए सोशल मीडिया ने यह मुमकिन कर दिया है।  इसके अलावा अलग-अलग शहरों के, अलग-अलग देशों के, अलग-अलग जाति और धर्म के लोगों से जान पहचान भी ऐसी आसान नहीं रहती थी कि उनकी सोच को जानने का मौका मिले। लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया की मेहरबानी से लोगों को स्थापित लेखकों की लिखी और छपी हुई बातों से परे भी, अनगिनत अनजाने लोगों की लिखी गई तरह-तरह की बातों को पढऩे का मौका मिलता है। बिल्कुल ही असंगठित क्षेत्र के गैर पेशेवर लेखक अपनी मौलिक सोच को सोशल मीडिया पर आसानी से लिख पाते हैं और लोग न सिर्फ उन्हें पढ़ पाते हैं, बल्कि उसे आगे भी बढा पाते हैं। 

इसलिए सोशल मीडिया ने लोगों के लिए एक नई दुनिया खोल दी है और इस नए संसार में वे अपनी पसंद की चीजों में खो सकते हैं। बहुत से लोग यह भी मान सकते हैं कि सोशल मीडिया लोगों का वक्त बर्बाद करता है और लोग वहां पर महज नफरत फैलाने में लगे रहते हैं। यह बात तो असल जिंदगी में भी लागू होती है। लोग जिस तरह के लोगों के साथ उठना-बैठना चाहते हैं, वैसे लोगों के साथ उठते-बैठते हैं और उनका असर उन पर कम या अधिक होता ही है। इसलिए सोशल मीडिया ने गलत लोगों के साथ संगत का कोई नया खतरा पैदा नहीं किया है, यह खतरा तो असल जिंदगी वाले जमीनी समाज में पहले से चले ही आ रहा था। अब तो बल्कि शारीरिक और सामाजिक दायरे से बाहर जाकर एक अनदेखे दायरे तक के लोगों को दोस्त बनाना मुमकिन हो गया है जो कि पहले नहीं रहता था। हिंदुस्तान में ही 25-30 बरस पहले तक कुछ लोग दूर-दूर बसे हुए लोगों को अपने पत्र-मित्र बनाते थे, और उन्हें चिट्ठियां लिखते थे, उनकी चि_ी का इंतजार करते थे। वह दौर भी गजब का था जब ऐसे लोगों की चिट्ठियों पर लगी डाक टिकटों को इकट्ठा करने वाले लोग मांगते फिरते थे। खैर हर युग का अपना एक तरीका रहता है और यह 21वीं सदी तो सोशल मीडिया की एक किस्म से आंधी लेकर आई है, और आज जो पीढ़ी इसी सदी में पैदा हुई है, उसे तो यह बात समझ भी नहीं आएगी कि फेसबुक और ट्विटर के बिना पहले के लोग रहते कैसे थे।

अब इस मुद्दे पर चर्चा की वजह यह है कि सोशल मीडिया पर लोग अपना रोज का खासा वक्त लगाते हैं, वहां पर जिन लोगों से दोस्ती होती है या मोहब्बत होती है उन पर उनकी भावनाएं भी खासी खर्च होती हैं, वक्त भी और भावनाएं भी। लेकिन भावनाओं के ऐसे संबंध उन लोगों के बहुत काम के रहते हैं जिनकी अपनी जिंदगी में उनके पास इस तरह के संबंध नहीं हैं, और सोशल मीडिया पर ही उन्हें ऐसे लोग मिले हैं। ऐसी ही कमी का फायदा उठाकर बहुत से जालसाज सोशल मीडिया पर लोगों को धोखा दे रहे हैं, उन्हें ठग रहे हैं। लेकिन ऐसा तो असल जिंदगी में भी होते ही रहता है, इसलिए सोशल मीडिया ने ऐसी ठगी को शुरू किया हो ऐसी बात भी नहीं है। पहले से बहुत से ऐसे लोग चले आ रहे हैं जिन्होंने 10-10, 20-20 लड़कियों और महिलाओं को शादी का झांसा देकर उन्हें ठगा, और उसके बाद किसी की शिकायत पर भी गिरफ्तार हुए हैं। इसलिए आज सोशल मीडिया की वजह से ऐसे हादसों की गिनती थोड़ी सी बढ़ी हुई हो सकती है, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। 

आज की बात का मकसद यह है कि लोग क्योंकि सोशल मीडिया पर अब वक्त गुजार रहे हैं और वहां से उनकी भावनाएं जुड़ी हुई हैं इसलिए उन्हें अपनी असल जिंदगी के लिए काम की बातों को भी सोशल मीडिया पर देखना चाहिए, और यहां पर सिर्फ जन्मदिन की बधाई, और किसी तीज के त्यौहार की बधाई जैसी बातों के बजाय अपने सामान्य ज्ञान को बढ़ाने वाली, अपनी समझ को बढ़ाने वाली बातों के लिए लोगों से पहचान बढ़ानी चाहिए। सोशल मीडिया लोगों को समझदार बनाने का भी एक बड़ा माध्यम हो सकता है और लोगों को बेवकूफी में डुबाने का भी। ठीक उसी तरह जैसे कि असल जिंदगी में मोहल्ले के किसी एक कोने में 4 लोफर लडक़े आवारगी सिखाने के लिए तैयार खड़े रहते हैं, और दूसरी तरफ उसी मोहल्ले के किसी मैदान में कुछ अच्छे खिलाड़ी खेल में और खूबी पाने में लगे रहते हैं। ऐसा ही सोशल मीडिया पर लगातार चलता है और लोगों को इसका भरपूर इस्तेमाल भी करना चाहिए। उतने ही वक्त सोशल मीडिया पर रहना चाहिए जितना वक्त उनकी जिंदगी में सोशल मीडिया के लिए हो, लेकिन इतने वक्त में भी उन्हें यहां पर अपने से बेहतर लोगों से जुडऩे की कोशिश करना चाहिए उनकी बेहतर बातों को पढऩा चाहिए और बिना किसी नफरत के, बिना गालियों के, लोगों से समझ की बात करनी चाहिए। असल जिंदगी में अगर वे देखेंगे तो इतनी समझ की बात करने के लिए उन्हें लोग मुश्किल से भी नसीब नहीं होते, लेकिन सोशल मीडिया पर आसानी से होते हैं। अगर लोग यही मानकर चलें कि सोशल मीडिया पर वे अपने से अधिक समझदार लोगों को देखेंगे, ढूंढेंगे, उन्हें पढ़ेंगे और उनसे कुछ जानने-समझने की कोशिश करेंगे, तो उनके लिए सोशल मीडिया एक बहुत ही सकारात्मक औजार बनकर सामने आ सकता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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